जातीय राजनीति को ध्वस्त करने में विकास की भूमिका अहम, जानिए और क्या रहे कारण
जाति की बुनियाद पर शुरू की गई राजनीति अब धीरे-धीरे ध्वस्त हो रही है। हाल ही में आए लोकसभा चुनाव के परिणाम ने दशकों से चली आ रही इस जातीय राजनीति के मिथक को काफी हद तक तोड़ा है।
हल्द्वानी, जेएनएन : जाति की बुनियाद पर शुरू की गई राजनीति अब धीरे-धीरे ध्वस्त हो रही है। हाल ही में आए लोकसभा चुनाव के परिणाम ने दशकों से चली आ रही इस जातीय राजनीति के मिथक को काफी हद तक तोड़ा है। इसमें सबसे अहम भूमिका विकास की है, जिससे लोगों को जातीय बंधन से मुक्त होने में बल मिलता है।
दैनिक जागरण के विमर्श कार्यक्रम में सोमवार को विषय था 'क्या दम तोड़ रही है जाति की राजनीति'। बतौर अतिथि वक्ता पहुंचे उत्तराखंड मुक्त विवि के वरिष्ठ सहायक प्राध्यापक (राजनीति विज्ञान) डॉ. सूर्यभान सिंह ने तमाम बिंदुओं पर फोकस किया। उन्होंने कहा कि चुनाव में जातीय समीकरण के ध्वस्त होने पर हैरानी की बात नहीं है। दरअसल, यह एक प्रक्रिया के तहत हुआ है। संविधान ने हर नागरिक को समान अधिकार दिए हैं। स्वतंत्रता के साथ जीवन यापन करने पर वह इन अधिकारों का उपभोग करता है। ऐसी स्थिति में भी जातीय राजनीति कमजोर होना लाजिमी है। विषय प्रवर्तन करते हुए दैनिक जागरण हल्द्वानी यूनिट के महाप्रबंधक डॉ. राघवेंद्र चड्ढा ने कहा कि राजनीति का ट्रेंड बदल रहा है। परंपरागत राजनीति के बजाय अब नई तरह की राजनीति हो गई है। यही वजह है कि जातीय समीकरण कहीं नजर नहीं आए। इनपुट इंचार्ज गोविंद सनवाल ने धन्यवाद ज्ञापित किया।
सामाजिक संरचना में बदलाव
अतिथि वक्ता ने बताया कि आजादी के साथ सामाजिक संरचना में बदलाव आना शुरू हुआ, पर समानता के अधिकार का उपभोग करने के लिए संघर्ष करना पड़ा। लेकिन जातीय चेतना के साथ विकास के जुडऩे पर लगातार स्थितियां बदलीं। दरअसल, यह सबकुछ लोकतांत्रिक प्रक्रिया के मुताबिक हुआ।
हर चुनाव में प्राथमिकताएं व मांग बदलेगी
रोजगार, शिक्षा व स्वास्थ्य इन जमीनी मुद्दों पर काम होने पर जातीय व अन्य राजनैतिक बंदिशें टूटती थीं, लेकिन मतदाता की अपेक्षा हर चुनाव में बदलेगी। मांग पूरी नहीं होने पर ही वह बदलाव भी लाता है।
निर्देशित मतदान अब कम
प्रभुत्व जाति के लोग पहले निर्देशित मतदान करवाते थे। यानी खास निर्देश पर एकतरफा वोटिंग, पर अब मतदाता चुपचाप वोटिंग कर चौंका रहा है, जिससे राजनीति में वर्चस्व स्थापित कर चुके दल भी हैरान है।
पहले काम हुआ पर सक्षम को लाभ ज्यादा
वंचितों को मुख्यधारा से जोडऩे के लिए पहले भी काफी काम हुए। लेकिन कहीं न कहीं अक्षम की जगह सक्षम ने ज्यादा मात्रा में इसका लाभ पाया। अब हर मुद्दे को इतना प्रचारित किया जाता है, जिससे पात्र व्यक्ति तक जानकारी पहुंच रही है।
लोक के दबने पर हालात खराब
आजादी से पहले तंत्र ने हमेशा लोक को दबाया, पर आजादी के बाद स्थितियों में धीरे-धीरे बदलाव आना शुरू हुआ। वंचितों ने एकजुट होकर अपने हक के लिए आवाज उठाई। सरकारों ने जब-जब अधिकारों के उपभोग का माहौल बनाया, जातिगत राजनीति कमजोर हुई।
अस्तित्व बरकरार व समृद्धि बढ़े
भारतीय समाज में पहले जातिगत संरचना काफी कठोर रही, जिससे वंचितों को अस्तित्व बरकरार रखने के साथ समृद्धि को बढ़ाने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा। मूलभूत सुविधाओं को पाने के साथ शैक्षिक स्तर बढऩे पर वह मजबूत हुए।
अतिथि वक्ता का परिचय
डॉ. सूर्यभान सिंह का जन्म यूपी के सुल्तानपुर जिले में हुआ। इलाहबाद विवि से राजनीति विज्ञान में परास्नातक करने के बाद उन्होंने डॉ. राम मनोहर लोहिया अवध विवि फैजाबाद से पीएचडी की। इसके बाद सुल्तानपुर कॉलेज में राजनीति विज्ञान के प्रवक्ता का दायित्व निभाया। वर्तमान में वह यूओयू के राजनीति विज्ञान विभाग में साल 2010 से वरिष्ठ सहायक प्राध्यापक पद पर कार्यरत हैं।
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