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पहाड़ के इस गांव में निमंत्रण देने की है अनोखी परंपरा, सुहागिन महिलाएं घर-घर जाकर बनाती हैं स्‍वास्तिक का चिन्‍ह

जहां आज आधुनिकता और बाजार की अंधी दौड़ में संस्कार खत्म होते जा रहे हैं वहीं पहाड़ के कुछ गांव ऐसे हैं जो आज भी परंपराओं व छीजते संस्कारों को बचाने में लगे हुए हैं।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Fri, 24 Jan 2020 09:25 AM (IST)Updated: Mon, 27 Jan 2020 07:35 PM (IST)
पहाड़ के इस गांव में निमंत्रण देने की है अनोखी परंपरा, सुहागिन महिलाएं घर-घर जाकर बनाती हैं स्‍वास्तिक का चिन्‍ह
पहाड़ के इस गांव में निमंत्रण देने की है अनोखी परंपरा, सुहागिन महिलाएं घर-घर जाकर बनाती हैं स्‍वास्तिक का चिन्‍ह

गरुड़ (पिथौरागढ़) चंद्रशेखर बड़सीला : जहां आज आधुनिकता और बाजार की अंधी दौड़ में संस्कार खत्म होते जा रहे हैं, वहीं पहाड़ के कुछ गांव ऐसे हैं जो आज भी परंपराओं व छीजते संस्कारों को बचाने में लगे हुए हैं। पिथौरागढ़ का ऐसा ही एक गांव है-भेटा। जहां सुहागिन महिलाएं शादी व अन्य शुभ कार्यों पर अपने पारंपरिक परिधानों में सज-धजकर अपने सगे संबंधियों व ग्रामीणों को आमंत्रण देने जाती हैं। जिन लोगों को वे आमंत्रित करने जाती है उनके घरों पर स्‍वास्तिक का चिंह बनाती हैं। वर्षों से चली आ रही यह परंपरा आज भी जीवंत है।

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पारंपरिक परिधान में पिछौड़ा ओढ़कर घर-घर जाती हैं सुहागिन महिलाएं

पिथौरागढ़ जिले के तहसील गरुड़ के गरुड़-कौसानी मार्ग पर स्थित भेटा गांव में आधुनिकता के इस दौर में भी निमंत्रण देने की अनूठी परंपरा है। यहां निमंत्रण कार्डों के माध्यम से नहीं दिया जाता है, बल्कि घर-घर जाकर संस्कारों के साथ दिया जाता है। गांव के नवनिर्वाचित ग्राम प्रधान कृपाल दत्त लोहुमी बताते हैं कि भेटा गांव में शादी या अन्य शुभ कार्यों पर निमंत्रण देने सुहागिन महिलाएं जाती हैं। दो सुहागिन महिलाएं पिछौड़ा ओढ़कर कुमाऊंनी परिधानों में सज-धजकर टीका की थाली व नारियल लेकर घर-घर जाती हैं और प्रत्येक परिवार के मुख्य दरवाजे पर स्वास्तिक का चिह्न बनाती हैं। उसके बाद उस परिवार को निमंत्रण दिया जाता है। गांव की विशेषता यह भी है कि यहां केवल एक ही जाति (लोहुमी) के लोग रहते हैं। संस्कारों की आकर्षक बानगी आज भी भेटा गांव में देखने को मिलती है।

कत्यूरी शासनकाल से ही चली आ रही यह परंपरा

कत्यूर घाटी में सातवीं-आठवीं शताब्दी से कत्यूरी शासन प्रारंभ हुआ। भेटा गांव में यह परंपरा कत्यूरी शासनकाल से ही चली आ रही है। भेटा के लोहुमी परिवार मां कोट भ्रामरी के उपासक हैं। उन्हें भेटा गांव भी कत्‍यूर वंश के राजाओं ने ही भेंट में दिया। बुजुर्ग बताते हैं कि उस समय राजाओं का स्वागत सत्कार इसी प्रकार होता होगा, जिसने समय के साथ एक परंपरा का स्थान ले लिया।

घर आकर देखा जाता है स्वास्तिक का चिह्न

भेटा गांव में जब महिलाएं निमंत्रण देने जाती हैं तो सबसे पहले स्वास्तिक का चिह्न बनाती हैं। यदि कोई परिवार उस समय घर में नहीं होता है, तो उसके घर के दरवाजे पर भी स्वास्तिक का चिह्न बनाया जाता है। निमंत्रण पड़ोसी को दिया जाता है। घर लौटने पर वह परिवार सबसे पहले स्वास्तिक के चिह्न को ही देखता है। इससे निमंत्रण की पुष्टि भी हो जाती है। भेटा का एक लोहुमी परिवार दो किमी दूर लोहारी में रहता है। महिलाएं दो किमी दूर जाकर भी इसी परंपरा से निमंत्रण देती हैं।

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