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युवाओं ने मिलकर जंगल को लिया गोद तो लौट आई हरियाली, अनूठी है इनकी पहल

उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में सोमेश्वर के युवाओं ने वन विभाग से अर्जुनराठ गांव से लगी दुर्गडिय़ा की पहाड़ी चीड़ वनक्षेत्र को गोद लिया। मकसद उसे संवार कर मिश्रित जंगलात में बदलना।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Tue, 01 Sep 2020 08:56 AM (IST)Updated: Tue, 01 Sep 2020 08:56 AM (IST)
युवाओं ने मिलकर जंगल को लिया गोद तो लौट आई हरियाली, अनूठी है इनकी पहल
युवाओं ने मिलकर जंगल को लिया गोद तो लौट आई हरियाली, अनूठी है इनकी पहल

अल्मोड़ा, जेएनएन : युवा भारत में तमाम युवा ऐसे हैं जो दौड़ भागभरी जिंदगी में कुछ समय पर्यावरण संरक्षण के लिए दे रहे। परिणाम भी बेहतर आ रहे। उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में सोमेश्वर के युवाओं ने वन विभाग से अर्जुनराठ गांव से लगी दुर्गडिय़ा की पहाड़ी चीड़ वनक्षेत्र को गोद लिया। मकसद उसे संवार कर मिश्रित जंगलात में बदलना। युवाओं की टोली ने छह वर्ष पूर्व जो मुहिम छेड़ी थी, अब परिणाम सामने हैं। जंगल को आग से तो बचाया ही जा रहा, बंदर व लंगूरों से फसल बचाने के लिए फलीकरण की मुहिम शुरू कर दी गई है। मिश्रित जंगलात विकसित होने से कोसी नदी के सहायक जलस्रोतों व धारों का प्रवाह भी बढऩे लगा है। अल्मोड़ा जिले के सोमेश्वर स्थित बौरारौघाटी की युवा फौज आज अन्य क्षेत्रों के लिए किसी मिसाल से कम नहीं।

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युवाओं ने आपसी सहमति से ग्रुप बनाकर शुरू किया काम

वर्ष 2017 को पर्यावरण प्रेमियों ने समूह बनाकर जंगल संवारने को मंत्रणा की। पहले चरण में अर्जुनराठ गांव के पास दुर्गडिय़ा वन क्षेत्र को मिश्रित जंगलात बनाने का संकल्प लिया। वन विभाग के पास पत्र भेज वनाग्नि के बड़े कारण चीड़ के जंगल गोद देने का आग्रह किया। युवाओं का जुनून देखकर विभाग ने वन क्षेत्र को हराभरा बनाने की अनुमति दे दी। विश्व पर्यावरण दिवस पर पांच जून 2017 को करीब 25 युवाओं की टोली ने वृहद पौधारोपण मुहिम चलाई। तब बहुपयोगी बांज, फल्याट, काफल, बुरांश, मेहल, उतीश आदि विभिन्न प्रजातियों के लगभग दो हजार पौधे लगाए। अगले वर्ष तक परिणाम बेहतर मिला तो उत्साहित युवाओं ने वर्ष 2018 में करीब एक हजार फल व बहुपयोगी पौधे लगाए।

पहाड़ पर फिर से हरा भरा हो रहा जंगल

बंदर व लंगूरों से फसल बचाने के लिए फल के पौधों को प्राथमिकता दी गई। इस बीच युवाओं ने कोष भी बनाया। इसमें स्वेच्छा से धनराशि जमा की जाने लगी। उद्देश्य था हरियाली मुहिम को अनवरत चलाना व जरूरतमंदों की मदद करना। अगले वर्ष दोबारा एक हजार फल व बहुपयोगी पौधे लगाकर जीवनदायिनी कोसी नदी को बचाने तथा जलस्रोतों को जिंदा करने को अभियान बरकरार है। ग्रुप के सदस्य संजय बौरा, भूपाल सिंह, नरेंद्र सिंह, मनोज बौरा, शिवेंद्र सिंह, भगवंत सिंह, शंकर सिंह, त्रिभुवन सिंह आदि कहते हैं कि यदि पहाड़ के अन्य गांव भी इसी तरह ग्रुप बनाकर वनों की हिफाजत कर हरियाली को बढ़ावा देंगे तो निश्चित तौरपर हिमालयी राज्य को हरित प्रदेश का सपना साकार हो जाएगा।

कोसी के रिचार्ज जोन स्याहीदेवी टॉप पर कृत्रिम तालाब लबालब

सोमेश्वर में युवा फौज की नायाब पहल की ही तरह कोसी नदी के प्रमुख रिचार्ज जोन में शुमार स्याहीदेवी टॉप के परिणाम भी भविष्य की सुनहरी तस्वीर दे रही। धरा की कोख भरने के लिए किए गए भगीरथ प्रयास अबकी बरसात में साकार नजर आने लगे हैं। जीवनदायिनी कोसी के मुख्य रिचार्ज जोन स्याहीदेवी वन क्षेत्र के शिखर की ओर तैयार कृत्रिम तालाब, चाल खाल लबालब हो गए हैं। इस यांत्रिक उपचार से वर्षाजल को भूजल भंडार तक पहुंचाने में बड़ी मदद तो मिलेगी ही। भविष्य में कोसी के जलप्रवाह में बढ़ोतरी की उम्मीदें भी जागी हैं।

कोसी नदी को पुनर्जीवित करने की कवायद

बीते तीन दशक से कोसी नदी को पुनर्जीवित करने को शोध अध्ययन में जुटे भूगोल विभागाध्यक्ष एसएसजे परिसर (कुमाऊं विवि) प्रो. जीवन सिंह रावत की पहल पर जीवनदायिनी के सभी 14 रिचार्ज जोन पर वर्ष 2017 की शुरूआत से यांत्रिक व जैविक उपचार शुरू कराया गया। इन्हीं में एक स्याहीदेवी वन क्षेत्र के शिखर की ओर असंख्यों छिद्र, चाल खाल, खंतियों के साथ ही कृत्रिम तालाब भी बनवाए गए। ताकि बहकर बर्बाद होने वाले बरसाती पानी को रिचार्ज जोन पर ही रोक भूजल भंडारों तक पहुंचाया जा सके। इधर बीती बुधवार देर रात से दो दिन तक हुई बारिश से कृत्रिम तालाब भर गए हैं।

रिचार्ज जोन से ही भूजल भंडार भरने होंगे

वैज्ञानिक सलाहकार कुमाऊं मंडल नदी पुनर्जनन समिति प्रो. जीवन सिंह रावत ने बताया कि नदियों को पुनर्जीवित करने के लिए रिचार्ज जोन से ही भूजल भंडार भरने होंगे। स्याहीदेवी टॉप पर किए गए प्रयास सुखद संकेत दे रहे। इसी तरह अन्य रिचार्ज जोन में भी शिखर की ओर यांत्रिक उपचार की जरूरत है। ताकि बेकार बहने वाले वर्षाजल को ऊपर ही रोक जलस्रोतों को जिंदा कर नदियों को पुनर्जीवित किए जा सके।


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