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हल्द्वानी के खूबसूरत बाग बने कंक्रीट के आशियाने

ब्रिटिश काल के बगीचे पर्यायवरण के संाक्षण के लिए संरक्षित किए गए थे पर अब उनपर मकान बन चके हैं।

By JagranEdited By: Published: Mon, 17 Sep 2018 10:40 PM (IST)Updated: Mon, 17 Sep 2018 10:40 PM (IST)
हल्द्वानी के खूबसूरत बाग बने कंक्रीट के आशियाने
हल्द्वानी के खूबसूरत बाग बने कंक्रीट के आशियाने

गणेश जोशी, हल्द्वानी : बाग का नाम सुनते ही दिमाग में हरियाली छाने लगती है। ऐसी हरियाली, जिसमें खूबसूरत पेड़-पौधे उगे हों, ठंडी हवा के साथ फूलों की खुशबू महक रही हो, लेकिन हल्द्वानी शहर के इन खूबसूरत बागों में अब हरियाली के बजाय कंक्रीट के आशियाने दिखते हैं। जहां अंधाधुध निर्माण हो गया और बहुमंजिली इमारतें बन गई। सिर्फ नाम के लिए ही बाग व बगीचे रह गए हैं। ब्रिटिश शासनकाल में बने अधिकांश बगीचों का व्यावसायिक उपयोग पूरी तरह प्रतिबंधित था। इसके बावजूद अपनी जरूरत के हिसाब से नियम तय कर दिए गए। एक बार फिर हाई कोर्ट की सख्ती के बावजूद इस तरह के मामले चर्चा में आ गए हैं। इसलिए बनाए थे बाग

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ईस्ट इंडिया कंपनी के समय ही इन बागों को बनाया गया था। इन्हें कंपनी बाग के नाम से भी जाना जाता था। इनकी देखरेख करने वालों को ही निर्धारित लीज पर इन बगीचों की जिम्मेदारी दी गई थी। यह बगीचे केवल पैतृक रूप से ही हस्तांतरित हो सकते थे। तब इन बागों को बेचना और इसमें निर्माण तक प्रतिबंधित था। ये हैं हल्द्वानी के मुख्य बाग

काबुल का बगीचा, सफदर का बगीचा, सुल्तान का बगीचा, 12 बीघा, भोलनाथ गार्डन, मुनगली गार्डन, कंपनी बाग, इंतजार का बगीचा, चांद मियां का बगीचा आदि शामिल हैं। बगीचों के नष्ट होने से बिगड़ा पर्यावरण संतुलन: प्रो. पांडे

उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय में समाज विज्ञान विभाग के निदेशक प्रो. गिरिजा पांडे कहते हैं कि स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र विकसित करने का सबसे अच्छा तरीका बगीचे हैं। इन बगीचों में पेड़-पौके ही नहीं पशु-पक्षियों से लेकर कीट-पतंगों का पूरा संसार रहता है। कार्बन सोखने से लेकर पर्यावरण के संरक्षण के लिए बगीचों का बहुत अधिक महत्व है। ब्रिटिश काल से ही बने बगीचों के खत्म होने से शहर का प्राकृतिक असंतुलन बढ़ा है। जैव विविधता खत्म होने की कगार में पहुंचने लगी है। विकास के नाम पर पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने की यह स्थिति भविष्य में मनुष्यों के लिए खतरनाक साबित होगी। बाग को नजूल भूमि तब्दील किया गया।

अब्ज प्रसाद बाजपेयी, उप जिलाधिकारी ने बताया कि पूर्व में बाग थे। जिनके पास ये बाग थे, उन्हें बागदारी का अधिकार था, लेकिन इस भूमि को बेचा नहीं जा सकता था। बाद में नजूल भूमि में रूप में परिवर्तित कर दिया गया। हालांकि, जो बाग बचे हैं, उनका बेहतर इस्तेमाल किया जा सकता है।


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