... तो क्या ऑलवेदर रोड बनने से बदल गया पर्वतीय स्कूलों का कोटीकरण
ऑलवेदर रोड ने मार्ग में पड़ रहे अधिकतर स्कूलों का गणित बदल दिया है। मूलभूत सुविधाओं के अभाव में दो साल पूर्व तक दुर्गम श्रेणी में शामिल इंटर कॉलेजों को विभागीय अधिकारियों व नेताओं ने अपने चहेतों को लाभ पहुंचाने के लिए उसे सुगम श्रेणी में बदल दिया।
चम्पावत, विनय कुमार शर्मा : टनकपुर से पिथौरागढ़ के बीच बन रही ऑलवेदर रोड ने मार्ग में पड़ रहे अधिकतर स्कूलों का गणित बदल दिया है। मूलभूत सुविधाओं के अभाव में दो साल पूर्व तक दुर्गम श्रेणी में शामिल इंटर कॉलेजों को विभागीय अधिकारियों व नेताओं ने अपने चहेतों को लाभ पहुंचाने के लिए उसे सुगम श्रेणी में बदल दिया। जिसका खामियाजा बच्चों का भुगतना पड़ रहा है। कारण कि सुगम श्रेणी में स्कूलों के होने से विभाग द्वारा शिक्षकों की तैनाती नहीं की जा रही है। कई स्कूलों में शिक्षकों के पद रिक्त हैं। गेस्ट शिक्षकों के सहारे स्कूल संचालित हो रहे हैं। इसके अलावा अन्य कई सुविधाओं का स्कूलों में टोटा है।
ऑलवेदर रोड बनने से दो वर्ष पूर्व 2018 तक सूखीढांग, चल्थी, अमोड़ी, स्वाला व धौन स्कूल समेत अन्य हाइवे किनारे स्थित स्कूल दुर्गम श्रेणी में आते थे। नए शिक्षकों की भर्ती होने पर विभाग उन्हें दुर्गम श्रेणी के स्कूलों में तैनाती देता था लेकिन ऑलवेदर रोड क्या बनी स्कूलों का कोटीकरण ही बदल दिया। विभाग व अधिकारियों ने मान लिया कि हाइवे बनने से अब रोड से लगे सभी स्कूलों में सभी प्रकार की सुविधाएं मिलने लगेंगी। लिहाजा विभाग ने इन स्कूलों को सुगम श्रेणी में तब्दील कर दिया। सुगम श्रेणी में स्कूलों के परिवर्तन होने के बाद नए शिक्षकों की तैनाती होनी बंद हो गई। पुराने शिक्षक एक-एक कर सेवानिवृत्त हो रहे हैं तो वहीं इनकी जगह अतिथि शिक्षकों ने ले ली। उनकी भी तैनाती समय से न होने से बच्चों की शिक्षा काफी बाधित हो रही है।
बात करें स्वाला राजकीय इंटर कॉलेज की तो 2014 में स्कूल के उच्चीकरण होने के बाद इंटर का दर्जा मिला। इंटरमीडिएट होने के बाद आज तक वहां विज्ञान वर्ग को मान्यता नहीं मिल सकी। केवल कला वर्ग के छात्र-छात्राएं ही शिक्षा ले रहे हैं। वर्तमान में इंटर में 27 व हाईस्कूल में 10 बच्चे शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। वर्तमान में स्कूल में प्रवक्ता के पांच पद स्वीकृत है लेकिन इसमें महत्वपूर्ण हिंदी प्रवक्ता पद लंबे समय से रिक्त चल रहा है। शिक्षक न होने से बच्चे हिंदी विषय की तैयारी नहीं कर पा रहे हैं। अन्य चार पदों पर दो स्थायी तो दो अतिथि शिक्षक तैनात हैं।
वहीं एलटी संवर्ग में स्वीकृत आठ पदों पर अंग्रेजी व विज्ञान शिक्षक के पद रिक्त चल रहे हैं। गणित के शिक्षक एक्सटेंशन पर चल रहे हैं तो व्यायाम के शिक्षक जून में सेवानिवृत्त हो जाएंगे। कला शिक्षक का प्रमोशन होना है। हिंदी विषय अतिथि शिक्षक पढ़ा रहे हैं। स्कूल में न तो खेल मैदान है न कंप्यूटर। पानी की दिक्कत से भी बच्चे परेशान है। हाईस्कूल करने के बाद बच्चों को विज्ञान विषय से इंटर करने के लिए बाहर की दौड़ लगानी पड़ती है। विज्ञान संवर्ग, खेल मैदान, कंप्यूटर लैब, चाहरदिवारी की लंबे समय से मांग की जा रही है।
चम्पावत के मुख्य शिक्षा अधिकारी आरसी पुरोहित ने बताया कि वर्ष 2018 के बाद स्कूलों का कोटीकरण बदला है। हाइवे बनने के बाद क्षेत्र में सुविधाओं का विस्तार हुआ है। हाइवे किनारे स्कूलों को सुगम श्रेणी में रखा गया है। जिन स्कूलों से कोटीकरण में संशोधन के लिए प्रत्यावेदन मिला है। उस पर सीडीओ की अध्यक्षता में विचार किया गया है। कोविड के चलते बैठक नहीं हो पाई है। शीघ्र ही बैठक कर संशोधित कोटिकरण जारी किया जाएगा।
स्वाला व देहरादून सुगम तो स्वाला क्यों आएंगे शिक्षक : राशिसं
राजकीय शिक्षक संघ जिलाध्यक्ष पीएस मेहता ने कहा कि अगर स्वाला, अमोड़ी, धौन व देहरादून के स्कूल सुगम में हैं तो शिक्षक देहरादून जाना पसंद करेंगे। पर्वतीय क्षेत्रों व मैदानी क्षेत्रों की भौगोलिक स्थिति में बहुत अंतर है। अधिकारियों व नेताओं ने अपने चहेतों को लाभ पहुंचाने के लिए ऑलवेदर रोड व अमोड़ी डिग्री कॉलेज का बहाना बनाकर त्रुटिपूर्ण मानकों के कारण इन्हें सुगम में दर्शा दिया है। जिस कारण इन स्कूलों में नए शिक्षकों की तैनाती नहीं हो पा रही है। इससे नौनिहालों का भविष्य अंधकार में लटक गया है। वहीं अभी तक जिला कोटिकरण समिति द्वारा कोटीकरण संशोधन की लिस्ट जारी करना दुर्भाग्यपूर्ण व छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ है।
यह है सुगम व दुर्गम के मानक
कार्यस्थल से पैदल दूरी, स्कूल के पास बैंक व पोस्ट ऑफिस की उपलब्धता, अस्पताल की सुविधा, डिग्री कॉलेज, रेलवे से कम दूरी, कॉमर्शियल सेंटर की मौजूदगी के आधार पर स्कूल सुगम श्रेणी में आते हैं। लेकिन ऑलवेदर रोड किनारे बने इन स्कूलों में एक डिग्री कॉलेज को छोड़कर कोई मानक पूरे नहीं होते। बैंक व पोस्ट ऑफिस जिला मुख्यालय में स्थित है। स्कूल के पास शिक्षकों को ढंग से रहने के लिए आवास नहीं मिलते। बाजार के नाम पर गिनी चुनी एक दो दुकाने ही होती है। पर्वतीय क्षेत्र में पानी की भी काफी कमी रहती है। स्वास्थ्य सुविधा के नाम पर मात्र एक पीएचसी है। वहां पर भी डॉक्टर समय पर उपलब्ध नहीं होते।