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पर्वतीय क्षेत्रों में ताम्र की जगह प्लास्टिक के बर्तनों ने ली जगह, कारीगरों का पालन-पोषण हुआ मुश्किल

सरकार पहाड़ों में उद्योग व स्वरोजगार देने के लाख दावे करें लेकिन हकीकत कुछ और ही है। उपेक्षा के कारण ताम्र के बर्तनों की जगह प्लास्टिक ने ले ली है। कारीगरों के समक्ष रोजी रोटी का संकट गहरा गया है।

By JagranEdited By: Published: Tue, 10 Dec 2019 10:58 PM (IST)Updated: Tue, 10 Dec 2019 10:58 PM (IST)
पर्वतीय क्षेत्रों में ताम्र की जगह प्लास्टिक के बर्तनों ने ली जगह, कारीगरों का पालन-पोषण हुआ मुश्किल
पर्वतीय क्षेत्रों में ताम्र की जगह प्लास्टिक के बर्तनों ने ली जगह, कारीगरों का पालन-पोषण हुआ मुश्किल

अर्जुन सिंह रावत, थल (पिथौरागढ़): सरकार पहाड़ों में उद्योग व स्वरोजगार देने के लाख दावे करें, मगर इसकी जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां करती है। सरकारी उपेक्षा के चलते आज ताम्र शिल्प कला विलुप्ति के कगार पर है। ताम्र शिल्प से अपनी आजीविका चलाने वाले परिवारों के लिए आज भरण-पोषण करना तक मुश्किल हो गया है।

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पर्वतीय क्षेत्र के शिल्पी धातु कला में निपुण रहे हैं। बेरीनाग चौकोड़ी मोटर मार्ग पर उडियारी गांव के एक दर्जन परिवार पिछले एक दशक से तांबे का बर्तन बनाने का कार्य कर रहे हैं। ये परिवार तांबे के बर्तन बनाकर ही अपनी आजीविका चलाते हैं, लेकिन आज के चकाचौंध वाले बाजार में तांबे के बर्तन विलुप्ति के कगार पर पहुंच चुके हैं। लोग तांबे के बर्तनों के बजाए रंग-बिरंगी प्लास्टिक के बर्तनों को ज्यादा तवज्जो दे रहे हैं। जिस कारण करीब 70 प्रतिशत लोगों ने अब इस प्राचीन कला का कार्य करना बंद कर दिया है। पूर्व में सहकारी समिति के नाम से कई स्थानों पर कार्यशाला बनाई गई, मगर उपेक्षा के चलते वह भी बंद हो गए हैं। ============= शुभ कार्याें में होता है तांबे के बर्तनों का प्रयोग

तांबे के बर्तनों को पहाड़ों में शुद्ध माना जाता है। इससे शुभ कार्याें में प्रयोग किया जाता है। तांबे के फिल्टर व तांबे में रखे हुए पानी से कई रोगों से मुक्ति मिलती है। शादी व धार्मिक कार्यों में तांबे के बर्तनों में खाना बनाया जाता था, मगर यह प्रचलन भी अब खत्म होने की ओर है। एक समय तांबे के गागर, तौला, पराद, सुरई, पंच, पात्र, दीपदान, वाद्य यंत्र, तुतरी, ढोल-नगाड़े समेत घर सजावटी सामान की अलग ही पहचान थी। ========= पलायन रोकने में सार्थक होता यदि ताम्र उद्योगों को बढ़ावा दिया जाता तो दशकों से इस कार्य में लगे लोगों को रोजगार की तलाश में बाहर नहीं जाना पड़ेगा और ताम्र शिल्प उद्योग भी जीवित रहेगा। ========= क्या कहते हैं शिल्पी पिछले दो दशक से यह कार्य कर रहा हूं। आज मेहनत से बनाए गए तांबे के बर्तनों को बेचने के लिए लोगों के पास जाते है, मगर इसकी उचित कीमत नहीं मिल पाती है। तांबे के बर्तनों के लिए अच्छा बाजार उपलब्ध कराया जाना चाहिए, जहां इन्हें बेचा जाए।

फोटो फाइल: 10 पीटीएच 04

परिचय: विशाल टम्टा, कारीगर

========== आज की विपरीत परिस्थितियों में तांबे का कार्य करना बहुत चुनौतीपूर्ण बन गया है, लेकिन पैतृक व्यवसाय होने के कारण इस जिंदा रखा हुआ है। यदि सरकार मदद करे तो इसे आगे बढ़ाया जा सकता है। - भूपेंद्र प्रसाद, कारीगर

======== जब दस वर्ष का था तब से यह काम करना शुरू कर दिया था। 90 के दशक तक यह कार्य बहुत अच्छा चलता था। तांबे के बर्तनों का हर जगह पर प्रयोग होता था। उस तांबे को दस रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से बेचते थे। वह आज सात सौ रु पये प्रतिकिलो के हिसाब से बिक रहा है। आज नई पीढ़ी ने तांबे का प्रयोग करना बंद कर दिया है। - दानी राम, कारीगर

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बोले सांसद व विधायक तांबे के बर्तन बनाने वालों की समस्या मुख्यमंत्री के सामने रखूंगी। इस कार्य में लगे लोगों को सरकार से अवश्य मदद दिलाने के साथ ही इनके संरक्षण के लिए कार्य करने का प्रयास अपने स्तर से करुंगी।

- मीना गंगोला, क्षेत्रीय विधायक।

======= पिथौरागढ़, बागेश्वर, चम्पावत व अल्मोड़ा के कई स्थानों पर ताम्र के बर्तन बनाने का कार्य किया जाता है। इस कार्य में लगे कारीगरों को सरकार से मदद दिलाने के साथ ही तांबे के बर्तनों को अलग बाजार देने के लिए मुख्यमंत्री से वार्ता की जाएगी।

- अजय टम्टा, सांसद, अल्मोड़ा-पिथौरागढ़।


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