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पुरानी रणनीति, चेहरे और छिटके कार्यकर्ताओं को समेटने में ही फंस कर जा रही यूकेडी

उत्तराखंड क्रांति दल की पहचान राज्य निर्माण में अहम भूमिका निभाने वाली पार्टी के रूप में रही है। लंबे समय तक इस दल के साथ भावनात्मक जुड़ाव भी बना रहा। राज्य बनने के बाद 2002 में हुए विधानसभा चुनाव में उक्रांद ने चार सीटें हासिल भी कर ली थी।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Sun, 03 Oct 2021 07:29 AM (IST)Updated: Sun, 03 Oct 2021 07:29 AM (IST)
पुरानी रणनीति, चेहरे और छिटके कार्यकर्ताओं को समेटने में ही फंस कर जा रही यूकेडी
पुरानी रणनीति, चेहरे और छिटके कार्यकर्ताओं को समेटने में ही फंस कर जा रही यूकेडी

गणेश जोशी, हल्द्वानी : उत्तराखंड क्रांति दल की पहचान राज्य निर्माण में अहम भूमिका निभाने वाली पार्टी के रूप में रही है। यही कारण है कि लोगों का लंबे समय तक इस दल के साथ भावनात्मक जुड़ाव भी बना रहा। राज्य बनने के बाद पहली बार 2002 में हुए विधानसभा चुनाव में उक्रांद ने चार सीटें हासिल भी कर ली थी। तब से अब 2022 के विधानसभा चुनाव की तैयारियों पर नजर दौड़ाएं तो भाजपा, कांग्रेस से लेकर आम आदमी पार्टी ने माइक्रो प्लान तैयार कर चुनावी रणनीति पर अमल शुरू कर दिया है। वहीं उक्रांद अपने पुरानी रणनीति, चेहरे व मुद्दों के अलावा छिटके कार्यकर्ताओं को समेटने तक ही सीमित नजर आ रहा है।

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25 जुलाई, 1979 में स्थापित उत्तराखंड का पहला क्षेत्रीय दल कभी जनमुद्दों को लेकर आक्रामक था। रणनीति ऐसी थी कि एक हुंकार पहाड़ के हर कोने में गूंज जाती थी। राज्य आंदोलन को हर कोई उठ खड़ा हो जाता था। जैसे-जैसे समय बीता। उक्रांद कमजोर होते गया। वरिष्ठ नेता आपस में ही उलझ गए। अब राज्य बनने के बाद पांचवां विधानसभा चुनाव होना है। जहां भाजपा ने माइक्रो प्लान तैयार कर बूथ स्तर पर कमेटी बनाकर चुनाव जीतने की रणनीति बना ली है, वहीं कांग्रेस भी गांव-गांव जाकर हुंकार भर रही है। आम आदमी पार्टी भी हर तरह का चुनावी पासा फेंककर माहौल अपने पक्ष में करने में जुटी है।

ऐसे में राज्य का क्षेत्रीय दल उक्रांद अपने छिटके हुए कार्यकर्ताओं को समेटने को लेकर ही रणनीति नहीं बना सका है। नए चेहरे पार्टी से नहीं जोड़े जा सके हैं। इस स्थिति को लेकर पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष काशी सिंह ऐरी कहते हैं, हमारी रणनीति पुरानी है और मुद्दे भी पुराने हैं। कार्यकर्ताओं को फिर से एकजुट कर रहे हैं। कैंडिडेट तय होने के बाद वे अपने-अपने विधानसभा क्षेत्र में भू-कानून, राजधानी के सवाल को उठाएंगे। बेरोजगारी, विकास, मूलभूत सुविधाएं न मिलने के मुद्दे को जनता के सम्मुख रखेंगे। प्रदेश उपाध्यक्ष भुवन जोशी का भी यही कहना है, हमने प्रभारी तय किए हैं। जिलाध्यक्ष व जिला प्रभारी तैयारियों में जुट गए हैं। इन दोनों नेताओं का कहना है कि राष्ट्रीय दलों की अपेक्षा हमारे पास संसाधनों की कमी है, इसलिए हम लोगों का प्रचार नहीं दिखता है।


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