बड़ी रेल लाइन के आंदोलन में दिखी थी कौमी एकता की मिसाल, रामलीला और मोहर्रम दोनों रहे स्थगित
33 साल पहले रामनगर में बड़ी रेल लाइन को लेकर जबरदस्त आंदोलन चला था। उस दौर में बड़ी रेल लाइन लाने के लिए पूरे एक महीने आंदोलन चला। सत्रह दिन बाजार बंद रखा गया। सुबह के आठ बजते ही सभी रेलवे स्टेशन पर धरना देते रोजाना रेल रोकते थे।
जागरण संवाददाता, रामनगर (नैनीताल) : अतीत के पन्ने पलटे तो उस दौर में हिंदू-मुस्लिम एकता की जो कौमी मिसाल देखने को मिली थी वो आज शायद ही देखने को मिले। 33 साल पहले रामनगर में बड़ी रेल लाइन को लेकर जबरदस्त आंदोलन चला था। उस दौर में बड़ी रेल लाइन लाने के लिए पूरे एक महीने आंदोलन चला। सत्रह दिन बाजार बंद रखा गया। सुबह के आठ बजते ही व्यापारी, किसान, मजदूर, छात्र सभी रेलवे स्टेशन पर धरना देते, रोजाना रेल रोकते थे। दरअसल, 1970 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने रामनगर एमपी इंटर कालेज में जन सभा के दौरान घोषणा की थी कि रामनगर मुरादाबाद रेल लाइन को बड़ी रेल लाइन में बदला जाएगा। 17 साल बीतने के बाद भी जब बड़ी रेल लाइन नहीं आई तो 1987 में लोगो के सब्र का बांध टूट गया और बड़ी रेल लाइन को लेकर एक ऐतिहासिक आंदोलन शुरू हो गया।
आंदोलन पूरी तरह अहिंसक था। रेल रोको ओर दिन भर रेलवे स्टेशन पर धरना देना सभी का संकल्प था। जब माग पूरी न होते दिखी तो रामनगर के आवाम ने घोषणा कर दी कि जब तक बड़ी रेल लाइन नही आएगी तब तक न तो हिन्दू रामलीला करेंगे और मुस्लिम मोहर्रम नहीं मनाएंगे। बस फिर क्या था। केंद्र सरकार भी जनता के इस निर्णय से आवाक रह गयी। कई दौर की वार्ता विफल हो गयी। आंदोलन जारी रहा। रेलवे स्टेशन पर ही लंगर चलता रहा। लोग धरने पर डटे रहे। तब केंद्र में तत्कालीन वित्त एवं वाणिज्य मंत्री रहे एनडी तिवारी ने आश्वासन दिया कि वो अब रामनगर तब ही आएंगे जब तब यहां बड़ी रेल लाइन नहीं आ जाएगी। तब कहीं जाकर आंदोलन समाप्त हुआ। अपने वादे के पक्के एनडी तिवारी 3 जून 1988 को रामनगर में बड़ी रेल लाइन लेकर आए और तत्कालीन रेल मंत्री माधव राव सिंधिया व रेल उपमंत्री महावीर प्रसाद को भी लेकर आए। उस दौर का आंदोलन कौमी एकता का आंदोलन रामनगर के इतिहास में आज भी मिसाल है।