खेतों से वन्यजीवों को भगाने के लिए विकसित किया गया खास यंत्र, डिजटिल बनाएंगे डिवाइस
सिंचाई संसाधनों का अभाव। उस पर सूखा ओला तो कभी अतिवृष्टि की मार। चौतरफा चुनौतियों से घिरी पर्वतीय खेती पर जंगली जानवरों का सितम सो अलग। पहाड़ में खत्म होती खेती व पलायन का एक बड़ा कारण यह भी है।
अल्मोड़ा, दीप सिंह बोरा : सिंचाई संसाधनों का अभाव। उस पर सूखा, ओला तो कभी अतिवृष्टि की मार। चौतरफा चुनौतियों से घिरी पर्वतीय खेती पर जंगली जानवरों का सितम सो अलग। पहाड़ में खत्म होती खेती व पलायन का एक बड़ा कारण यह भी है। मगर एक शोध ने वन्यजीवों के कहर से फसल बचाने की राह दिखाई है। जंगली सुअर, लंगूर व बंदरों के व्यवहार पर अध्ययन के बाद एक नायाब यंत्र इजाद किया गया है। इसके पंखे से टकरा कर कनस्तर, थाली व टिन की अलग अलग आवाजें वन्य जीवों को दूर भगाएंगी। राज्य जैविक कृषि प्रशिक्षण केंद्र के फार्म में सफल प्रयोग के बाद बिजली चालित यंत्र को सब्जी व फल उत्पादक गांवों में लगाने की तैयारी है।
विषम भौगोलिक हालात वाले पर्वतीय राज्य में खेती भी वाकई पहाड़ सरीखी कठिन हो चली है। मौजूदा दौर में प्राकृतिक आपदा की ही तरह वन्य जीवों से फसल क्षति ज्वलंत मुद्दा बन चुका है। सरकारें जंगली जानवरों का कहर थामने को दावे तो तमाम करती आ रही, मगर स्थायी समाधान न मिलने का ही नतीजा है कि पर्वतीय किसान खेती छोड़ पलायन करने लगा है।
इन विपरीत हालात में राज्य जैविक प्रशिक्षण केंद्र मजखाली (रानीखेत) के वैज्ञानिकों ने खेतों को तबाह कर रहे जंगली सुअर, बंदर व लंगूरों से निजात दिलाने की उम्मीद जगाई है। केंद्र के वैज्ञानिक डॉ. देवेंद्र सिंह नेगी ने फसलों के दुश्मन वन्य जीवों की फितरत पर अध्ययन कर बिजली चालित यंत्र तैयार किया है। इसका पंखा घूमने पर उसमें लगी धातु के टकराने से निकलने वाली आवाज वन्यजीवों को भगाने में मददगार बनेगी।
राज्य जैविक कृषि अनुसंधान केंद्र मजखाली रानीखेत के शोध वैज्ञानिक डॉ. देवेंद्र सिंह नेगी ने बताया कि परंपरागत फसलें पहाड़ की पहचान रही है। वर्तमान में इसे वन्य जीवों से बचाने की बड़ी चुनौती है। घटते कृषि क्षेत्र के संकट में जंगली जानवरों से खेती बचाने में यह यंत्र कारगर है। प्रयोग सफल रहा है। अब डिवाइस लगने के बाद यंत्र को ब्लूटूथ से कनेक्ट करेंगे। दिल्ली की एक आइटी कंपनी से बात चल रही है।
ऐसे काम करेगा यंत्र
खंभे के ऊपरी सिरे पर पंखा लगाया गया है। जंगली सूअरों के लिए कनस्तर जबकि बंदर व लंगूर दिखाई देने पर थाली या टिन बांधी जाएगी। चालू करने पर पंखा घूमेगा। उसमें लगी थाली, टिन या कनस्तर जोर से बजने लेगा। खास बात कि सभी की आवाज अलग होगी। ताकि जंगली जानवर एक ही आवाज सुन उसके आदी न हों। अलग अलग आवाज उन्हें उन्हें लगेगा कि इंसान सजग है। उसे देख लिया गया है। इससे वह डर कर भागेंगे। मजखाली में इसके सकारात्मक परिणाम दिखने लगे हैं।
सरकारी प्रयासों के बावजूद ये हैं हालात
बंदर व लंगूर दिन में खेतों में डेरा जमाए रहते हैं। परंपरागत फल, सब्जी, दाल आदि उजाड़ जाते हैं। वहीं जंगली सुअर रात में झुंड के रूप में प्याज, लहसुन आदि सब्जी, दाल, गेहूं के खेतों को खोद सब कुछ तबाह करते हैं। अरवी से आकार में बड़ी गडेरी के खेत उजाड़ किसानों की आर्थिक रीढ़ तोड़ रहे। सरकारी प्रयासों से इतर वैज्ञानिकों का यंत्र फसल बचाने में बड़ी मदद करेगा।
मिलेगा मजखाली या रानीखेत का नाम
किसानों का मददगार बनने जा रहे खास यंत्र को मजखाली या रानीखेत का नाम मिलेगा। शोध वैज्ञानिक डॉ.देवेंद्र सिंह नेगी के अनुसार इन्हीं दो नामों पर 'जंगली जानवर भगाओ' अथवा 'किसान मजखाली मित्र पंखा' नाम रखा जाएगा।
अब डिवाइस लगाने की तैयारी
रानीखेत के मजखाली में सफल प्रयोग के बाद बिजली चालित विशेष यंत्र में अब डिवाइस लगाने की तैयारी है। अभी यंत्र को चालू करने के लिए कमरे या घर के बाहर स्विच ऑन करना पड़ रहा है। डिवाइस लगने के बाद घर बैठे खेत में पंखा चालू किया जा सकेगा।