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खुद संकट झेला, दूसरी महिलाओं को बना रहीं आत्मनिर्भर

जासं हल्द्वानी जीवन में आए उतार से सबक लेकर शहर की एक महिला ने खुद उबारने के साथ ही दूसरों को भी आत्मनिर्भर बनाने की ठान ली। अकेले संघर्ष की राह पर निकली गीता सत्यवली आज साढ़े आठ हजार महिलाओं को प्रशिक्षित कर चुकी हैं।

By JagranEdited By: Published: Mon, 19 Oct 2020 08:54 PM (IST)Updated: Mon, 19 Oct 2020 08:54 PM (IST)
खुद संकट झेला, दूसरी महिलाओं को बना रहीं आत्मनिर्भर
खुद संकट झेला, दूसरी महिलाओं को बना रहीं आत्मनिर्भर

जासं, हल्द्वानी : जीवन में आए उतार से सबक लेकर शहर की एक महिला ने खुद उबारने के साथ ही दूसरों को भी आत्मनिर्भर बनाने की ठान ली। अकेले संघर्ष की राह पर निकली गीता सत्यवली आज साढ़े आठ हजार महिलाओं को प्रशिक्षित कर चुकी हैं। इनमें से 2000 महिलाएं खुद का रोजगार कर रही हैं। जबकि 13 सौ महिलाएं गीता के साथ ही जुड़ चुकी हैं। यही नहीं, देशभर के कई शहरों तक महिलाएं स्वनिर्मित उत्पादों को बेच रही हैं।

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शहर के तल्ली बमारी के आनंदबाग में रहने वाली गीता गिरजा बुटीक एवं महिला विकास के नाम से एनजीओ चलाती हैं। हीरानगर में वह प्रशिक्षण संस्थान खोलकर महिलाओं को सिलाई-बुनाई, कैंडल, जूट बैग, कपड़ा बैग, पार्लर, पेपर बैग, कोरा कोटन बैग, एपड़, पेंटिंग, अचार, पापड़, मुरब्बा, बिस्किट आदि का निश्शुल्क प्रशिक्षण दे रही हैं। हर बैच में 30 महिलाओं को प्रशिक्षित किया जाता है। गीता बताती हैं कि वर्ष 2016 में उन्होंने अपनी संस्था खोलकर शुरुआत की। अब तक वह कुल 8500 महिलाओं को प्रशिक्षित कर चुकी हैं। इनमें से 13 सौ महिलाएं अपने उत्पाद बनाकर संस्था को ही बेचती हैं। कष्टों से लड़कर जीती जंग

स्वयंसेवी संस्थान चला रही गीता का अतीत काफी भावुक कर देता है। गीता कुछ साल पहले तक गृहणी थी और पति परिवार की आजीविका चलाते थे। वर्ष 2004 में उनके पति एक सड़क हादसे में गंभीर रूप से घायल हो गए। तीन साल तक दिन-रात वह पति के उपचार के लिए अस्पतालों के चक्कर काटती रहीं। इससे उनकी तबियत भी खराब रहने लगी, लेकिन गीता ने हार नहीं मानी। परिवार को चलाने के लिए उन्होंने हास्पिटल, स्कूल व घरों में तक काम किया। वर्ष 2008 में उन्होंने सिलाई-बुनाई सीखी और धीरे-धीरे स्वरोजगार शुरू किया। एक-दो महिलाओं को साथ लेकर वह प्रशिक्षण देने के साथ ही अपने उत्पाद शहरों में होने वाले आयोजनों में बेचती। वर्ष 2016 तक उनके साथ ढाई महिलाएं जुड़ गई और उन्होंने अपना एनजीओ खोल लिया। चाची से सिलाई मशीन मांग शुरू किया स्वरोजगार

गीता बताती हैं कि वर्ष 2008 में उनकी आर्थिक स्थिति काफी कमजोर थी। सिलाई-बुनाई प्रशिक्षण लेने के बाद स्वरोजगार के लिए उनके पास संसाधन खरीदने के लिए धन तक उपलब्ध नहीं था। उन्होंने चाची से सिलाई मशीन मांगकर अपने काम की शुरुआत की। महानगरों तक बेच रही अपने उत्पाद

गीता नैनीताल या कुमाऊं ही नहीं देशभर के कई महानगरों में जाकर अपने उत्पाद बेच रही हैं। वह बताती हैं कि दिल्ली, मुम्बई, देहरादून, लखनऊ, बनारस, बागेश्वर, काशीपुर, रुद्रपुर आदि कई शहरों में होने वाले आयोजनों में वह स्टाल लगाकर अपने उत्पाद बेचती हैं। महिलाओं के आने-जाने से लेकर रहने-खाने तक का खर्च संस्था वहन करती हैं। इसके लिए नाबार्ड उनकी मदद करता है। संस्था खोलने में नेता प्रतिपक्ष ने की मदद

गीता बताती हैं कि वर्ष 2016 में संस्था खोलने के लिए नेता प्रतिपक्ष डॉ. इंदिरा हृदयेश ने उनकी काफी मदद की। संस्था का कार्यालय खोलने से लेकर संसाधनों को खरीदने में नेता प्रतिपक्ष ने भरपूर सहयोग दिया। जो कष्ट मैंने सहे, वह किसी दूसरी महिला को न हों। इसके लिए महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास कर रही हूं। महिलाएं किसी भी तरह का प्रशिक्षण लें तो अपना स्वरोजगार खोलकर आजीविका चला सकती हैं।

- गीता सत्यवली


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