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सड़क पहुंच जाए तो ट्रैकिंग के शौकीनों के लिए जन्नत बन जाए उत्तराखंड की ये जगह, हिमायल की खूबसूरती करती है मुग्ध

उत्तराखंड में यूं तो खूबसूरत पर्यटन स्थलों की कमी नहीं है। यहां लगभग सभी धार्मिक स्थल भी पर्यटन का केन्द्र हैं। लेकिन पिथौरागढ़ से हिमालय दर्शन की बात ही कुछ और है।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Tue, 25 Aug 2020 02:01 PM (IST)Updated: Tue, 25 Aug 2020 02:01 PM (IST)
सड़क पहुंच जाए तो ट्रैकिंग के शौकीनों के लिए जन्नत बन जाए उत्तराखंड की ये जगह, हिमायल की खूबसूरती करती है मुग्ध
सड़क पहुंच जाए तो ट्रैकिंग के शौकीनों के लिए जन्नत बन जाए उत्तराखंड की ये जगह, हिमायल की खूबसूरती करती है मुग्ध

पिथौरागढ़, ओपी अवस्थी : उत्तराखंड में यूं तो खूबसूरत पर्यटन स्थलों की कमी नहीं है। यहां लगभग सभी धार्मिक स्थल भी पर्यटन का केन्द्र हैं। लेकिन पिथौरागढ़ से हिमालय दर्शन की बात ही कुछ और है। मुनस्यारी और धारचूला तहसीलों के मध्य स्थित छिपलाकोट पर्वत का पर्यटन और धार्मिक दोनों दृष्टि से विशेष महत्व है। अतीत से ही स्थानीय लोग इसे अर्द्ध कैलास नाम से जानते हैं। मान्यता है कि यहां की यात्रा करने के बाद कैलास मानसरोवर के आधे फल मिल जाते हैं। इतना ही नहीं छिपलाकेदार मध्य हिमालय में कुमाऊं का सबसे खूबसूरत स्थल है। दुर्भाग्य यह है कि आज तक यहां पहुंचने के लिए सुगम मार्ग नहीं बन सका है।

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देवताओं के प्रिय पुष्प ब्रम्ह कमल का है जंगल

छिपलाकेदार की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहां पर देवताओं के प्रिय पुष्प ब्रह्मकमल के जंगल हैं तो नाजरीकोट से नीचे चर्थी बुग्याल है जो अपनी खूबसूरती के लिए जाना जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार इस स्थल पर तैंतीस कोटि देवता विचरण करते हैं। यहां पर चार से पांच बड़ी झीलें हैं । खतरनाक मार्गों से होकर यहां पहुंचने वाले छिपलाकेदार के दीवाने हो जाते हैं परंतु प्रकृति का यह सौंदर्य केवल मार्गो के चलते दुनिया की नजर से अभी दूर है। यूपी में रहने के दौरान धारचूला की तरफ से छिपलाकोट तक ट्रैक निर्माण का प्रस्ताव तैयार हुआ था। विकास खंड स्तर से कार्य चला परंतु कुछ भी नहीं हुआ। मध्य हिमालय का खूबसूरत स्थल आज भी पर्यटकों और ट्रैकरों की नजर से दूर है।

भादौ माह में होती है पूजा अर्चना

छिपलाकोट में पांच विशाल कुंड हैं। जिसमें हुक्क्षर कुंड, ब्रह्म कुंड, कटौज कुंड, हर चंद और बाल चंद कुंड हैं। इन कुंडों के चारों तरफ ब्रह्मकमल खिले रहते हैं। छिपलाकोट एक ऐसा स्थल है जहां पर भादौ माह में पूजा अर्चना होती है। इस अति दुर्गम स्थल पर ग्रामीण भक्त नंगे पैर पहुंचते हैं। क्षेत्र के किशोरों का यहां पर उपनयन संस्कार होते हैं।

चार अलग-अलग स्थानों से पहुंचते हैं छिपलाकेदार

छिपलाकोट पहुंचने के लिए चार मार्ग हैं । जिसमें एक मार्ग धारचूला के रांथी, खेत, खेला, जुम्मा होकर जाता है । दूसरा मार्ग बंगापानी के बरम से कनार होते हुए और तीसरा मार्ग बंगापानी के ही जाराजिबली से बैकोट , भनार होते तो चौथा मार्ग बंगापानी के ही सेरा से है। सभी स्थानों से दो दिन की कठिन यात्रा कर पहुंचा जाता हैञ

चारों मार्गों को जोड़ कर सर्किट बनने से पर्यटन को लगेंगे पंख

धारचूला के रांथी , खेत से होकर यदि ट्रैक बने जो छिपलाकोट, नाजुरीकोट से होते हुए अन्य तीन मार्गो से जोड़ा जाए तो यह मध्य हिमालय में उच्च हिमालय जैसे सौंदर्य से भरपूर सबसे आकर्षक ट्रैक होगा। कॉसमस ट्रेक के सुरेंद्र पवार और जगदीश भट्ट का कहना है कि यदि इस ट्रेक में सही मार्ग बना दिए जाएं तो यह हिमालयन रेंज का सबसे आकर्षक ट्रेक होगा और पर्यटन को पंख लगेंगे। रांथी निवासी समाज सेवी केशर सिंह धामी का कहना है कि छिपलाकोट उनकी आस्था का सबसे बड़ा स्थल है। प्रति तीन वर्ष बाद ग्रामीण यहां जाते हैं । यदि छिपलाकोट के लिए मार्ग बने तो यह क्षेत्र की आर्थिकी में सुधार के साथ ही इस क्षेत्र को पर्यटन के क्षेत्र में एक नया मुकाम देगा।


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