एक माह पहले ही लिखी गई थी घर वापसी की पटकथा, हाईकमान व पूर्व सीएम के बीच दिल्ली में बनी थी सहमत
हरीश रावत ने दलित के बेटे को जीवनकाल में सीएम देखने की बात कही थी। तभी से आर्य के कांग्रेस में आने की सुगबुगाहट तेज हो गई थी। दैनिक जागरण ने पेज नगर आठ अक्टूबर को प्रदीप के लिए माहौल या यशपाल पर नजर नामक शीर्षक से खबर लिखी थी।
अरविंद कुमार सिंह, रुद्रपुर। कैबिनेट मंत्री यशपाल आर्य के घर वापसी की एक माह पहले ही दिल्ली में पटकथा लिखी जा चुकी थी। इसके बाद पूर्व सीएम हरीश रावत ने सात अक्टूबर को लखीमपुर घटना के विरोध में बाजपुर से कूच के दौरान रुद्रपुर में मीडिया कर्मियों से दलित के बेटे को जीवनकाल में सीएम देखने की बात कही थी। तभी से आर्य के कांग्रेस में आने की सुगबुगाहट तेज हो गई थी। दैनिक जागरण ने पेज नगर आठ अक्टूबर को प्रदीप के लिए माहौल या यशपाल पर नजर नामक शीर्षक से खबर लिखी थी। जिसकी सोमवर को यशपाल व उनके बेटे के कांग्रेस में दोबारा आने के बाद पुष्टि हो गई।
लखीमपुर खीरी की घटना के विरोध में सात अक्टूबर को पूर्व सीएम रावत ने बाजपुर से लखीमुपर खीरी के लिए कूच किया था। रुद्रपुर पहुंचने पर रावत ने मीडिया से कहा था कि पंजाब में दलित के बेटे को सीएम बनाया गया है। उत्तराखंड में भी दलित के बेटे को जीवनकाल में सीएम देखनाच चाहते हैं। इसी के साथ यशपाल को लेकर चर्चाएं तेज हो गई थीं। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता के मुताबिक करीब एक माह पहले दिल्ली में कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी, पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी से यशपाल आर्य ने मुलाकात की थी। यहीं नहीं, इस बीच नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह व पूर्व सीएम हरीश रावत से भी कई दौर की वार्ता हो चुकी थी। इसी के बाद यह राज्य में दलित के बेटे को सीएम बनाने के बयान रावत देने लगे।
कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता के मुताबिक जब यशपाल आर्य उत्तराखंड में कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष थे तो उसी दौरान दिल्ली में मुलाकात के दौरान सोनिया गांधी ने उनसे सवाल किया था कि क्या उत्तराखंड का सीएम बनोंगे। इस पर यशपाल मुस्करा कर रहे गए। उत्तराखंड में वर्ष, 2012 में कांग्रेस की सरकार बनी तो उस समय यशपाल को कैबिनेट मंत्री बनाया गया था और अच्छे मंत्रालय दिए गए थे। हालांकि राजनीतिक प्रतिद्वंदिता की वजह से आपस में गुटबाजी शुरु हुई तो वर्ष 2017 में विधानसभा चुनाव से कुछ माह पहले वह कमल का दामन पकड़ लिया। उन्हें परिवहन मंत्री बनया गया है। हालांकि वह पांच साल भी कमल का साथ नहीं दे पाए और घर वापसी की चिंता सताने लगी और वह सोमवार को कांग्रसे में दोबारा बेटेे के साथ आ गए। जिस तरह से उत्तराखंड में दलित के बेटे को सीएम बनाने की चर्चा चल रही है और कुछ साल पहले सोनिया गांधी ने यशपाल को सीएम बनने के लिए सवाल किया था। इसे जोड़कर देखा जाए तो यशपाल को सीएम बनाने के लिए प्रस्ताव रखा जा सकता है।
राजनीतिज्ञों के मुताबिक जिस तरह से कृषि कानून के विरोध में तराई में आंदोलन चल रहा है। ऐसे में बाजपुर विधानसभा ज्यादा प्रभावित है। ऐसे में सीट खतरे में पड़ने लगी। राजनीतिक भविष्य को देखते हुए यशपाल ने कांग्रेस में आ गए। यशपाल के कांग्रेस में आने से कांग्रेस और मजबूत होगी और साथ ही खटीमा का राजनीतिक समीकरण भी बदल सकता है। दलित वोट भी कांग्रेस की ओर से खिसक सकता है। हालांकि यह चुनाव के बाद ही पता चल पाएगा।
ये मिलीं थीं जिम्मेदारी
वर्ष, 1989 खटीमा से यशपाल आर्य कांग्रेस से विधायक चुने गए थे। इसके बाद वह वर्ष, 1093 में चुनाव हार गए थे। हालांकि वर्ष, 1995 में वह चुनाव जीत गए थे। खटीमा से ही वर्ष, 1998 में चुनाव हार गए। वर्ष, 2000 में यूपी से उत्तराखंड बना। वर्ष, 2002 में प्रदेश का पहला विधानसभा चुनाव हुआ तो वह आरक्षित मुक्तेश्वर विधानसभा क्षेत्र से विधायक चुने गए थे। उसी साल एनडी तिवारी के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बनी तो यशपाल को विधानसभा अध्यक्ष बनाया गया था।
वर्ष, 2007 से 14 तक तक यशपाल प्रदेश अध्यक्ष थे। वर्ष, 2007 में मुक्तेश्वर से ही विधायक चुने गए थे।वर्ष, 2012 में सुरक्षित नैनीताल विधानसभा सीट से वह विधायक चुने गए थे। उसी साल विजय बहुगुणा ने नेतृत्व में कांग्रेस सरकार बनी तो यशपाल को राजस्व व सिंचाई में कैबिनेट मंत्री बनाया गया था।