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प्रकृति के कोप से गांव-घर छूटा, आठ किमी दूर भोग रहे हैं वनवास

पिथौरागढ़ के आपदा प्रभावित टांगा गांव के साठ परिवार सेरा प्राथमिक स्कूल शिफ्ट हो गए हैं।

By JagranEdited By: Published: Sun, 26 Jul 2020 05:47 AM (IST)Updated: Sun, 26 Jul 2020 06:16 AM (IST)
प्रकृति के कोप से गांव-घर छूटा, आठ किमी दूर भोग रहे हैं वनवास
प्रकृति के कोप से गांव-घर छूटा, आठ किमी दूर भोग रहे हैं वनवास

मदकोट (पिथौरागढ़), जेएनएन : प्रकृति के कोप से टांगा के ग्रामीणों के घर द्वार छूट चुके हैं। गांव से आठ किमी दूर प्राथमिक विद्यालय सेरा शरणस्थली बनी है। गांव के साठ लोग विद्यालय में शरणार्थी बने हैं। सभी के चेहरे मायूस हैं। अपनी माटी का मोह छूटने का दर्द आंखों में दिख रहा है। सेरा प्राथमिक विद्यालय से अपने गांव की दिशा की तरफ ही नजर है तो दूसरी तरफ भविष्य की चिंता सता रही है।

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19 जुलाई की रात्रि की आपदा से बुरी तरह प्रभावित टांगा गांव के ग्रामीणों को गांव से लगभग आठ किमी दूर सेरा विद्यालय में रखे गए हैं। इस समय साठ ग्रामीण विद्यालय भवन में शरण लिए हुए हैं। जिसमें 15 से अधिक बच्चे हैं। प्रशासन की तरफ से आपदा शिविर में प्रशासन की तरफ से नाश्ता, भोजन, चाय की व्यवस्था की गई है। शिविर में बच्चे आपस में खेल रहे हैं तो पुरु ष अपने गांव में चल रहे आपदा राहत बचाव कार्य में भागीदारी कर रहे हैं। शिविर में मौजूद महिलाएं मायूस हैं। भविष्य की चिंता उनके चेहरे पर साफ नजर आ रही है। आंखों में अपने गांव में प्रकृति के खौफ का भय नजर आ रहा है। ========== 19 जुलाई की रात को हम कभी नहीं भूल सकते हैं। प्रकृति का ऐसा तांडव देखा जो अब जीवन भर कभी नहीं भूल सकती हैं। गांव में जो हुआ उसे देखकर अब वहां रहने की हिम्मत नहीं चुकी है। कुछ दिनों तक तो सरकार रखेगी फिर अपने ही हाल में छोड़ देना है। हमारा क्या होगा यह चिंता हमे खाए जा रही है।

- रोशनी देवी, आपदा पीड़िता

======== हमारा गांव खतरे में आ गया है। हमारे बीच के 11 लोग दुनिया से चले गए हैं। दिन भर हमारे बीच थे। किसी ने भी नहीं सोचा था ऐसा होगा। अब गांव में कु छ नहीं रह गया है। सरकार हमें सुरक्षित स्थान पर बसाए। हम परिवारों के साथ कहां जाएं यह चिंता भारी होती जा रही है।

- परु ली देवी, आपदा पीड़िता

======== हंसते खेलते परिवार चले गए। हंसता खेलता हमारा गांव उजड़ गया। मेहनत कर के खेती की थी अब नामोनिशान नहीं है। गांव रहने योग्य नहीं रह चुका है। सरकार सबसे पहले हमे बसाए। हमारे छोटे- छोटे बच्चे हैं उनकी शिक्षा, दीक्षा, लालन-पालन करना है।

- हेमा देवी, आपदा पीड़िता

========== कभी सोचा भी नहीं था कि गांव उजड़ जाएगा। उस रात की भयावहता के बाद अब गांव में रहने की हिम्मत नहीं रह चुकी है। हमारे परिवारों का अब क्या होगा। आज सात दिनों से अच्छी सो तक नहीं पाए हैं। अभी तो चौमास के कई दिन हैं। हमारा सबकुछ गया अब खाली हाथ दूसरों की दया पर हैं। सरकार पर ही भरोसा है।

- सरिता देवी, आपदा पीड़िता

=========== साठ लोगों के लिए एक शौचालय, पानी नहीं मदकोट: प्रकृति के कोप के शिकार बने राहत शिविर में रह रहे साठ लोगों के लिए एकमात्र शौचालय है। प्रशासन द्वारा पीड़ितों के लिए शौचालय तो बनाए जा रहे हैं, परंतु शिविर से पांच सौ मीटर दूर। छोटे-छोटे बच्चों को पांच सौ मीटर दूर तक ले जाना काफी कठिन है। आपदा पीड़ितों का कहना है कि शौचालय शिविर के आसपास बनाए जाएं। शिविर में पेयजल की भी दिक्कत है।


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