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लिंगानुपात में उत्तराखंड देश में सबसे नीचे, 2005 के बाद लगातार कम हो रही बेटियाें की संख्या

राज्य में लिंगानुपात की स्थिति चिंतनीय है। पिछले 15 वर्षों से सरकार बदलते रही लेकिन बालिकाओं के पैदा होने का आंकड़ा कम होते गया। नीति आयोग की सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) की ताजा रिपोर्ट में उत्तराखंड लिंगानुपात में देश में सबसे नीचे पायदान पर है।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Tue, 08 Jun 2021 06:30 AM (IST)Updated: Tue, 08 Jun 2021 06:30 AM (IST)
लिंगानुपात में उत्तराखंड देश में सबसे नीचे, 2005 के बाद लगातार कम हो रही बेटियाें की संख्या
लिंगानुपात में उत्तराखंड देश में सबसे नीचे, 2005 के बाद लगातार कम हो रही बेटियाें की संख्या

हल्द्वानी, जागरण संवाददाता : बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान के बावजूद राज्य में लिंगानुपात की स्थिति चिंतनीय है। पिछले 15 वर्षों से सरकार बदलते रही, लेकिन बालिकाओं के पैदा होने का आंकड़ा कम होते गया। नीति आयोग की सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) की ताजा रिपोर्ट में उत्तराखंड लिंगानुपात में देश में सबसे नीचे पायदान पर है। राज्य में एक हजार बालकों पर 840 बालिकाएं पैदा हुई हैं। जबकि देश में केरल की स्थिति सबसे बेहतर है। वहां पर एक हजार बालकों में 957 बालिकाएं पैदा हुई हैं।

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2005-06 के सर्वे में अच्छी थी स्थिति

वर्ष 2005-06 के नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के तीसरे अध्ययन में लिंगानुपात की स्थिति बेहतर थी। तब 1000 बालकों के अनुपात में 912 लड़कियां पैदा हुई थी। हालांकि यह आंकड़ा भी राष्ट्रीय औसत से कम था। हालांकि, तब भी राष्ट्रीय औसत 914 था। 10 साल बाद 2015-16 में हुए सर्वे में लिंगानुपात का आंकड़ा घटकर 888 रह गया। 2018 में एक हजार बालकों में 850 और 2019 में 841 बालिकाएं पैदा हुई। हैरानी की बात यह है कि नीति आयोग की सतत विकास लक्ष्य की रिपोर्ट में 2020 में यह आंकड़ा और कम होकर 840 रह गया।

प्रदेश में यह है स्थिति

अल्मोड़ा में सबसे एक हजार लड़कों में 986 बालिकाएं पैदा हुई हैं। वहीं पौड़ी गढ़वाल में सबसे कम 705 लड़कियां ही पैदा हुई हैं। स्वास्थ्य महानिदेशक डा. तृप्ति बहुगुणा का कहना है कि राज्य में पीसीपीएनडीटी एक्ट पूरी तरह सक्रिय है। जिला स्तर पर टीम नियमित मॉनिटरिंग करती है। अल्ट्रासाउंड पर ट्रैकर भी लगे हैं। यह सर्वे रिपोर्ट पहले का है। उम्मीद है कि आगे सर्वे होने पर राज्य में लिंगानुपात की स्थिति बेहतर देखने को मिलेगी।

पांच साल पहले मिली थी चेतावनी

रजिस्ट्रार जनरल और भारत के जनगणना कमिश्नर ने संयुक्त रूप से जो अध्ययन किया था, उसके मुताबिक 2016 में रिपोर्ट्स में कहा गया था कि उत्तराखंड में बच्चों का लिंगानुपात 2021 में 800 के आसपास पहुंच जाएगा। यह साफ तौर पर एक चेतावनी थी, लेकिन उत्तराखंड ने इस दिशा में गंभीर प्रयास करने में चूक ​की।

उत्तराकाशी की खबरों ने चौंकाया था!

दो साल पहले राज्य के उत्तरकाशी इलाके से बालक बालिका लिंग अनुपात को लेकर जो खबरें आई थीं, वो भी खतरे की घंटी की तरह थीं, लेकिन ताज़ा आंकड़े कह रहे हैं कि उनकी गूंज भी बेअसर रही। 2019 में जुलाई के महीने में इस तरह की​ रिपोर्ट्स प्रमुखता से छपी थी कि उत्तरकाशी के 132 गांवों में तीन महीने से किसी बालिका का जन्म न होना देखा गया था, जबकि इतने समय में 216 बालकों का जन्म हुआ था।

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