Nanda Devi Festival : मूर्ति निर्माण देता है पर्यावरण संरक्षण का संदेश, केले के तने से होता है निर्माण
कोविड गाइडलाइन के अनुसार लगातार दूसरे साल महोत्सव सादगी से मनाया जा रहा है। आज दोपहर डेढ़ बजे कदली के पेड़ लाने के लिए श्रीराम सेवक सभा के दल को रवाना करने के साथ ही महोत्सव का शुभारंभ होगा। मूर्ति निर्माण के लिए कदली के पेड़ ज्योलीकोट से लाये जाएंगे।
जागरण संवाददाता, नैनीताल। आस्था व श्रद्धा का प्रतीक नंदा देवी महोत्सव शनिवार से शुरू हो रहा है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण मूर्ति निर्माण रविवार सायं से शुरू होगा। मूर्ति निर्माण की पूरी प्रक्रिया पर्यावरण संदेश का संदेश देती है। कदली या केला पूरी तरह जल घुलनशील है, इसलिए झील में विसर्जन किया जाता है।
सरोवर नगरी में नंदा देवी महोत्सव का श्रीगणेश आज से हो रहा है। कोविड गाइडलाइन के अनुसार लगातार दूसरे साल महोत्सव सादगी से मनाया जा रहा है। आज दोपहर डेढ़ बजे कदली के पेड़ लाने के लिए श्रीराम सेवक सभा के दल को रवाना करने के साथ ही महोत्सव का शुभारंभ होगा। इस बार मूर्ति निर्माण के लिए कदली के पेड़ ज्योलीकोट के सरीयाताल से लाये जाएंगे। आयोजक संस्था के महासचिव जगदीश बवाड़ी के अनुसार मूर्ति निर्माण रविवार शाम से शुरू होगा।
पर्यावरण संरक्षण का संदेश
नंदा देवी महोत्सव पर्यावरण संरक्षण का संदेश भी देता है। कदली के पेड़ से ही मूर्ति निर्माण होता है, फिर उसे महोत्सव समापन पर झील में विसर्जित किया जाता है। पूर्व पालिकाध्यक्ष व संस्था के पूर्व अध्यक्ष मुकेश जोशी मंटू के अनुसार 1950 में शारदा संघ के संस्थापक बाबू चंद्र लाल साह व स्वामी मूल चंद की जुगलबंदी में मूर्तियां बनाई गई। 1945 के बाद मूर्ति निर्माण में बदलाव आया।
1955-56 तक मूर्तियों का निर्माण चांदी से होता था, फिर परंपरागत मूर्तियां बनने लगी। स्थानीय रंगकर्मी विशम्भर नाथ साह सखा समेत स्थानीय कलाकारों ने मूर्तियों को सजीव रूप देने में अहम भूमिका निभाई। मूर्ति निर्माण में कदली के पेड़ का तना, कपड़ा, रुई, प्राकृतिक रंगों का प्रयोग होता है। सभा के पूर्व अध्यक्ष रहे स्वर्गीय गंगा प्रसाद साह की पहल पर मूर्ति निर्माण में थर्माकोल का प्रयोग बंद किया गया। मूर्ति निर्माण में कला पक्ष पर अधिक ध्यान देते हैं। माता नंदा सुनंदा की मूर्तियां ईको फ्रेंडली वस्तुओं से बनाई जाती हैं, इसलिए ही महोत्सव को पर्यावरण संरक्षण की मिसाल कहा जाता है।