मंदी के कारण यारसा गंबू का कारोबार संकट में, बिक रहा महज दो से तीन लाख रुपए किलो
देश में छाई आर्थिक मंदी व कृत्रिम तरीके से हो रहे उत्पादन का असर यारसा गंबू के कारोबारियों में दिखने लगा है।
बागेश्वर, चंद्रशेखर द्विवेदी : देश में छाई आर्थिक मंदी व कृत्रिम तरीके से हो रहे उत्पादन का असर यारसा गंबू के कारोबारियों में दिखने लगा है। पिथौरागढ़, बागेश्वर जिले में पिछले तीन महीने से कोई भी खरीदार कारोबारियों के पास नहीं पहुंचा है। हाल यह है इस वर्ष बाजार भाव केवल दो से तीन लाख रुपया किलो मिल रहा है। इससे यारसा गंबू के कारोबारी काफी परेशान हैं।
पिथौरागढ़ और बागेश्वर जिले के उच्च हिमालयी क्षेत्रों में यारसा गंबू बहुतायत में होता है। पिथौरागढ़ जिले में 37 व बागेश्वर में छह वन पंचायतों से यारसा गंबू का चुगान होता है। इसके लिए सरकार लाइसेंस भी जारी करती है। यहां लोग प्रतिवर्ष 500 किलो तक यारसा गंबू का चुगान करते हैं। लगभग 500 करोड़ का प्रतिवर्ष कारोबार होता है। सरकार को भी इससे अच्छा राजस्व मिलता था। जो दोनों जिलों की आॢथकी का प्रमुख जरिया था। इस बार देश में छाई मंदी का असर साफ दिखने लगा है। चुगान को तीन माह बीत चुके हैं। अभी तक कोई भी खरीदार कारोबारियों के पास नहीं पहुंचा है। जिन कारोबारियों के पास लाइसेंस है, वे नेपाल व अन्य जगहों पर माल बेचने की कोशिश कर रहे हैं, जहां उन्हें वहां काफी कम दाम मिल रहे हैं। इस बार एक किलो यारसा गंबू के केवल दो से तीन लाख तक मिल रहे हैं, जिसके बीते वर्षों में आठ से 10 लाख तक मिलते थे।
पिथौरागढ़ जिले के कारोबारी मदकोट निवासी हरी सिंह, मुनस्यारी निवासी रतन प्रसाद, धारचूला निवासी सोनू सिंह, बदियाकोट निवासी राम सिंह ने बताया कि उनका माल पूर्व में तत्काल बिक जाता था। खुद खरीदार उनसे संपर्क करते थे। इस बार अभी तक कोई नहीं पहुंचा है। मंदी के असर से कोई खरीदार पैसा निवेश करने से डर रहा है। अगर ऐसा ही रहा तो अगले वर्षों से कम ही लोग चुगान के लिए जाएंगे।
कृत्रिम उत्पादन बढ़ा
बढ़ते कारोबार को देखते चीन ने भी अपने यहां उत्पादन शुरू कर दिया है। कई लोग कृत्रिम तरीके से भी उत्पादन करने लगे हैं। नेपाल, भूटान, थाइलैंड आदि देशों में भारत के यारसा गंबू की काफी डिमांड थी। अब इन बाजारों में कृत्रिम तरीके से उगी गंबू पहुंचने लगी है, जिसके दाम अपेक्षाकृत कम हैं।
दो साल तक हो सकती है संरक्षित
अगर यारसा गंबू को फफूंद से बचाया जाए तो यह दो साल तक संरक्षित हो सकती है। फफूंद इसकी दुश्मन।
शक्तिवर्धक के रूप में प्रयोग
हिमालयी जड़ी यारसा गंबू का उपयोग शक्तिवर्धक के रूप में होता है। इसी कारण काफी डिमांड है। हर वर्ष इसकी डिमांड बढ़ती जा रही है।
उत्पादन पर भी पड़ा असर
एके श्रीवास्तव, एसडीओ, वन विभाग ने बताया कि यारसा गंबू को चुगान आदि के लिए लाइसेंस जारी किए गए हैं। इस बार बर्फ अधिक समय तक रहने से उत्पादन पर भी असर पड़ा है। किन कारणों से खरीदार नही पहुंच रहे, यह कहा नहीं जा सकता।
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