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श‍िक्षण संस्‍थान का 22 साल में चार ट्रांसफर, आख‍िरकार अस्‍त‍ित्‍व ही खत्‍म हो गया

सरकारी शिक्षण संस्थान का 22 साल में चार बार ट्रांसफर हुआ हो ऐसा मुश्‍क‍िल से सुनने को मिलता है।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Sat, 19 Sep 2020 09:06 AM (IST)Updated: Sat, 19 Sep 2020 09:06 AM (IST)
श‍िक्षण संस्‍थान का 22 साल में चार ट्रांसफर, आख‍िरकार अस्‍त‍ित्‍व ही खत्‍म हो गया
श‍िक्षण संस्‍थान का 22 साल में चार ट्रांसफर, आख‍िरकार अस्‍त‍ित्‍व ही खत्‍म हो गया

हल्द्वानी, भानु जोशी: आमतौर पर देखने-सुनने में आता है कि फलां विभाग के कर्मचारी का दूसरी जगह ट्रांसफर हो गया या किसी बड़े अधिकारी का कॅरियर बरबाद करने के लिए उसे दुर्गम क्षेत्र में ट्रांसफर कर दिया गया। किसी सरकारी शिक्षण संस्थान का 22 साल में चार बार ट्रांसफर हुआ हो ऐसा मुश्‍क‍िल से सुनने को मिलता है। हल्द्वानी महानगर में ऐसा हो चुका है। ये संस्थान और कोई नहीं बल्कि महिला राजकीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइटीआइ) है। जी हां, बिना गलती व बिना सजा 22 साल तक अपना अस्तित्व ढूंढने वाला 34 साल पुराना महिला आइटीआइ अब शायद ही दिखाई या सुनाई दे। कम छात्र संख्या व एक ही परिसर में संचालित होने के कारण शासन ने महिला आइटीआइ को हल्द्वानी युवक आइटीआइ में मर्ज कर दिया है। भले ही बाद में इसे बहुमंजिला इमारत मिली लेकिन वो भी अस्तित्व बचाने के काम न आई। 

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1986 में हुआ था स्थापित

राजकीय महिला आइटीआइ की स्थापना 1986 में हुई थी। अपना सरकारी भवन न होने के कारण इसे शहर के हीरानगर स्थित एक भवन में शुरू किया गया था। उस समय इसमें 30 से 40 छात्राओं ने दाखिला लिया था।

चार भवनों में हुआ शिफ्ट

स्थापना के बाद हीरानगर में केवल चार साल तक ही ये आइटीआइ चल सका। जिसके बाद इसे जगह की कमी के चलते नवाबी रोड स्थित चौधरी भवन में शिफ्ट किया गया। यहां ये केवल तीन साल चला। 1991 में इसे नवाबी रोड के शीर चंद्र कैलाश चंद्र भवन में शिफ्ट कर दिया गया। इसके बाद अगले 18 साल तक इसके लिए भवन नहीं बनाया जा सका।

भवन बना पर अपना न हुआ

2008 में बमुश्किल महिला आइटीआइ को अपने अस्तित्व को बचाने के लिए सरकारी दीवारें मिली। युवा आइटीआइ के समीप बहुमंजिला भवन बनाकर उसमें इसे शिफ्ट किया गया, लेकिन यहां भी इसका आधे से अधिक हिस्से में निदेशालय बना दिया गया।


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