संस्कृत व्याकरण की बताई बारीकियां
देवप्रयाग: राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान के देवप्रयाग स्थित श्री रघुनाथ कीर्ति परिसर में विभिन्न विषय पर
देवप्रयाग: राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान के देवप्रयाग स्थित श्री रघुनाथ कीर्ति परिसर में विभिन्न विषय पर नौ दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी की शुरुआत की गई।
सोमवार को व्याकरण विभाग की संगोष्ठी की शुरुआत संस्कृत विश्वविद्यालय कोलकाता के प्रो. तन्मय भट्टाचार्य ने की। उन्होंने संस्कृत व्याकरण की बारीकियों व महत्व पर प्रकाश डाला। संस्कृत को कई भाषाओं की जननी बताते उन्होंने कहा कि समाज में मंत्र, तंत्र संस्कृत की सुगंध विद्यमान रहती है। इस पर शोध आवश्यक है। संगोष्ठी के संयोजक प्रो. बनमाली ने कहा कि संस्कृत सभी भाषाओं का मूल है जिसके देखते इसका संरक्षण और प्रचार-प्रसार जरूरी है। संस्थान के प्राचार्य प्रो. केबी सुब्बरायडु ने संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए कहा कि धर्म, अध्यात्म में संस्कृत व संस्कृति एक दूसरे के पूरक हैं। पतंजलि सम्मत शब्द स्वरूप विषय पर पतंजलि योगपीठ में आयुर्वेदिक प्राचीन हस्तलिपि कार्य का संपादन कर रहे प्रो. विजयपाल शास्त्री ने संस्कृत शब्द स्वरूप पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि शब्दों की सामर्थ्य व शक्ति असीम होती है। इस अवसर पर डॉ. वीरेंद्र बत्र्वाल, डॉ. निपुण चौधरी, ओम शर्मा, डॉ. अर¨वद गौड़, डॉ. शैलेंद्र नारायण, डॉ. सुशील बडोनी, डॉ. सुरेश शर्मा आदि मौजूद थे।