ओपीडी ठप होेने व भर्ती मरीज घटने का असर, लॉकडाउन से दवाइयों की बिक्री में 50 फीसद गिरी
भले ही लॉकडाउन के दौरान दवा की दुकानें खुली रही लेकिन दवाइयों की बिक्री पिछले तीन वर्षों के अनुपात में 50 फीसद कम हुई।
हल्द्वानी, जेएनएन : भले ही लॉकडाउन के दौरान दवा की दुकानें खुली रही, लेकिन दवाइयों की बिक्री पिछले तीन वर्षों के अनुपात में 50 फीसद कम हुई। तीन महीने के लॉकडाउन पीरियड में हल्द्वानी में ही करीब आठ करोड़ की दवाइयां का कारोबार प्रभावित रहा। इसमें अस्पताल बंद होना, काउंटर से सीधे बिकने वाली तमाम दवाइयां पर प्रतिबंध लगना आदि तमाम कारण शामिल हैं।
हल्द्वानी में तीन साल का यह यह आंकड़ा
हल्द्वानी में ही होलसेल की लगभग 60 दुकानें में हैं। यहां से पूरे कुमाऊं में दवाइयों की आपूर्ति होती है। वर्ष 2018 में मार्च, अप्रैल व मई में हल्द्वानी में अनुमानित व्यापार 18 करोड़ का था। 2019 में इन्हीं तीन महीने में 20 करोड़ का रहा। जबकि इस लॉकडाउन के इस समय में यह कारोबार 10 करोड़ में सिमट गया।
ये दवाइयां कम बिकींं
सरकार ने एंटी एलर्जिक, पैरासिटामोल, हाइड्रक्सीक्लोरोक्वीन, दर्द निवारक, एंटीबायोटिक्स, कफ सिरफ की सीधी बिक्री पर प्रतिबंध लगाया है। दवा व्यवसायियों का कहना है कि यह दवाइयां डॉक्टर के पर्चे के अलावा भी सबसे अधिक बिकती हैं। इन तीन महीनों यह दवाइयां बहुत कम बिकी।
बिकते रहीं जीवनभर चलने वाली दवाइयां
मधुमेह, हार्ट डिजीज समेत तमाम ऐसी बीमारियां हैं, जिनकी दवाइयां आजीवन खानी पड़ती हैं। दवा व्यापारियों का कहना है कि इन दवाइयों की बिक्री नियमित होती रही। केमिस्ट शॉपों पर इन्हीं दवाइयों के खरीदार सर्वाधिक पहुंचे।
इंजेक्टेबल दवाइयों की खपत बंद
अस्पतालों में सबसे अधिक आपूर्ति इंजेक्टेबल दवाइयां की रहती थी। दवाइयों में बड़ा कारोबार इसी का था, लेकिन लॉकडाउन के चलते मरीजों को भर्ती नहीं किया जा रहा है। ओपीडी में संख्या आधे से कम हुई।
क्या कहते हैं दवा कारोबारी
संदीप जोशी, होलसेलर व महासचिव, केमिस्ट एंड ड्रगिस्ट एसोसिएशन ने बताया कि लॉकडाउन की मार सभी जगह पड़़ रही है। ऐसे में दवा व्यवसाय भी इससे प्रभावित हुआ है। पिछले तीन महीनों में 50 फीसद कारोबार डाउन हुआ है। इसका सबसे बड़ा कारण अस्पतालों में ओपीडी के अलावा भर्ती न होना भी है। रिटेल व्यवसायी नवनीत राणा ने बताया कि लॉकडाउन में भले ही कुछ समय के लिए दुकानें खुली रहीं, लेकिन व्यवसाय पिछले वर्षों की अपेक्षा कम ही रहा। एसटीएच में ही कई ऑपरेशन हो जाते थे। दूर-दराज से मरीज इलाज को पहुंचते थे, लेकिन वहां कोरोना के अलावा मरीजों का इलाज नहीं हो रहा है।
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