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हवा में लटके मकान, ग्रामीणों की जान सांसत में

विधानसभा चुनाव हो रहे हैं। राजनीतिक दल जनता को लुभा रहे है।

By JagranEdited By: Published: Sat, 22 Jan 2022 09:21 PM (IST)Updated: Sat, 22 Jan 2022 09:21 PM (IST)
हवा में लटके मकान, ग्रामीणों की जान सांसत में
हवा में लटके मकान, ग्रामीणों की जान सांसत में

संवाद सूत्र, नाचनी (पिथौरागढ़) : विधानसभा चुनाव हो रहे हैं। राजनीतिक दल जनता को लुभा रहे हैं। प्रत्याशी मतदाताओं को सपनों के संसार में ले जा रहे हैं। विकास खंड मुनस्यारी के बांसबगड़ घाटी के खेतभराड़ गांव के ग्रामीण अपने गांव के भविष्य को लेकर चितित हैं। 27 जुलाई 2020 की आपदा में भुजगड़ नदी के कहर से पेंडुलम की तरह लटके मकानों सहित पूरा गांव खतरे में है। आसमान में बादल घिरते ही इस गांव के ग्रामीणों की धड़कनें बढ़ जाती है। 12 परिवार रात्रि को गांव के ही दूसरे सुरक्षित मकानों में रहने चले जाते हैं। दो साल होने वाले हैं, गांव को बचाने की कवायद अभी भी शुरू नहीं हुई है।

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विधानसभा चुनाव हो रहे हैं। ग्रामीण भी मुखर होने लगे हैं। दावों का पिटारा लेकर मतदाताओं को लुभाने के आने वाले दलों की प्रतीक्षा हो रही है। खेतभराड़ बड़ा गांव है। यहां पर छह सौ के आसपास मतदाता हैं। ग्रामीणों ने भी चुनाव के दौरान दलों को आइना दिखाने का निर्णय लिया है। जुलाई 2020 से अब तक ग्रामीण जिला मुख्यालय, तहसील मुख्यालय सहित गाव में ही कई बार प्रदर्शन कर चुके हैं। गांव को बचाने के लिए तटबंध निर्माण की घोषणा भी हुई है। सिचाई विभाग विगत एक साल से प्रस्ताव शासन के पास होने की जानकारी दे रहा है। ========== आपदा के बाद मिले आश्वासनों से ऐसा लगता था कि उनकी समस्या का जल्द निस्तारण होगा। डेढ़ साल बीत चुके हैं। सुध तक नहीं ली जा रही है। आपदा में मकान चला गया। अब वोट मांगने आने वाले नेताओं से जबाव लिया जाएगा।

- जगदीश बिष्ट, आपदा में मकान गंवाने वाला ग्रामीण

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धारचूला, जौलजीबी, नाचनी में सुरक्षा के लिए तटबंध निर्माण किए गए। खेतभराड़ को छोड़ दिया गया। पूरा गांव खतरे में है। ग्रामीणों को दर्द को समझने वाला कोई नहीं है। ग्रामीण चुनाव में इसका जबाव देंगे।

- ध्यान सिंह ग्रामीण

========== ग्रामीण किस तरह जीवन जी रहे हैं। हवा मे अटके मकानों पर परिवार रहने को मजबूर हैं। कब प्रकृति क्या गुल खिला दे कहा नहीं जा सकता है। 27 जुलाई का दिन ग्रामीण भूल नहीं सकते। खेत ,खलिहान बह गए। मकान हवा में अटक गए। सुधलेवा कोई नहीं है।

- विनोद सिंह, ग्रामीण

========== डेढ़ साल तक भी सुध नहीं लिया जाना केवल क्षेत्र की उपेक्षा है। चुनाव आ चुके हैं और अब नेता गांव तक पहुंचेंगे। ग्रामीण भी नेताओं को सबक सिखाने का निर्णय लिए हैं। मतदान को लेकर जल्द निर्णय लिया जाएगा।

- देवेश कुमार, युवा


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