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चीन सीमा तक पहुंंची सड़क, बॉर्डर सुरक्षित, कश्मीर-लद्दाख की तर्ज पर खुलेंगे पर्यटन के नए द्वार

चीन द्वारा भारत सीमा तक सड़क निर्माण के अब भारत ने भी उत्तराखंड से सटे चीन बॉर्डर लिपूलेख तक सड़क निर्माण का कार्य पूरा कर लिया है।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Fri, 08 May 2020 09:44 AM (IST)Updated: Fri, 08 May 2020 09:44 AM (IST)
चीन सीमा तक पहुंंची सड़क, बॉर्डर सुरक्षित, कश्मीर-लद्दाख की तर्ज पर खुलेंगे पर्यटन के नए द्वार
चीन सीमा तक पहुंंची सड़क, बॉर्डर सुरक्षित, कश्मीर-लद्दाख की तर्ज पर खुलेंगे पर्यटन के नए द्वार

पिथौरागढ़, जेएनएन : चीन द्वारा भारत सीमा तक सड़क निर्माण के अब भारत ने भी उत्तराखंड से सटे चीन बॉर्डर लिपूलेख तक सड़क निर्माण का कार्य पूरा कर लिया है। सामरिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण इस सड़क के बनने से भारतीय सेना आसानी से हथियारों व रसद की आपूर्ति कर सीमा को सुरक्षित कर सकेगी। पहाड़ों को काटकर बनाए गए इस सड़क से कैलास मानसरोवर यात्रियों व पर्यटकों को भी काफी सुविधा होगी। श्रद्धालु व पर्यटक पहाड़ के दुर्गम रास्तों पर बिना पैदल चले आसानी से सफर पूरा कर सकेंगे। हिमालय के ग्लेशियरों तक पहुंच आसान होने से अब कश्मीर-लद्दाख की तर्ज पर पर्यटन के नए द्वार खुलने की संभावना है।

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20 साल पहले तैयार हुआ था सड़क निर्माण का प्रस्ताव

उत्तर भारत को चीन से जोडऩे के लिए पिथौरागढ जिले के गर्बाधार से चीन सीमा लिपूलेख तक 76 किमी लंबी सड़क को सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) ने तैयार कर लिया है। सुरक्षा पर कैबिनेट समिति (सीसीएस) ने 1999 में रक्षा मंत्रालय के तहत बीआरओ द्वारा इन सड़कों के निर्माण को मंजूरी दी थी। इस परियोजना को 2003 से 2006 के बीच पूरा किया जाना था, लेकिन उस अवधि में कार्य न हो पाने के कारण समय सीमा को 2012 तक बढ़ा दिया गया था। बढ़ाए गए समय सीमा में सड़क निर्माण का लक्ष्य पूरा न किया जा सका। काम में देरी होते देख 2017 में बीआरओ ने यह जिम्मा निजी कंपनी गर्ग एंड गर्ग को सौंप दिया। विषम भौगोलिक परिस्थिति के चलते सड़क निर्माण में तमाम बाधाएं आईं। मालपा में कठोर चट्टानों की कटाई में आस्ट्रेलिया से आधुनिक मशीनें मंगाई गईं। इन मशीनों को हेलीकॉप्टर से क्षेत्र में उतारा गया। आखिरकार बीआरओ के निर्देशन में चीन सीमा तक सड़क निर्माण का काम पूर कर लिया गया।

आसानी से बॉर्डर तक पहुंच सकेंगे हथियार और जवान

भारत के लिए अंतरराष्ट्रीय रूप से चीन सीमा को संचार व परिवहन की सुविधा से लैस करना बेहद महत्वपूर्ण मसला था। सड़क न होने के कारण सीमा तक जवानों के पहुंचने और गश्त करने में काफी मुश्किलें आती थीं। पहाड़ का दुर्गम सफर कर हाथियार पर रसद के साथ पहुंचना जवानों के लिए काफी चुनौती भरा होता था। इसके लिए खच्चर और घोड़ाें की मदद ली जाती थी। अब जबकि सड़क का निर्माण पूरा हो गया है। भारतीय सेना, आइटीबीपी, बीआरओ के वाहन सीधे चीन सीमा तक पहुंच सकेंगे। बता दें कि पहले धारचूला से सीमा तक पहुंचने में चार दिन का समय लग जाता था।

ऑलवेदर रोड सुगम बनाएगी रास्ता

टनकपुर से पिथौरागढ़ होते अस्कोट तक ऑलवेदर रोड और अस्कोट से चीन सीमा लिपूलेख तक भारतमाला योजना के तहत सड़क का निर्माण हुआ है। इस सड़क के बन जाने से कुमाऊं के मैदानी इलाकों से ग्लेशियरों की दूरी भी घट जाएगी। वर्तमान में चम्पावत जिले के टनकपुर से पिथौरागढ़ तक ऑलवेदर सड़क का निर्माण कार्य चल रहा है। निर्माण पूरा होते ही टनकपुर से पिथौरागढ़ के बीच 150 किमी का सफर तीन से साढ़े तीन घंटे में तय हो जाएगा। ऑलवेदर सड़क का निर्माण पिथौरागढ़ से 53 किमी दूर अस्कोट तक होना है। यह कार्य बीआरओ के संचालन में हो रहा है।

कश्मीर-लद्दाख जैसे खुलेंगे पर्यटन के द्वार

अब ऑलवेदर रोड के निर्माण का कार्य पूरा होने के का इंतजार है। जैसे ही यह पूरा होता है तो आस्कोट तक का सफर आसान हो जाएगा और अस्कोट से लिपूलेख तक सड़क निर्माण का काम पूरा ही हो चुका है। ऐसे में चीन सीमा तक अब मैदानी क्षेत्र के टनकपुर व हल्द्वानी से पहुंचना आसान हो जाएगा। अच्छी सड़क होने पर टनकपुर और हल्द्वानी से सुबह चलने पर शाम तक उच्च हिमालय तक पहुंचा जा सकेगा। उच्च हिमालय में पर्यटन को पंख लगेंगे। ग्लेशियर और बुग्यालों तक पर्यटकों की पहुंच सुगम हो सकेगी। विशेषज्ञ मानते हैं कि सीमांत का उच्च हिमालयी क्षेत्र कश्मीर और लद्दाख की तरह पर्यटकों की पसंद सकता है।

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