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स्मृति दिवस विशेष : जीवन का अंतिम समय उत्तराखंड में बिताना चाहते थे स्‍वामी विवेकानंद

दुनिया के लिए प्रेरणास्रोत स्वामी विवेकानंद जीवन के अंतिम समय उत्तराखंड के लोहाघाट स्थित अद्वैत आश्रम में बिताना चाहते थे। उन्‍होंने देवभूमि में पांच बार आध्यात्मिक यात्रा की।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Sat, 04 Jul 2020 09:45 AM (IST)Updated: Sat, 04 Jul 2020 09:45 AM (IST)
स्मृति दिवस विशेष : जीवन का अंतिम समय उत्तराखंड में बिताना चाहते थे स्‍वामी विवेकानंद
स्मृति दिवस विशेष : जीवन का अंतिम समय उत्तराखंड में बिताना चाहते थे स्‍वामी विवेकानंद

हल्द्वानी, गणेश जोशी : युगपुरुष स्वामी विवेकानंद उत्तराखंड को दुनिया की सबसे खूबसूरत धरती मानते थे। हिमालय की गोद में बसे इस राज्य की खूबियां ही कुछ ऐसी हैं कि जहां महान विभूतियों ने तपस्या की और आत्मज्ञान हासिल किया। दुनिया के लिए प्रेरणास्रोत महान संत स्वामी विवेकानंद अपने जीवन के अंतिम समय उत्तराखंड के लोहाघाट स्थित अद्वैत आश्रम में बिताना चाहते थे। देवभूमि में पांच बार आध्यात्मिक यात्रा कर चुके युगपुरुष की उत्तराखंड से कई स्मृतियां जुड़ी हैं। स्‍वामी विवेकानंद के स्‍मृति दिवस (चार जुलाई) पर दैनिक जागरण की विशेष रिपोर्ट:

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वर्ष 1888 में नरेंद्र के रूप में हिमालयी क्षेत्र की पहली यात्रा शिष्य शरदचंद गुप्त (बाद में सदानंद) के साथ की थी। गुप्त हाथरस (उप्र) में स्टेशन मास्टर थे। ऋषिकेश में कुछ समय रहने के बाद वापस लौट गए थे। स्वामी विवेकानंद ने दूसरी यात्रा जुलाई, 1890 में की थी। तब वह अयोध्या से पैदल नैनीताल पहुंचे थे। प्रसान्न भट्टाचार्य के आवास पर छह दिन रूकने के बाद अल्मोड़ा से कर्णप्रयाग, श्रीनगर, टिहरी, देहरादून व ऋषिकेष पहुंचे। इस दौरान तप, ध्यान व साधना की। उन पर अध्ययन करने वाले डिग्री कॉलेज लोहाघाट में राजनीति विज्ञान विभाग में सहायक प्राध्यापक डॉ. प्रकाश लखेड़ा कहते हैं, अल्मोड़ा के काकड़ीघाट में पीपल वृक्ष के नीचे उन्हें आत्मज्ञान प्राप्त हुआ था। कसार देवी गुफा में कई दिनों तक ध्यान किया और उत्तिष्ठ भारत की प्रेरणा प्राप्त हुई।

शिकागो से लौटने के बाद पहुंचे अल्‍मोड़ा

स्वामीजी ने उत्तराखंड में तीसरी यात्रा शिकागो से लौटने के बाद 1897 में की। अल्मोड़ा पहुंचने पर लोधिया से खचांजी मोहल्ले तक पुष्प वर्षा की गई थी। वहां लाला बद्रीलाल साह के वह अतिथि रहे। देवलधार एस्टेट में उन्होंने गुफा में ध्यान लगाया था।

रैमजे इंटर कॉलेज में दिया था भाषण

हिमालय की चौथी यात्रा मई-जून 1898 में की थी। इस बीच अत्यधिक श्रम के चलते उनका स्वास्थ्य खराब रहा। इस यात्रा के दौरान उन्होंने अल्मोड़ा के थॉमसन हाउस से प्रबुद्ध भारत पत्रिका का फिर से प्रकाशन आरंभ किया। 222 साल पुराने देवदार के वृक्ष के नीचे भगिनी को दीक्षा दी। इस यात्रा में उन्होंने रैमजे इंटर कॉलेज में पहली बार हिंदी में भाषण दिया था। उनके इस भाषण से लोग काफी प्रभावित हुए थे।

मायावती आश्रम में किया था तप

उत्तराखंड में उनकी अंतिम यात्रा वर्ष 1901 में मायावती के अद्वैत आश्रम में हुई थी। डॉ. लखेड़ा बताते हैं कि आश्रम को बनाने वाले कैप्टन सेवियर की मृत्यु पर 170 किलोमीटर की दुर्गम यात्रा कर वह तीन जनवरी, 1901 को अद्वैत आश्रम लोहाघाट पहुंचे और 18 जनवरी, 1901 तक रहे। इस दौरान उन्होंने तप किया था। जैविक खेती की बात की, आज भी आश्रम में जैविक खेती हो रही है।

स्वामीजी का जीवन विशेष मिशन के लिए था। वह जन्म से ही ध्यान सिद्ध पुरुष थे। उन्होंने अपने पत्रों में उल्लेख किया है कि वह अंतिम समय हिमालय की गोद अद्वैत आश्रम में जाकर ध्यान, तप व अध्ययन करना चाहते हैं। जहां वह संसार के झमेले से दूर हो सकें, लेकिन यह इच्छा उनकी पूरी नहीं हो सकी। -स्वामी शुद्धिदानंद, अध्यक्ष अद्वैत आश्रम मायावती लोहाघाट

स्वामी विवेकानंद की उत्तराखंड की यात्रा का उद्देश्य तप, साधना, ध्यान, हिमालय की शक्तिपुंज से नई ऊर्जा प्राप्त करना था। उन्होंने यहीं पर सर्वधर्म समभाव का संदेश दिया। वह उत्तराखंड से इतने अभिभूत थे कि अपने शिष्यों से कहते थे, अपने जीवन के अंतिम क्षणों को अद्वैत आश्रम में ही बिताना चाहते हैं। जहां वह एकाग्रचित्त होकर अध्ययन करना और पुस्तकें लिखना चाहते हैं। हिमालय की उनकी इस यात्रा का स्थानीय लोगों पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ा। -डॉ. प्रकाश लखेड़ा, सहायक प्राध्यापक राजकीय महाविद्यालय लोहाघाट

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