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पहाड़ के गांवों की दुश्वारियां : जहां डोली है एंबुलेंस और जिंदगी भगवान के भरोसे

पहाड़ का जीवन आज भी पहाड़ जैसी चुनौतियों से भरा है। उत्तराखंड गठन के बाद सरकारें बदलीं। मुखिया बदले। मगर नहीं बदली तो दूर गांवों की तस्वीर व तकदीर।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Sun, 30 Aug 2020 08:31 AM (IST)Updated: Sun, 30 Aug 2020 08:31 AM (IST)
पहाड़ के गांवों की दुश्वारियां : जहां डोली है एंबुलेंस और जिंदगी भगवान के भरोसे
पहाड़ के गांवों की दुश्वारियां : जहां डोली है एंबुलेंस और जिंदगी भगवान के भरोसे

अल्मोड़ा, जेएनएन : पहाड़ का जीवन आज भी पहाड़ जैसी चुनौतियों से भरा है। उत्तराखंड गठन के बाद सरकारें बदलीं। मुखिया बदले। मगर नहीं बदली तो दूर गांवों की तस्वीर व तकदीर। सुदूर पर्वतीय क्षेत्रों में कई गांव हैं जो विकास के दावों की पोल खोल रहे हैं । पहाड़ की तलहटी में बसे इन गांव के लोगों को सड़क तक आने के लिए कई किमी तक पथरीले, संकरे और खतरनाक रास्तों को पैदल पार करना पड़ता है। ग्रामीण मरीजों को डोली में लेकर अस्पताल आते हैं। ऐसे में अक्सर गंभीर रूप से बीमार मरीजों की समय से इलाज ने मिलने के कारण जान चली जाती है । शनिवार को जिले के सल्ट ब्लॉक में एक युवक ने समय से इलाज न मिलने के कारण दम तोड़ दिया ।

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अस्पताल से पहले आ गई मौत

मुसोली के कपसोड़ी तोक सल्ट ब्लॉक निवासी खीम सिंह का पुत्र बालम सिंह (35) दो दिन पूर्व अपनी ननिहाल तोलबुधानी गांव आया था। शनिवार दोपहर वह अपनी बड़ी बहन मीना देवी व भांजे के साथ घर लौटने लगा। तभी उसे सांस लेने तकलीफ हुई। बहन ने ग्रामीणों को आवाज लगाई। युवक के मामा मोहन सिंह व अन्य ग्रामीणों ने डोली की व्यवस्था की। ताकि किसी तरह गांव से तीन किमी दूर रतखाल बाजार स्थित प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र तक ले जाया जा सके। सरपंच देव सिंह मेहता, प्रकाश पांडेय, हिम्मत सिंह आदि बगैर थके डोली उठाकर आगे बढ़े लेकिन एक किमी का सफर तय होते ही युवक ने दम तोड़ दिया।

जिला मुख्यालय से 45 किमी दूर गांव तक नहीं पहुंची सड़े

जनप्रतिनिधियों व अधिकारियों की उपेक्षा से बेजार इन गांवों में गंभीर मरीज को चिकित्सालय ले जाना हो तो डोली से जिंदगी की डोर को बांध खड़ी चढ़ाई पार करनी होती है। जिले का उपेक्षित दुनाड़ गांव जीता जागता उदाहरण है। जिला मुख्यालय से करीब 45 किमी दूर है दुनाड़ गांव (धौलादेवी ब्लॉक)। आबादी यही कोई 300 के आसपास। अल्मोड़ा पिथौरागढ़ हाईवे से लगभग चार किमी दूर इस गांव को सड़क से जोडऩे के लिए ग्रामीण कई बार मांग उठा चुके। चुनावों में वोट के लिए इस ओर रुख करने वाले जनप्रतिनिधि आश्वासन का झुनझुना तो विभागीय अधिकारी वन भूमि का राग अलापते हैं।

डोली में बुजुर्ग को लेकर पांच किमी खड़ी चढ़ाई चढ़े

गांव के गंगा सिंह की 76 वर्षीय पत्नी सरुली देवी तेज बुखार से पस्त पड़ गई। बीते रोज उन्हें प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र धौलादेवी ले जाने के लिए पहले डोली का बंदोबस्त किया गया। लॉकडाउन से गांव में युवाओं की अच्छीखासी फौज है। उन्हें देकर बुलाया गया। तब सरुली देवी को डोली पर बैठाकर संकरे सीसी रोड से चार किमी पैदल खड़ी चढ़ाई चढऩे के बाद हाईवे तक ले जाया गया। यहां से फिर वाहन का इंतजार। गाड़ी बुक कर बुजुर्ग को दो किमी दूर स्वास्थ्य केंद्र पहुंचाया जा सका।

 

दुश्वारियां फिर भी बरकरार

पंचायत निधि से हालांकि दुनाड़ गांव की खड़ी पहाड़ी पर सीसी मार्ग जरूर बना है। मगर बरसात में फिसलन मुश्किल बढ़ा देती है। सीसी मार्ग संकरा है। कहीं क्षतिग्रस्त भी। ऐसे कठिन हालात में गंभीर बीमार खासतौर पर गर्भवती महिलाओं या बुजुर्गों को चिकित्सालय ले जाना हो तो गुजरे जमाने की डोली ही सहारा बनती है।

जनप्रतिनिधियों की भी सुन लीजिए

गोविंद सिंह कुंजवाल, विधायक जागेश्वर ने बताया कि दुनाड़ के लिए हमने कांग्रेस सरकार में ही सड़क को मंजूरी दे दी थी। सड़क तो बन जाती लेकिन वन भूमि का रोड़ा है। काफलीखान से सड़क स्वीकृत है। विधायक निधि से रोड कटान के लिए मैंने ग्रामीणों से नापलैंड की स्थिति स्पष्ट करने को कहा है। कविता देवी, प्रधान दुनाड़ गांव का कहना है कि सुदूर गांवों की कोई सुध नहीं ले रहा। कई बार सड़क के लिए जनप्रतिनिधियों से गुहार लगा चुके। मुझसे पूर्व के ग्राम प्रधान भी मांग उठाते आ रहे। वर्षों बीत गए पर गांव के लिए सड़क नहीं बन सकी। सुरेंद्र सिंह मेहरा, जिला पंचायत सदस्य ने बताया कि ग्रामीण विकास की ओर नीति नियंताओं को गंभीरता से सोचना होगा। हम दुनाड़ व रैपड़ रोड के लिए विभागीय अधिकारियों व राज्य मंत्री रेखा आर्या को ज्ञापन दे चुके हैं। उम्मीद है इस बार सड़क को स्वीकृति मिलेगी।


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