संसाधन विहीन वन पंचायतों के भरोसे 2.77 लाख हेक्टेयर वन क्षेत्र
संवाद सहयोगी पिथौरागढ़ आम जनता को जंगलों से जोड़ने के लिए अस्तित्व में आई वन पंचायत व्यवस्थ्
संवाद सहयोगी, पिथौरागढ़: आम जनता को जंगलों से जोड़ने के लिए अस्तित्व में आई वन पंचायत व्यवस्था के प्रति सरकार का रवैया आज भी उदासीन है। संसाधनों के मामले में लगभग शून्य इन वन पंचायतों पर अगले तीन माह तक वनों को आग से बचाने का महत्वपूर्ण दायित्व है।
उत्तराखंड देश का अकेला ऐसा राज्य है जहां वनों की देखरेख के लिए वन पंचायतों का गठन किया गया है। पूरे प्रदेश में 13 हजार से अधिक वन पंचायतें हैं और प्रदेश के कुल जंगल का 40 प्रतिशत से अधिक इन्हीं के अधिकार क्षेत्र में है। बावजूद इसके वन पंचायतों की हालत खस्ता है। पिथौरागढ़ जिले को एक उदाहरण के रू प में देख सकते हैं। जिले में कुल 1600 वन पंचायतें गठित हैं, जिनके जिम्मे 2.77 लाख हेक्टेयर वनों की देखरेख का जिम्मा है, लेकिन सरकार से वन पंचायतों को कोई वित्तीय मदद नहीं मिल रही है। 15 फरवरी से 15 जून तक चलने वाले फायर सीजन के दौरान ही वन महकमे को इनकी याद आती है। वन पंचायतों को अग्निशमन के लिए थोड़ी बहुत सुविधा दी जाती है। यह मदद भी टुकड़ों में मिलती है। बीते वर्ष 400 वन पंचायतों को मदद दी गई थी। इस वर्ष 350 वन पंचायतों को ही मदद मिलेगी। मदद जो दी जा रही है वह ऊंट के मुंह में जीरे के समान है। टार्च, वाटर बोतल, बेलचे-फावड़े जैसी सुविधाएं वन पंचायतों को मिल रही है। आग को नियंत्रण में रखने के लिए कर्मचारियों की तैनाती का कोई प्राविधान नहीं है। जिले में गठित वन पंचायतों में कई के पास 150 से 200 हेक्टेयर तक जंगल है। इतने विशाल क्षेत्र में बगैर कर्मचारियों और संसाधनों के आग कैसे बुझाई जा सकती है यह बड़ा सवाल है। वनों को आग से बचाने में वन पंचायतों की भूमिका महत्वपूर्ण है। इस वर्ष वन पंचायतों को उपकरणों के साथ ही वित्तीय मदद भी दी जा रही है। जिले को वंन पंचायतों की मदद के लिए 45 लाख की धनराशि शासन से प्राप्त हुई है जो वन पंचायतों को जारी कर दी गई है। विनय भार्गव, प्रभागीय वनाधिकारी
कुमाऊं में वन पंचायतों की स्थिति जनपद वन पंचायत 1. पिथौरागढ़ 1600
2. बागेश्वर 833
3. अल्मोड़ा 2199
4. चम्पावत 631
5. नैनीताल 415
पिथौरागढ़ में जंगलों का क्षेत्रफल 1. वन पंचायत- 2.77 लाख हेक्टेयर
2. आरक्षित वन- 75583 हेक्टेयर
3. सिविल वन- 41748 हेक्टेयर