गौलापार में सीवर ट्रीटमेंट प्लांट तैयार होने में अब भी पांच माह का समय
शहर को कुमाऊं का प्रवेशद्वार और आर्थिक राजधानी कहा जाता है। जिस वजह से मैदान के अलावा पहाड़ के नेताओं ने भी यहां आशियाना बना लिया लेकिन कचरे के साथ सीवरेज के निस्तारण को लेकर फिलहाल कोई व्यवस्था नहीं है।
जागरण संवाददाता, हल्द्वानी : शहर को कुमाऊं का प्रवेशद्वार और आर्थिक राजधानी कहा जाता है। जिस वजह से मैदान के अलावा पहाड़ के नेताओं ने भी यहां आशियाना बना लिया, लेकिन कचरे के साथ सीवरेज के निस्तारण को लेकर फिलहाल कोई व्यवस्था नहीं है। गौलापार में सीवर ट्रीटमेंट प्लांट के तैयार होने में अभी पांच माह और लगेंगे। यानी नगरपालिका से लेकर नगर निगम तक का सफर पूरा होने के बावजूद गंदगी के निस्तारण को लेकर अभी तक जिम्मेदार फिसड्डी ही साबित हुए। सबसे बड़ा संकट यह है कि एसटीपी के बनने पर सीवरेज तो इससे जुड़ जाएगा, मगर बड़ी आबादी में सीवर लाइन अब तक बिछी नहीं है। परिसीमन के बाद जुड़े बीस नए वार्ड इसी कैटेगिरी में आते हैं।
मध्य प्रदेश का इंदौर फिर से स्वच्छता सर्वेक्षण में अव्वल आया है। यह प्लानिंग, जिम्मेदारों की सक्रियता के साथ जन सहयोग का परिणाम है, लेकिन हल्द्वानी नगर निगम इस रैंकिंग में आगे बढऩे के बजाय 52 पायदान और लुढ़क गया। वजह निगम प्रशासन की लापरवाही और स्वच्छता को लेकर सर्वे, रिपोर्ट तक सीमित रहना है। सालिड वेस्ट मैनेजमेंट कंपोस्ट प्लांट के अभाव में जहां घरों से उठने वाला 120 मीट्रिक टन कचरा रोज खुले में सड़ता है, वहीं सीवरेज निस्तारण की समस्या भी फिलहाल जस की तस है।
गौला बाइपास पर पांच हेक्टेयर जमीन पर जल निगम को 35.58 करोड़ की लागत से एसटीपी का निर्माण करना है। अभी स्ट्रक्चर खड़ा करने का काम अंतिम चरण में है। इसके बाद मशीनों को फिट कर शहर के सीवर को इससे जोड़ा जाएगा। स्वच्छता सर्वेक्षण में कचरा प्रबंधन के अलावा सीवरेज निस्तारण सिस्टम की अहम भूमिका होती है। यह दोनों प्लानिंग धरातल पर नहीं उतरने के कारण हमारा शहर 281वीं रैंक पर पहुंच गया। ईई जल निगम एके कटारिया ने बताया कि एसटीपी का सिविल वर्क पूरा हो चुका है। 15 दिसंबर के बाद से मशीनों की आपूर्ति शुरू हो जाएगी। पूरा प्रयास है कि मार्च 2022 में प्लांट बनकर तैयार हो जाएगा।
सीवर लाइन से नहीं जुड़े एक लाख घर
अमृत योजना के तहत शहरी क्षेत्र में पानी के साथ सीवर लाइन भी डाली गई थी, लेकिन अभी पुराने निगम क्षेत्र में ही कई इलाके छूटे हुए हैं। कार्यदायी संस्था जल निगम के मुताबिक जगदंबा नगर-भोटिया पड़ाव और बनभूलपुरा-इंदिरानगर जोन में सीवर बिछाने को करीब 26 करोड़ की डिमांड की गई है। अगर 2018 में कालाढूंगी विधानसभा क्षेत्र के नए जुड़े इलाकों को भी जोड़ दिया जाए तो एक लाख घरों में सीवर बिछी ही नहीं है। पूर्व में अफसरों ने उड़ीसा के भुवनेश्वर प्लान पर चलने की बात कही थी। यानी एसटीपी तैयार होने के बाद भी टैंकरों के जरिये एक लाख घरों से सीवर को एसटीपी तक लाया जाएगा। अब देखना यह है कि स्वच्छता सर्वेक्षण करने वाली टीम 2022 में इस सिस्टम को कितने नंबर देगी।
रोजाना डेढ़ करोड़ लीटर सीवरेज निकल रहा
जल निगम के मुताबिक अमृत योजना से पहले लाइनों में रोजाना एक करोड़ लीटर सीवरेज आता था। अब मात्रा बढ़कर डेढ़ करोड़ लीटर रोजाना हो गई है। इसमें उन इलाकों का रिकार्ड नहीं है जो कि सीवर योजना से अछूते हैं। सबसे बड़ा संकट इस बात का है कि घरों से टैंकरों के जरिये उठने वाले सीवरेज को चैंबर खोल सीवर में डाल दिया जाता है। उसके बाद यह गंदगी गौला रोखड़ में पहुंच जाती है। निगरानी सिस्टम नहीं होने के कारण बाइपास किनारे जंगल में भी टैंकर खाली कर दिए जाते हैं।