कौन हैं सफेद दाग की दवा खोजने वाले डा. हेमंत पांडे, डीआरडीओ में दस साल तक किया शोध
डा. हेमंत पांडे डीआरडीओ के हर्बल गार्डन में पहुंचे तो उनसे कहा गया कि एक ऐसी दवा बनाई जानी है जिसका इलाज अभी तक नहीं है। फिर उन्होंने देखा कि ल्यूकोडर्मा जिसे श्वेत कुष्ठ भी कहते हैं। जिसका दुनिया भर में कारगर इलाज संभव नहीं है।
गणेश जोशी, हल्द्वानी : अगर जुनून हो और कुछ करने की लगन हो तो सफलता कहीं से भी हासिल की जा सकती है। छोटे से गांव मझेड़ा में जन्मे डा. हेमंत पांडे ने कुमाऊं में ही पढ़ाई और इसी क्षेत्र में सेवारत रहते हुए अनुसंधान किया। उनके 10 वर्ष के रिसर्च से तैयार सफेद दाग (ल्यूकोडर्मा) की दवा का लाभ अब पूरी दुनिया उठा रही है। इस उपलब्धि के लिए उन्हें साइंटिस्ट आफ द ईयर का पुरस्कार भी मिल चुका है।
नैनीताल जिले के मझेड़ा गांव निवासी डा. पांडे ने कुमाऊं विश्वविद्यालय के सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय परिसर अल्मोड़ा से बीएससी की और फिर डीएसबी परिसर से आर्गेनिक केमिस्ट्री में एमएससी की उपाधि ली। गढ़वाल विश्वविद्यालय से पीएचडी करने के बाद रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) में विज्ञानी के पद पर उनका चयन हुआ। तीक्ष्ण बुद्धि और जुनून के धनी डा. पांडे डीआरडीओ के हर्बल गार्डन में पहुंचे तो उनसे कहा गया कि एक ऐसी दवा बनाई जानी है, जिसका इलाज अभी तक नहीं है। फिर उन्होंने देखा कि ल्यूकोडर्मा जिसे श्वेत कुष्ठ भी कहते हैं। जिसका दुनिया भर में कारगर इलाज संभव नहीं है।
इस बीमारी से शारीरिक परेशानी तो कुछ नहीं लेकिन मानसिक अवसाद तक की स्थिति बन जाती है। डा. पांडे ने इसी समस्या से निजात दिलाने की ठानी। उन्होंने डीआरडीओ के वरिष्ठ विज्ञानी और हर्बल मेडिसिन डिविजन के हेड रहते हुए 10 वर्ष तक अनुसंधान किया और सफलता हासिल की। पहाड़ों में 25 वर्षों से जड़ी-बूटियों पर शोध कर रहे डा. पांडे ने बताया किआयुर्वेदिक तरीके से बनाई गई डीआरडीओ की इस दवा को निजी कंपनी एमिल फार्मास्युटिकल ने 2011 में बाजार में उतार दिया था। जिसे ल्यूकोस्किन नाम दिया गया है। यह दवा 65 से 70 प्रतिशत कारगर है। दवा मलहम के तरह लगाने और खाने दोनों तरीके से इस्तेमाल की जाती है।
2020 में मिला अवार्ड
दिसंबर, 2020 में वरिष्ठ विज्ञानी डा. पांडे को जड़ी-बूटियों से सफेद दाग की दवा तैयार करने पर 'साइंटिस्ट ऑफ द ईयर अवार्ड' से सम्मानित किया गया। यह सम्मान उन्हें रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने प्रदान किया। डा. पांडे की इस रिसर्च का लाभ पूरी दुनिया को मिल रहा है।
बीमारी होने के 14 से अधिक कारण
डा. पांडे ने बताया कि ल्यूकोडर्मा होने के 14 से अधिक कारण हैं। अनुसंधान से पहले इनके कारणों को खोजा गया। यह बीमारी 30 प्रतिशत जेनेटिक है। इसके अलावा खट्टी चीजों ज्यादा खाने से भी होता है। और भी बहुत कारण हैं। इसके बाद प्लांट खोजे गए और फिर उनका टाक्सिक टेस्ट किए गए। पहले पशुओं पर आजमाया गया और फिर डाक्टरों से संपर्क कर मरीजों में दवा का ट्रायल हुआ। परिणाम सकारात्मक आने के बाद पेटेंट किया गया।
तब खर्च हुए थे एक करोड़
डीआरडीओ ने दवा बनाने में करीब एक करोड़ रुपये खर्च किया था, लेकिन अब तक इस दवा से दो करोड़ 30 लाख रुपये राजस्व मिल चुका है।
एडवांस वर्जन अब चार कंपनियों को दिया
डा. पांडे बताते हैं, दवा का एडवांस वर्जन भी तैयार किया गया है। इसका भी पेंटेंट हो चुका है। इसे अब चार और कंपनियां भी बाजार में उतार चुकी हैं।
खुशी और बढ़ जाती है जब लड़की कार्ड देकर जाती है
डा. पांडे बताते हैं, यह बीमारी फैलने वाली नहीं है। फिर भी लोग घबराते हैं। डरते हैं और मरीज से दूर रहते हैं। यह कुष्ठ रोग भी नहीं है। तब और खुशी मिलती है तो जब कोई लड़की इस बीमारी से मुक्त हो चुकी होती है और शादी का कार्ड देने पहुंच जाती है।