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तलाक के बाद बच्चों संग गुजारा करना हो गया था मुश्किल, फिर भी नहीं डगमगाए अंजली के कदम

सीधी-सपाट जिंदगी चल रही हो और अचानक से कुछ अप्रत्याशित हो जाए तो संभलने का भी मौका नहीं मिलता है। कुछ ऐसा ही हुआ था रुद्रपुर निवासी अंजली कौर के साथ। दो बच्चों की मां अंजली का जीवन उस समय अंधकारमय हो गया जब पति ने अचानक तलाक दे दिया।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Fri, 30 Oct 2020 02:29 PM (IST)Updated: Fri, 30 Oct 2020 02:29 PM (IST)
तलाक के बाद बच्चों संग गुजारा करना हो गया था मुश्किल, फिर भी नहीं डगमगाए अंजली के कदम

रुद्रपुर, जेएनएन : सीधी-सपाट जिंदगी चल रही हो और अचानक से कुछ अप्रत्याशित हो जाए तो संभलने का भी मौका नहीं मिलता है। कुछ ऐसा ही हुआ था रुद्रपुर निवासी अंजली कौर के साथ। दो बच्चों की मां अंजली का जीवन उस समय अंधकारमय हो गया जब पति ने अचानक तलाक दे दिया। ऐसे में उसके सामने जीविका का संकट खड़ा हो गया। फिर भी उसने हौसला नहीं हारा। पहले रोजगार की तलाश में हाथ पांव मारे फिर भी कुछ न हुआ तो ठेला खरीदकर फल बेचने लगी। शुरुआत में तमाम फब्तियां झेलीं। लोगों के ताने सुने। लेकिन वक्त गुजरने के साथ जिंदगी की गड़ी पटरी पर आ गई।

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रुद्रपुर के दरियानगर निवासी 37 वर्षीय अंजलि कौर का वैवाहिक जीवन असफल हो गया। पति के साथ सामंजस्य नहीं होने पर दो साल पहले तलाक हो गया। तलाक के बाद दो बच्चों की मां के लीए जीपन नर्क की तरह हो गया। अंजलि ने बताया कि दो जून की रोटी के लिए उन्होंने काफी संघर्ष किया। रोजगार के लिए भटकने से बात नहीं बनी। कम पढ़ी-लिखी होने के कारण रोजगार की दिक्कतें उनके सामने आ गईं। ऐसे में स्वरोजगार के लिए उन्होंने पिता की मदद से एक ठेला गाड़ी का इंतजाम किया। जिस पर वह सेब, केला, पपीता आदि फल बेचकर गुजारा कर रहह है।

मुश्किल रहा सफर

फलों का ठेला लगा रही अंजलि ने बताया कि एक साल के बच्चे को गोंद में लेकर उन्होंने अपनी छोटी सी दुकान शुरू कर दी। तब लोगों ने खूब ताने मारे, कहते थे ये क्या दुकान चला पाएगी। लेकिन हौसला नहीं हारने वाली महिला ने अपने आप को संभाले रखा। जिसका नतीजा है कि आज बेटा तीन साल का हो गया है। बड़ा बेटा छठी कक्षा में पढ़ रहा है। जिंदगी की गाड़ी पटरी पर आ गई है।

300 रुपए औसत कमाई

फलों का ठेला लगाकर जीवन यापन कर रही अंजलि ने बताया कि महिलाओं ने पुरुषों का वर्चस्व हर क्षेत्र में तोड़ा है। आज कोई भी ऐसा कार्य नहीं है, जिसे महिलाएं नहीं कर रही हैं। अंजली बताती है कि वह सुबह जाकर मंडी से ताजे फलों की खरीदारी करती है और इसके बाद बाजार में पहुंचकर दुकान लगानी है। औसतन हर रोज करीब 300 की आय हो जाती है।

बच्चों की कामयाब बनाना है लक्ष्य

फलों का ठेला लगाकर जीवन की गाड़ी खींच रही अंजलि ने बताया कि उसका लक्ष्य बच्चों को कामयाब बनाना है। जिसके लिए वह अाजीवन स्वरोजगार करने को भी तैयार है। बच्चों के कामयाब होने के बाद ही आगे कुछ सोचा जाएगा। उसके इस कार्य में वृद्ध माता-पिता का भी सहयोग मिल रहा है।


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