मेलों से जलेबी गायब, फास्ट फूड का क्रेज
रतनमणि भट्ट, पाटीसैण जिन मेलों में कभी जलेबी की दुकानें सजा करती थी, आज वहां फास्ट फूड के स्टाल न
रतनमणि भट्ट, पाटीसैण
जिन मेलों में कभी जलेबी की दुकानें सजा करती थी, आज वहां फास्ट फूड के स्टाल नजर आ रहे हैं। बच्चे हो या बुजुर्ग, चाउमिन को देख हर किसी का मन लालच से भर जाता है। जिधर देखो, वहीं फास्ट फूड के स्टाल पर भीड़ नजर आती है और इक्का-दुक्का जलेबी की दुकानों में बैठे व्यापारी ग्राहकों की बाट जोहते रहते हैं।
पहाड़ के मेलों की शान मानी जाने वाली जलेबी की जगह जिस तेजी से चाउमिन, टिक्की ले रहा है, वह दिन दूर नहीं, जब मेलों में जलेबी बीती बात हो जाएगी। आजादी से पहले भी गढ़वाल में मेलों का आयोजन होता रहा है व भविष्य में भी होता रहेगा, लेकिन आज मेलों का स्वरुप पूरी तरह बदल गया है। बात करते हैं यमकेश्वर ब्लॉक के अंतर्गत थलनदी में आयोजित होने वाले ¨गदी मेले की, जिसका वर्णन साहित्यकार शिवप्रसाद डबराल की पुस्तक केदार खंड में भी है। कहा जाता था कि इस मेले के दौरान होने वाले '¨गदी' के संघर्ष में सात खून माफ होते थे। मसलन '¨गदी' की छीना-झपटी के दौरान यदि भीड़ में सात लोगों की कुचलकर मौत भी हो जाए तो उसे विधि का विधान मान लिया जाता था। इस कौथिग को देखने के लिए दूर-दराज के लोग पहुंचते थे। दिशा-ध्याणी (बेटी-बहन) को उनके ससुराली मेला देखने भेजते थे। मेले में तमाम नाते-रिश्तेदारों से मुलाकात होती है व इस खुशी के क्षण में जलेबी और अधिक मिठास घोलती। मांस-मदिरा का मेले से दूर-दूर तक कोई वास्ता न था,लेकिन आज सब कुछ बदल गया है। मेले में हावी हुए शराब के चलन ने बहु-बेटियों को मेलों से दूर कर दिया है। जलेबी की दुकानें सिमटती जा रही हैं और मेलों में चाउमिन, टिक्की, मोमो जैसे फास्ट फूड का चलन बढ़ गया है। ग्राम प्रधान (कस्याली) अनिल नेगी, राजेंद्र ¨सह नेगी, सरोजनी भट्ट आदि बताते हैं कि आज मेलों में कुरीतियां अधिक हावी हो गई है, जिससे मेलों को आयोजित करने के मूल उद्देश्य सिरे पर पहुंच गया है।