बढ़ते सुसाइड पर बुद्धजीवियों ने जताई चिंता, कहा- जिजीविषा के लिए नकारात्मक माहौल से दूर रहना जरूरी
24 घंटे में पांच लोगों ने अपनी जान गंवा दी। इसके अलावा एक और किशोरी जिंदगी और मौत से जूझ रही है। आत्महत्या की बढ़ती प्रवृत्ति हर किसी को हैरान कर रही है। मनोविज्ञानी मानते हैं कि जिस तरह का नकारात्मक माहौल बन रहा है।
जागरण संवाददाता, हल्द्वानी : जिले में 24 घंटे में पांच लोगों ने अपनी जान गंवा दी। इसके अलावा एक और किशोरी जिंदगी और मौत से जूझ रही है। आत्महत्या की बढ़ती प्रवृत्ति हर किसी को हैरान कर रही है। मनोविज्ञानी मानते हैं कि जिस तरह का नकारात्मक माहौल बन रहा है। छोटी सी बात सहन करने की क्षमता खत्म हो रही है। यह प्रवृत्ति जिजीविषा के भाव को खत्म कर रही है। ऐसी प्रवृति से बचने के लिए उचित माहौल पैदा करना होगा।
केस एक- ढोलीगांव के 25 वर्षीय सुंदर आर्य ने आत्महत्या कर ली। वह छात्रसंगठनों से जुड़ा था। सामाजिक रूप से सक्रिय था। बताया गया कि उसने प्रेमिका के चलते अपनी जिंदगी गंवा दी।
केस दो - धारी क्षेत्र के की दो छात्राएं पहले स्कूल नहीं गई और फिर स्वजनों की डांट भी सहन नहीं कर सकी। दोनों किशोरियां थी। समस्या का समाधान खोजने के बजाय दोनों ने जीवनलीला समाप्त करने का रास्ता चुन लिया।
ये भी हो सकते हैं कारण
- इंटरनेट मीडिया एडिक्शन
- जरूरत से ज्यादा स्वतंत्रता या दबाव
- माता-पिता का ध्यान न देना
- किसी मानसिक बीमारी से ग्रस्त होना
- इंपल्सिव बिहेवियर यानी इमोशन पर कंट्रोल न होना
- स्वजनों के बीच अक्सर लड़ाई होना
रहेंगे सजग तो समाधान भी संभव
- बच्चों को हर समय न झिड़कें
- बच्चों की गलती स्वीकार करें।
- व्यवहार में परिवर्तन पर काउंसलिंग कराएं
- बच्चों की जिज्ञासा का समाधान करें।
- स्पोट्र्स या म्यूजिक एक्टिविटी में लगाएं।
- प्रतिस्पर्धी माहौल से बचने की जरूरत है।
एसटीएच के मनोविज्ञानी डॉ. युवराज पंत ने बताया कि बच्चों को जरूरत के आधार पर ही स्वतंत्रता दें। उनके बदलते व्यवहार पर नजर रखें। वर्तमान में जिस तरह का माहौल है, ऐसे माहौल को लेकर खुद को भी सतर्क रहें। मोबाइल एडिक्शन भी अवसाद का कारण है। कई बार आत्महत्या के बारे में पहले बता देते हैं। ऐसे में सजग रहें। इंपल्सिव बिहेवियर को समझने पर तुरंत काउंसलिंग करा लेनी चाहिए।
एमबीपीजी कालेज मनोविज्ञान के विभागाध्यक्ष डा. रश्मि पंत ने बताया क्रि इस समय माता-पिता की जरूरत से ज्यादा अपेक्षाएं बढ़ गई हैं। बच्चों की हर बात मनवाने की जिद रहती है। बाद में यही जिद गले की फांस बन जाती है। ऐसे में समय रहते चेत जाना चाहिए। बच्चों के मनोव्यवहार को समझने की कोशिश की जानी चाहिए। बच्चों को नैतिक मूल्यों के बारे में समझ पैदा की जानी चाहिए।
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