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नंधौर सेंचुरी से सटे गांवों के मवेशियों का बीमा कराएगा वन विभाग

मानव-वन्यजीव संघर्ष रोकने के लिए वन विभाग नई पहल करने जा रहा है।

By JagranEdited By: Published: Mon, 23 Nov 2020 08:55 PM (IST)Updated: Mon, 23 Nov 2020 08:55 PM (IST)
नंधौर सेंचुरी से सटे गांवों के मवेशियों का बीमा कराएगा वन विभाग
नंधौर सेंचुरी से सटे गांवों के मवेशियों का बीमा कराएगा वन विभाग

जागरण संवाददाता, हल्द्वानी : मानव-वन्यजीव संघर्ष रोकने के लिए वन विभाग नई पहल करने जा रहा है। जंगल से सटे गांवों में पशुपालकों के मवेशियों का बीमा कराने में आने वाले खर्च की आधी रकम एनजीओ डब्ल्यूडब्ल्यूएफ से दिलाएगा। शुरुआत नंधौर से सटे छह गांवों से की जाएगी। दिसंबर प्रथम सप्ताह में इन गांवों में कैंप लगाकर पशुपालकों के मवेशियों का स्वास्थ्य परीक्षण करने के साथ बीमा भी किया जाएगा।

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वन्यजीवों के हमले में घायल होने या फिर मौत होने पर वन विभाग मुआवजा देता है। इंसान व मवेशी दोनों के मुआवजे की रकम अलग-अलग होती है। भैंस के मरने पर वन विभाग 15 हजार रुपये पशुपालक को देता है, मगर अभी 40-50 हजार से कम में नई भैंस खरीदना मुश्किल है। ऐसे में पशुपालक और काश्तकार भी वन्यजीवों के प्रति अलग नजरिया रखता है। इस वजह से मानव-वन्यजीव संघर्ष की घटनाओं में बढ़ोतरी का डर रहता है। सोमवार को हल्द्वानी वन प्रभाग के डीएफओ कुंदन कुमार सिंह ने इन मामलों को लेकर अपने कार्यालय में बैठक बुलाई, जिसमें पशु चिकित्सक डा. आयुष, डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के टीम लीडर एके सिंह, एसडीओ राम कृष्ण मौर्य और रेंजर शालिनी जोशी भी मौजूद रहीं। डीएफओ के मुताबिक, राज्य व केंद्र सरकार द्वारा मवेशियों का बीमा कराने पर सब्सिडी दी जाती है। उसके बावजूद पशुपालक जेब से पैसे खर्च होने के चक्कर में बीमा नहीं कराते। वहीं, किसी घटना के बाद वन विभाग द्वारा दिया जाने वाला मुआवजा नाकाफी होता है। लिहाजा, डब्ल्यूडब्ल्यूएफ द्वारा बीमा के प्रीमियम की आधी धनराशि दी जाएगी। शुरुआत में खेड़ा, कालूखेड़ा, ककोट, लाखनमंडी व आमबाग के पशुपालकों को योजना का लाभ दिया जाएगा।


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