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मिट्टी में घुल रहे सोयाबीन के प्रमाणित बीजों के परिणाम

सोयाबीन के बीजों को लेकर लगातार किसानों की शिकायतें सामने आ रहे हैं।

By Edited By: Published: Tue, 18 Sep 2018 11:49 PM (IST)Updated: Wed, 19 Sep 2018 04:11 PM (IST)
मिट्टी में घुल रहे सोयाबीन के प्रमाणित बीजों के परिणाम
जागरण संवाददाता, हल्द्वानी : सोयाबीन के बीजों को लेकर लगातार किसानों की शिकायतें सामने आ रही है। विगत दो वर्षों से सोयाबीन के सकारात्मक परिणाम नहीं मिल रहे हैं। इस बार खरीफ सीजन 2018 में वितरित किए गए सोयाबीन बीज को लेकर भी शिकायतें सामने आने लगी हैं। कृषि विशेषज्ञ इसके पीछे मौसम में परिवर्तन को एक बड़ी वजह मान रहे हैं। प्रदेश की भौगोलिक परिस्थितियों के अनुकुल बीज न मिलने से दिक्कतें हो रही है। इस बार नैनीताल जिले के कोटाबाग ब्लाक में सोयाबीन का सात क्िवटल बीज खराब निकला, जबकि तराई-भाबर के इलाकों में शिकायतें नहीं आई। खरीफ सीजन 2018 में कुमाऊं के छह जिलों में 1024.66 क्विंटल सोयाबीन का बीज किसानों का वितरित किया गया। जबकि विगत वर्ष 2017 में केवल 652.25 क्विंटल बीज ही वितरित किया गया। सोयाबीन के बीजों पर बीज ग्राम योजना के अंतर्गत किसानों को प्रति किलो बीज की खरीद पर 36 रुपये की सब्सिडी दी जाती है। साथ ही राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन तिलहन पर प्रति किलो 40 रुपये की सब्सिडी दी जाती है। सब्सिडी पर मिल रहे बीजों को लेकर किसान अक्सर अच्छे परिणाम नहीं आने की शिकायत करते हैं। हालांकि सोयाबीन की फसल अभी तैयार हो रही है, इसलिए यह सीजन की समाप्ति के बाद ही पता चल पाएगा कि वितरित किए गए बीजों से कितनी मात्रा में फसल का उत्पादन हुआ। तीन स्तरों पर होती है बीजों की जांच किसानों को वितरित करने के लिए राष्ट्रीय बीज विकास निगम एवं तराई बीज विकास निगम से मांग के अनुरूप कृषि विभाग को बीज उपलब्ध कराए जाते हैं। बीजों की पहली जांच उत्पादक संस्था करती है, इसके बाद उत्तराखंड राज्य बीज प्रमाणीकरण संस्था बीजों की जांच करती है। तीसरे स्तर पर कृषि विभाग अपनी लैब में बीजों की गुणवत्ता जांचता है। राजकीय कृषि परीक्षण एवं प्रदर्शन केंद्र की प्रयोगशाला में परीक्षण के बाद ही बीज वितरण के लिए गोदामों में भेजे जाते हैं। इतने स्तरों पर जांच के बाद भी सोयाबीन उत्पादन में किसानों को अनुकूल परिणाम नहीं मिल रहे। स्थानीय स्तर पर तैयार नहीं हो पा रहे बीज सोयाबीन की खरीद के लिए कृषि विभाग को तराई बीज विकास निगम और राष्ट्रीय बीज विकास निगम पर ही निर्भर रहना पड़ता है। ज्यादातर बीज मध्यप्रदेश और देश के अन्य सोयाबीन उत्पादक राज्यों से होते हैं। प्रदेश की जलवायु, पर्वतीय क्षेत्रों की भौगोलिक परिस्थितियों में यह बीज मौसम अनुकूल न होने पर अपेक्षित परिणाम नहीं दे पाते। बीज खराब होने का यह भी है कारण सोयाबीन के बीज अन्य अनाजों के मुकाबले ज्यादा नाजुक होते हैं। बुवाई कुछ घंटों बाद बारिश होने से इन बीजों में फंगस लग जाता है। यहां तक की बीज के छिलके में क्रैक आने से भी बीज नहीं पनप पाता। बीज के पैकेट को ट्रांसपोर्टेशन के दौरान पटकने से भी बीज को नुकसान पहुंचता है। जमीन से तीन इंच से ज्यादा गहराई पर बोने से भी बीज पौधा नहीं बन पाता।

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