आवारा पशु बने मुसीबत
संवाद सहयोगी, कोटद्वार: भले ही नगर की सड़कों पर घूमने वाले आवारा पशु नगरनिगम प्रशासन को नजर नहीं आते
संवाद सहयोगी, कोटद्वार: भले ही नगर की सड़कों पर घूमने वाले आवारा पशु नगरनिगम प्रशासन को नजर नहीं आते, लेकिन यह आमजन के लिए यह परेशानियों का सबब बने हुए है। सड़कों पर घूमने वाले आवारा पशु न सिर्फ दुर्घटनाओं को अंजाम दे रहे है, बल्कि यातायात को भी बाधित कर रहे है। स्थिति यह है कि पशुओं के सरंक्षण के लिए बनाया गया अधिनियम केवल नगर निगम की फाइलों में कैद होकर रह गया है।
गोवंश संरक्षण अधिनियम लागू हुए दस साल पूरे हो चुके हैं, लेकिन कोटद्वार क्षेत्र में आज तक अधिनियम धरातल पर नहीं उतर पाया है। नतीजा, सड़कों पर आवारा घूमने वाले पशुओं के कारण जनता को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। गो-वंश संरक्षण के नाम पर विभिन्न संगठन आवाज तो उठाते हैं, लेकिन धरातल पर कोई भी कार्य करने को तैयार नहीं है। पूर्व में कई बार सड़कों पर घूमने वाले आवारा पशु दोपहिया वाहन व पैदल चलने वाले लोगों पर हमला कर उन्हें घायल भी कर चुके हैं। बावजूद इसके भी इनके संरक्षण को लेकर कार्रवाई नहीं की जा रही है।
गोवंश संरक्षण अधिनियम
19 जुलाई 2007 को लागू हुए गो-वंश संरक्षण अधिनियम में स्पष्ट है कि कोई भी पशुपालक गो-वंश को आवारा नहीं छोड़ेंगे। शहरी क्षेत्रों में गोवशं पालने के लिए मुख्य नगर अधिकारी/अधिशासी अधिकारी से पंजीकरण प्रमाणपत्र लेना आवश्यक है। साथ ही प्रत्येक गो-वंश की व्यक्तिगत पहचान भी की जाएगी। नियमों का उल्लंघन करने पर पशुपालक को एक माह की सजा व एक हजार रूपए जुर्माना देना होगा।
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सड़कों पर आवारा पशुओं की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है, जिन पशुपालकों के यह पशु हैं। उनके विरुद्ध गो-सरंक्षण अधिनियम के तहत कार्रवाई की जाएगी।
राजेश नैथानी, सहायक नगर आयुक्त, नगर निगम, कोटद्वार