ग्राफीन से शुद्ध बनाएंगे नैनी झील का पानी, नौ लाख की रकम जारी
भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय नैनीताल व अन्य स्थानों के पानी को शुद्ध करने के लिए एक शोध परियोजना को मंजूरी दी है ।
नैनीताल, जेएनएन : सरोवर नगरी की पहचान बनी झील के पानी को शुद्ध करने के लिए भारत सरकार की ओर से नई पहल की जा रही है। भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय नैनीताल व अन्य स्थानों के पानी को शुद्ध करने के लिए एक शोध परियोजना को मंजूरी दी है और इसके पहले चरण में नौ करोड़ की रकम जारी भी कर दी हैं।
मंत्रालय की शोध परियोजना में तमाम नामी संस्थानों के साथ ही कुमाऊं विवि के नैनो रिसर्च सेंटर के प्रो. नंदगोपाल साहू भी शामिल किए गए हैं। इस परियोजना को आइआइटी मद्रास के प्रो. लीजी फीलिप व प्रो. पी. प्रदीप लीड करेंगे। कुमाऊं विवि में रसायन विज्ञान विभाग के प्रो. नंदगोपाल साहू ने बताया कि नैनो टेक्नोलॉजी की मदद से नैनो रिसर्च सेंटर में वेस्ट प्लास्टिक से अतिविशिष्ट नैनो मैटेरियल ग्राफीन तैयार किया गया है। इसका उपयोग पॉलीमर, नैनो कंपोजिट, सोलर सेल, ड्रग डिलीवरी, सुपर कैपेसिटर, कंक्रीट मिक्सचर, सड़क निर्माण आदि में किया जाता है। प्रो. साहू द्वारा इस प्रोजेक्ट के अंतर्गत नैनी झील के पानी को ग्राफीन से शुद्ध करने के लिए प्लांट लगाया जाएगा।
कुलपति प्रो. डीके नौडि़याल का कहना है कि इस प्लांट के लगने से नैनीताल वासियों को गुणवत्तायुक्त पानी मुहैया होगा। क्या है ग्राफीन ग्राफीन एक नैनो टेक्नोलॉजी है, जो कार्बन से बना होता है। इसके एक सिंगल कॉर्बन एटम की परत मधुमक्खी के एक छत्ते जैसे होती है, जो स्टील से 200 गुना मजबूत होता है। यह हीरे से भी ज्यादा मजबूत, दुनिया का सबसे पतला, पारदर्शी एवं लचीला मैटेरियल है। यह वजन में भी अति हल्का है। इसकी खोज 2004 में हुई थी। आइआइटी चेन्नई में बनाया गया है सेंटर केंद्र सरकार ने पानी की समस्याओं के प्रमाणित व शोध पर आधारित समाधान के लिए आइआइटी मद्रास में सेंटर फॉर सस्टेनेबल ट्रीटमेंट रीयूज एंड मैनेजमेंट फॉर एफीसिएट एंड सिनेजिस्टिक सोल्यूशन फॉर वाटर बनाया है। इस सेंटर का शुभारंभ 25 जनवरी को केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ. हर्षवर्धन करेंगे।
इस सेंटर से आइआइटी के आठ प्रोफेसरों को भी जोड़ा गया है। इसके अलावा अन्ना विवि, वेलो इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, आइआइटी तिरूपति, सेंट्रल लेदर रिसर्च इंस्टीट्यूट चेन्नई, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टॉक्सीकोलॉजी लखनऊ, इंडियन इस्टीट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च भोपाल, प्रीस्ट यूनिवर्सिटी तमिलनाडू और कुमाऊं विवि भी इस प्रोजेक्ट का हिस्सा हैं। ये संस्थान अपने-अपने क्षेत्र में पानी की गुणवत्ता सुधारने पर काम करेंगे।
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