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Coronavirus Lockdown : रोज सैकड़ों की भीड़ झेल रहे रोडवेज के ड्राइवर, 34 रुपये में चाय पिए या खाना खाए

कोरोना संक्रमण के इस नाजुक दौर में रोजना सैकड़ों की भीड़ झेल रहे रोडवेज के कोरोना वाॅरियर्स की सुध महकमे को नहीं है। क्यों चलिए बताते हैं।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Mon, 11 May 2020 12:21 PM (IST)Updated: Mon, 11 May 2020 12:21 PM (IST)
Coronavirus Lockdown : रोज सैकड़ों की भीड़ झेल रहे रोडवेज के ड्राइवर, 34 रुपये में चाय पिए या खाना खाए
Coronavirus Lockdown : रोज सैकड़ों की भीड़ झेल रहे रोडवेज के ड्राइवर, 34 रुपये में चाय पिए या खाना खाए

हल्द्वानी, अविनाश श्रीवास्तव : कोरोना संक्रमण के इस नाजुक दौर में रोजना सैकड़ों की भीड़ झेल रहे रोडवेज के कोरोना वाॅरियर्स की सुध महकमे को नहीं है। क्यों चलिए बताते हैं। दस रुपये में एक चाय आती है। बीस रुपये में एक आधा प्लेट चावल। मगर रोडवेज के अफसर मानते हैं कि उनका चालक 34 रुपये में तीन टाइम पेट भी भर लेगा और बस दौड़ाने के बाद छायी सुस्ती को तोडऩे के लिए चाय की चुस्की भी मार लेगा। अफसरों के सामने अपने दर्द को बयां करने के बावजूद कोई सुनने को तैयार नहीं है। अब नौकरी जाने के डर से चालक-परिचालक जैसे-तैसे इन परिस्थितियों में भी काम करने को मजबूर है।

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दिल्ली, हरियाणा व अन्य प्रदेशों से प्रवासियों को लाने का काम तेजी से चल रहा है। कोरोना योद्धा बनकर रोडवेज के चालक-परिचालक इस काम में जुटे हैं। शासन का आदेश प्रशासन के माध्यम से परिवहन निगम तक पहुंचता है। उसके बाद तुरंत निगम के अफसर डिपो से बसों को भिजवाते हैं। छह दिन पहले रोडवेज ने रामनगर, रानीखेत आदि डिपो की बसों को हल्द्वानी बुलवाया। वहीं चालक-परिचालक जोड़कर करीब सौ लोगों का स्टाफ रोजाना यहां खाना खाता है। इन्हें पेट भरने के लिए रोडवेज के अधिकारियों ने रोजाना पांच हजार रुपये दिए हैं। कर्मचारियों की माने तो एक हजार रुपये रोज दो कारीगरों को भुगतान किया जाता है। इसके अलावा टेंट और बर्तन में छह सौ रुपये खर्च होते हैं। इसके बाद बचे 3400 रुपये। जिसमें चाय, नाश्ता, दिन और रात का खाना सब करना पड़ता है। वहीं, अफसरों को सबकुछ पता होने के बावजूद उन्होंने मदद करने की जरूरत नहीं समझी।

रात में संस्था ने भरा पेट

सप्ताह भर बाहर से आई बसों ने रात में यात्रियों को उतारने के बाद जब खाने खिलवाने को कहा तो अधिकारी मौन साध गए। जिसके बाद एक संस्था ने आगे बढ़ते हुए सबके लिए चावल की व्यवस्था की। वहीं धर्मा जोशी, हल्द्वानी डिपो प्रभारी ने बताया कि चालक-परिचालक के भोजन के लिए रोजना करीब चार से पांच हजार का खर्चा किया जाता है।

स्टाफ की पीड़ा भी सुन लीजिए

रामनगर डिपो के चालक सुबा सिंह ने बताया कि उन्हें शुगर की दिक्कत है। हर वक्त दवा साथ लेकर चलते हैं। सात दिन पहले आदेश मिला था कि एक दिन की ड्यूटी करनी है। मगर तब से स्टेडियम के बगल में खुले मैदान के नीचे पड़ा हूं। अब दवा तक खत्म हो गई। मगर कोई सुनने को तैयार नहीं। वहीं रानीखेत डिपो के चालक नरेंद्र सिंह के मुताबिक वह तीन दिन पहले हल्द्वानी आए थे। तपती धूप की वजह से बसों में बैठना मुश्किल हो गया। दिन पेड़ों के नीचे और रात बस की सीट में कटती है। मास्क और सेनिटाइजर तक नसीब नहीं हुआ।

दिन का खाना शाम को पहुंचा

चालक-परिचालक की परेशानी को देखते हुए निगम ने पहले एक संस्था को चिन्हित किया था। मगर दिन का खाना शाम को मिलने पर कर्मचारी भड़क गए। जिसके बाद आइएसबीटी की पुरानी जमीन पर भोजन बनवाने की व्यवस्था की गई। मगर यह काम भी अव्यवस्था की भेंट चढ़ गया।

नदी और झाडिय़ों में शौच को मजबूर

गौलापार में रोडवेज कर्मियों के लिए अस्थायी शौचालय की व्यवस्था करना निगम भूल गया। मजबूरी में अब चालक-परिचालक नदी किनारे या झाडिय़ों में शौच को जाते हैं। ऐसे में गंदगी के साथ संक्रमण फैलने का डर भी बना हुआ है। अंतरराष्ट्रीय स्टेडियम में जाने की परमिशन किसी को नहीं है।

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