यादगार बना साल का आखिरी आसमानी आतिशबाजी का रंगीन नजारा
अद्भुत खगोलीय घटना को लेकर विज्ञानियों ने पूर्वानुमान लगाया था कि इस साल होने जा रही उल्कावृष्टि अविस्मरणीय होगी और ऐसा हुआ भी। रात आठ बजे बाद यह घटना छिटपुट होनी शुरू हो गई। जैसे-जैसे रात गहराती गई चमकदार उल्काओं की बारिश में तेजी आने लगी।
रमेश चंद्रा, नैनीताल : साल की अंतिम आसमानी आतिशबाजी का रंगीन नजारा यादगार बन गया। इस रोमाचक खगोलीय घटना में विविध रंगों से जगमग कर जलते हुए धरती की ओर आती सैंकडों उल्कापिंडों के लोग साक्षी बने। जेमिनिड नाम के शावर को खगोलप्रेमियों ने जमकर कैमरे में कैद किया। यह उल्कावृष्टि रविवार को अंधियारा गहराते ही शुरू हो गई थी। इस अद्भुत खगोलीय घटना को लेकर विज्ञानियों ने पूर्वानुमान लगाया था कि इस साल होने जा रही उल्कावृष्टि अविस्मरणीय होगी और ऐसा हुआ भी। रात आठ बजे बाद यह घटना छिटपुट होनी शुरू हो गई। जैसे-जैसे रात गहराती गई, चमकदार उल्काओं की बारिश में तेजी आने लगी। इस घटना को कैमरे में कैद करने में लगे नैनीताल के एस्ट्रोफोटोग्राफर राजीव दूबे बारापत्थर से तो ज्योलीकोट बेलुआखान से बबलू चंद्रा ऊंची चोटियों पर पहुंचे थे।
उन्होने बताया कि रात एक से दो बजे की बीच यह घटना चरम पर रही, जिसमें एक घटे के दौरान उल्काओं की जबर्दस्त बरसात देखने को मिली। आसमान की कई दिशाओं में यह नजारा देखा जा सका। फैथान नाम के कामेट के कारण होती है यह उल्कावृष्टि आर्यभटट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान एरीज के खगोल विज्ञानी डा. शशिभूषण पाडे ने बताया कि भले ही यह सामान्य खगोलीय घटना है, पर रोमाच से भरी होती है। रोशनी से परे अंधेरी जगह से इस घटना के चरम को देखना आसान होता है। जेमिनिड मेटयोर शावर नाम से परिचित यह खगोलीय घटना हर साल दिसंबर में होती है। फैथान नामक धूमकेतु के छोडे़ गए धूलकणों के कारण यह आतिशबाजी होती है। फैथान की खोज 1983 में हुई थी।