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Raksha Bandhan 2020 : पीरूल की राखियां बनवा विज्ञानियों ने महि‍लाओं के लिए खोले स्वरोजगार के द्वार

रक्षा बंधन के पर्व पर गांवों में मेक इन इंडिया की सोच विस्तार लेगी। चीड़ की पत्तियां यानी पीरूल से बनीं अलग अलग डिजाइन की राखियां ग्रामीण बाजार में उतारी जाएंगी।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Sat, 01 Aug 2020 08:40 PM (IST)Updated: Sat, 01 Aug 2020 08:40 PM (IST)
Raksha Bandhan 2020 : पीरूल की राखियां बनवा विज्ञानियों ने महि‍लाओं के लिए खोले स्वरोजगार के द्वार
Raksha Bandhan 2020 : पीरूल की राखियां बनवा विज्ञानियों ने महि‍लाओं के लिए खोले स्वरोजगार के द्वार

अल्मोड़ा, जेएनएन : वैश्विक महामारी कोरोना फिर गलवान घाटी पर चीन से तनातनी को अवसर में बदलने के लिए विज्ञानियों ने एक और कदम उठाया है। स्वदेशी उत्पादों की पुरजोर वकालत के बीच रक्षा बंधन के पर्व पर गांवों में 'मेक इन इंडिया' की सोच विस्तार लेगी। चीड़ की पत्तियां यानी पीरूल से बनीं अलग अलग डिजाइन की राखियां ग्रामीण बाजार में उतारी जाएंगी। अभिनव प्रयोग के जरिये आत्मनि रर ग्राम का संदेश दे महिलाओं को स्वरोजगार से भी जोड़ने की कोशिश होगी। खास बात कि कोसी जलागम के खड़कूना गांव की महिलाओं द्वारा तैयार राखियां जांबाजों के लिए कुमाऊं रेजिमेंट (केआरसी) मुख्यालय रानीखेत भी पहुंचाई जा रही।

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गांवों में इस बार बहनें भाइयों की कलाई पर स्वदेशी पर्वतीय राखियां बांधेंगी। जीबी पंत राष्ट्रीय हिमालयी पयरवरण शोध संस्थान कोसी कटारमल के तकनीकी परिसर में महिलाओं द्वारा तैयार इन राखियों को प्रयोग के तौर पर अबकी ग्रामीण क्षेत्रों के छोटे बाजारों में उपलब्ध कराया जा रहा। महिला हाट को अलग से 500 राखियां तैयार करने का जिम्मा दिया गया है। इसमें ग्रामीण महिलाओं को जोड़ा गया है। ताकि स्वदेशी उत्पाद से पयरवरण संरक्षण व स्वरोजगार को बढ़ावा मिल सके। सहायक समन्वयक परियोजना जीबी पंत संस्थान डॉ. सतीश आयर ने बताया कि कोसी जलागम के ज्योली, खड़कूना, कनेली, बिशरा, कुज्याड़ी, दिलकोट के साथ ही प्रयोग के तौर पर शौकियाथल व कठपुडि़या बाजार में पीरूल की राखियां उतारी गई हैं। इसमें खड़कूना गांव की महिलाएं ज्यादा जुड़ी हैं।

ठीठे के टुकड़ों का भी सदुपयोग

जीबी पंत राष्ट्रीय हिमालयी पयरवरण शोध संस्थान कोसी कटारमल के ग्रामीण तकनीकी परिसर में 15 से 20 महिलाएं चार डिजाइन में आकर्षक राखियां तैयार कर चुकीं। बीते वर्ष 300 राखियां पसंद किए जाने के बाद अबकी प्रयोग के तौर पर सं या बढ़ाई गई है। परियोजना से जुड़े डॉ. सतीश आयर कहते हैं कि पीरूल के साथ ही चीड़ फल यानी ठीठे के टुकड़ों को सजावटी सामग्री के रूप में इस्तेमाल किया गया है।

सीमांत में रिंगल की चमक

राष्ट्रीय हिमालयी अध्ययन मिशन के तहत भंडारीगांव गंगोलीहाट (पिथौरागढ़) में भी सामाजिक संस्था उत्तरापथ से जुड़ी महिलाएं बांस प्रजाति के रिंगाल की टिकाऊ व आकर्षक राखियां तैयार कर बाजार में उतारेंगी। यहां 50 से ज्यादा महिलाओं के बूते हस्तशिल्प कारीगरों का पूरा कैडर ही बनाया गया है। बीते वर्ष रक्षाबंधन के पर्व से पूर्व 6000 से ज्यादा डिजाइनर राखियां बाजार में उतारीं थीं। इससे महिलाओं को 60 हजार रुपये की आमदनी हुई थी।


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