1890 में हिमालय पदयात्रा के दौरान इसी पीपल की छांव में ध्यानमग्न हुए थे स्वामी विवेकानंद
हिमालय पदयात्रा के दौरान स्वामी विवेकानंद 29 अगस्त 1890 को काकड़ीघाट में ठहरे थे। वहां की सकारात्मक तरंगों व अद्भुत ऊर्जा की अनुभूति से उनके कदम पीपल के विशाल पेड़ की ओर बढ़े थे। अगले दिन पीपल वृक्ष की छांव में बैठे।
जागरण संवाददाता, अल्मोड़ा : युगनायक स्वामी विवेकानंद को सूक्ष्म ब्रह्मïांड एवं मानवजीवन से जुड़ी भ्रांतियों व चिंताओं से मुक्ति का ज्ञान देने वाले सैकड़ों वर्ष पुराने बोधिवृक्ष (पीपल) के क्लोन से तैयार नया पौधा छह वर्ष का हो गया है। युग पुरुष की स्मृतियों से जुड़े इस पौधे को 'स्वामी विवेकानंद ज्ञान वृक्ष का नाम दिया गया है। गुरुवार को तपोस्थली में रोपण दिवस मनाया जाएगा।
हिमालय पदयात्रा के दौरान स्वामी विवेकानंद 29 अगस्त 1890 को काकड़ीघाट में ठहरे थे। वहां की सकारात्मक तरंगों व अद्भुत ऊर्जा की अनुभूति से उनके कदम पीपल के विशाल पेड़ की ओर बढ़े थे। अगले दिन प्रात: कोसी व सिरौतानदी के संगम पर स्नान के बाद युगपुरुष उसी पीपल वृक्ष की छांव में बैठे। ध्यान लगाया। बाद में उन्होंने बोधिवृक्ष की छांव में सूक्ष्म ब्रह्मïांड का ज्ञान प्राप्त होने का जिक्र किया।
वर्ष 2015 में विवेकानंद सेवा समिति की काकड़ीघाट शाखा अध्यक्ष हरीश चंद्र सिंह परिहार की पहल पर जीबी पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विद्यालय पंतनगर (ऊधम सिंह नगर) के विज्ञानियों ने पीपल वृक्ष के जर्मप्लाज्म से नए पौधे तैयार किए थे। इनमें से एक को उसी स्थल पर लगाया गया, जहां पर पुराना वृक्ष था। तब से हर वर्ष एकात्म मानववाद के प्रणेता की स्मृति से जुड़े 'स्वामी विवेकानंद ज्ञानवृक्ष का जन्मदिन मनाने की परंपरा शुरू की गई।
ये होंगे कार्यक्रम
प्रात: 10 बजे ज्ञान वृक्ष पूजन, दीप प्रज्ज्वलन व मंगलाचरण, गोष्ठी, बच्चों में शैक्षिक सामग्री का वितरण, विवेकानंद वाटिका में पीपल आदि बहुपयोगी पौधे लगाने का अभियान।