महानगर से वापस लौटे बोरा ने गांव में ही निकाल ली स्वरोजगार की राह
महानगर से लौटे छबिंद्र बोरा ने गांव में ही मुर्गी पालन कर लोगों को स्वरोजगार की राह दिखाई।
संवाद सहयोगी, पिथौरागढ़: काम की लगन और इच्छाशक्ति हो तो रोजगार कोई बड़ी समस्या नहीं है। इसे साबित कर दिखाया है कोरोना की पहली लहर के दौरान गांव वापस लौटे बांस मैतोली गांव के छबिंद्र बोरा ने। उन्होंने गांव में रोजगार की संभावनाएं टटोली, सरकारी योजना से मदद ली और अपने पैरों पर खड़े होकर दिखा दिया।
महानगर में नौकरी करने वाले छविंद्र बोरा को कोरोना की पहली लहर के दौरान सूरत में अपनी नौकरी छोड़कर गांव वापस लौटना पड़ा। कुछ समय बचत से परिवार का खर्च निकल गया, बचत कम पड़ने लगी तो उन्होंने गांव में ही रोजगार करने का निर्णय लिया। उन्होंने अवसरों की पहचान की और देखा कि गांव-गांव में खटीमा, पीलीभीत जैसी मंडियों से मुर्गा पहुंच रहा है जो स्वाद और गुणवत्ता में भी बहुत बेहतर नहीं है। इस दौरान उन्होंने समाचार पत्रों में भटेड़ी गांव में मुर्गी पालन की सफल स्टोरी पढ़ी। इसके बाद उन्होंने तय कर लिया कि वे गांव में ही मुर्गी पालन करेंगे। पूंजी की व्यवस्था के लिए उन्होंने सहकारी बैंक के अध्यक्ष मनोज सामंत ने सम्पर्क किया। अध्यक्ष सामंत ने उन्हें पं.दीनदयाल स्वरोजगार योजना की जानकारी देते हुए बताया कि सहकारी बैंक से उन्हें एक से डेढ़ लाख तक का ऋण शून्य ब्याज दर पर मिल सकता है। पशुपालन विभाग से जानकारी लेकर उन्होंने गांव में ही मुर्गे की कक्कड़नाथ प्रजाति पालने का निर्णय लिया। पांच माह में ही उन्होंने अपना कारोबार खड़ा कर लिया। आज वे 25 से 30 हजार रुपये महीना गांव में कमा ले रहे हैं। बोरा बताते हैं कि फिलहाल उनका उत्पादन आस-पास के क्षेत्रों में ही खप जा रहा है। बाजार से भी डिमांड आने लगी है। इसे देखते हुए अब वे कारोबार को विस्तारित करने की योजना बना रहे हैं। भविष्य में कुछ और लोगों को भी अपने कारोबार में रोजगार दे सकेंगे।