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खनन से होने वाले मानव-वन्यजीव संघर्ष पर होगा रिसर्च, प्रमुख वन संरक्षक की अध्यक्षता वाली कमेटी में लिया निर्णय

नदियों में खनन की वजह से मानव-वन्यजीव संघर्ष की घटनाओं पर अब वन विभाग रिसर्च करेगा। शुरूआत उत्तराखंड की सबसे बड़ी खनन नदी गौला से होगी। इसके बाद नंधौर शारदा व कोसी-दाबका को भी रिसर्च में शामिल लिया जाएगा।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Mon, 22 Feb 2021 07:23 AM (IST)Updated: Mon, 22 Feb 2021 07:23 AM (IST)
खनन से होने वाले मानव-वन्यजीव संघर्ष पर होगा रिसर्च, प्रमुख वन संरक्षक की अध्यक्षता वाली कमेटी में लिया निर्णय
खनन से होने वाले मानव-वन्यजीव संघर्ष पर होगा रिसर्च, प्रमुख वन संरक्षक की अध्यक्षता वाली कमेटी में लिया निर्णय

हल्द्वानी, जागरण संवाददाता : नदियों में खनन की वजह से मानव-वन्यजीव संघर्ष की घटनाओं पर अब वन विभाग रिसर्च करेगा। शुरूआत उत्तराखंड की सबसे बड़ी खनन नदी गौला से होगी। इसके बाद नंधौर, शारदा व कोसी-दाबका को भी रिसर्च में शामिल लिया जाएगा। इन इलाकों से गुजरने वाले कारीडोर भी शोध का हिस्सा होंगे।

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हल्द्वानी में शीशमहल से लेकर शांंतिपुरी तक गौला के 11 निकासी गेटों से उपखनिज निकाला जाता है। नवंबर से लेकर मई तक जंगल के इस हिस्से में वाहनों के साथ मानवीय हस्तक्षेप आम बात है। यहीं, स्थिति अन्य नदियों की भी है।

डीएफओ तराई पूर्वी संदीप कुमार ने बताया कि हाल में प्रमुख वन संरक्षक राजीव भरतरी ने गौला अनुश्रवण समिति की बैठक में यह निर्देश दिए कि खनन क्षेत्र वाले इलाकों में मानव-वन्यजीव संघर्ष का पिछला डाटा जुटाने के बाद डब्लूडब्लूआइ, डब्लूडब्लूएफ के अलावा वन्यजीव संघर्ष को कम करने व वन्यजीवों के संरक्षण को लेकर काम करने वाले एनजीओ के साथ मिलकर काम किया जाएगा।

एक कमेटी के तौर पर काम करने का उद्देश्य मानव-वन्यजीव संघर्ष से जुड़ी घटनाओं पर रोक लगाना होगा। पीसीसीएफ राजीव भरतरी के आदेश पर वन विभाग पुराने आंकड़े खंगालने में जुट गया है।

रिसर्च के मुख्य बिंदु : वन विभाग के मुताबिक खनन क्षेत्र में यह पता लगाया जाएगा कि यहां वन्यजीवों का मूवमेंट किस तरह है। उनके आवागमन को लेकर किसी तरह की दिक्कत तो नहीं। इन क्षेत्रों में मानव-वन्यजीव संघर्ष को किस तरह कम किया जाए। यह सब रिसर्च का अहम हिस्सा रहेंगे।

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