पिथौरागढ़ में फिर शुरू हुआ अंगोरा शशक पालन, आत्मनिर्भर बनेंगे आदिवासी, ये है योजना
सीमांत जिले में खत्म हो चुका अंगोरा शशक पालन फिर शुरू होगा। नाबार्ड की आदिवासी विकास निधि योजना के तहत इसके लिए एक करोड़ की धनराशि खर्च की जाएगी।
पिथौरागढ़, जेएनएन : सीमांत जिले में खत्म हो चुका अंगोरा शशक पालन फिर शुरू होगा। नाबार्ड की आदिवासी विकास निधि योजना के तहत इसके लिए एक करोड़ की धनराशि खर्च की जाएगी। योजना के तहत शामिल किए जाने वाले 200 किसानों के लिए 165 बगीचे भी तैयार किए जाएंगे।
सीमांत तहसील मुनस्यारी में अंगोरा शशक पालन की अच्छी संभावनाएं हैं। बेहद नरम और गरम ऊन देने वाले अंगोरा शशक पालन को बढ़ाने के लिए अब नाबार्ड मदद करेगा। इसके लिए आदिवासी विकास निधि से एक करोड़ की धनराशि स्वीकृत की गई है। योजना के लिए मुनस्यारी तहसील के आठ गांव चयनित किए गए हैं। इन गांवों में रहने वाले बीपीएल परिवारों को योजना में शामिल किया गया है। अंगोरा शशक पालन के साथ ही स्थानीय स्तर पर उत्पादित होने वाले फलों के 165 बगीचे भी तैयार किए जाएंगे। इनमें 130 बगीचे एक एकड़ के और शेष आधा एकड़ के होंगे। योजना का संचालन निधि संस्था के माध्यम से होगा।
इन गांवों में चलेगी योजना
1. क्वीरीजिमियां
2. जोशा
3. इमला
4. बुंगा
5. घोरपट्टा
6. कनलका
7. सरमोली
8. धापा
बनेगी किसानों की कंपनी
पिथौरागढ़: योजना के तहत चयनित किसानों की एक कंपनी बनाई जाएगी। कंपनी एक्ट के तहत रजिस्ट्रार ऑफ कंपनी कार्यालय में पंजीकृत होने वाली किसानों की कंपनी उत्पादन का विक्रय करेगी। सरकार की योजना के तहत 100 करोड़ तक का कारोबार करने वाली किसान कंपनी को किसी तरह का टैक्स नहीं देना होगा।
आदिवासियों का अार्थिक स्तर सुधारा जाएगा
सुनील पांडे, निदेशक, स्वयंसेवी संस्था निधि, पिथौरागढ़ ने बताया कि ट्राइबल एरिया के लोगों के आर्थिक स्तर का ऊंचा करने के लिए योजना बेहद महत्वपूर्ण है। योजना के तहत अंगोरा शशक पालन को बढ़ावा दिया जाएगा साथ ही नींबू प्रजाति के फल, सब्जी उत्पादन और मत्स्य पालन के कार्य भी योजना में शामिल हैं। प्रारंभिक तैयारियां पूरी हो चुकी हैं। जल्द ही योजना धरातल पर उतरने लगेगी।
विशेष ऊन है अंगोरा की पहचान
अंगोरा खरगोश की पहचान उससे मिलने वाली विशेष ऊन के कारण है। बेहद हल्की और गर्म ऊन के लिए ही अंगोरा खरगोश पाले जाते हैं। इस खरगोश का मूल स्थान तुर्की का अंगोरा इलाका है। दुनिया में इंग्लिश, फ्रेंच, साटिन, जिपांट, जर्मन पांच प्रकार के अंगोरा खरगोश पाए जाते हैं। इनमें जर्मन प्रजाति सबसे अधिक पहचानी जाती है। अंगोरा पालन के लिए औसत तापमान 12 से 18 डिग्री के बीच होना जरू री है। इससे अधिक तापमान में इस खरगोश की ऊन की गुणवत्ता प्रभावित होने लगती है। अंगोरा एक वर्ष में एक भेड़ से छह गुना अधिक ऊन देता है। ऊन का उपयोग गर्म कपड़े, टोपियां आदि बनाने में होता है।
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