उत्तराखंड में संरक्षित की जा रहीं रामायण और महाभारत काल से जुड़ी वनस्पतियां
देवभूमि उत्तराखंड में हिमालयी वनस्पतियों का अद्भुत संसार है। इनमें धार्मिक ऐतिहासिक और औषधीय महत्व की औषधियां भी हैं।
हल्द्वानी, जेएनएन : देवभूमि उत्तराखंड में हिमालयी वनस्पतियों का अद्भुत संसार है। इनमें धार्मिक, ऐतिहासिक और औषधीय महत्व की औषधियां भी हैं। इन वनस्पतियों को संरक्षित करने का काम वन अनुसंधान केंद्र के हल्द्वानी में किया जा रहा है। इन वनस्पतियों को संरक्षित करने की मंसा जहां लोगों को पर्यावरण के प्रति सचेत करना है वहीं अपनी धार्मिक और ऐतिहासिक वन सपंदाओं से लोगों को अवगत कराना भी है।
वन अनुसंधान केंद्र के संरक्षक संजीव चतुर्वेदी बताते हैं कि धार्मिक महत्व की प्रजातियों को संरक्षित व प्रचारित कर लोगों के अंदर पर्यावरण को बचाने की अलख भी पैदा होगी। क्योंकि, धार्मिक महत्व सिद्ध होने पर आम लोगों में भी इन वनस्पतियों के प्रति एक जुड़ाव पैदा होगा। भगवान श्री कृष्ण, रामायण काल, आदि गुरु शंकराचार्य और स्वामी विवेकानंद से जुड़ी वनस्पतियों को वन अनुसंधान केन्द्र संरक्षित कर रहा है। भगवान बद्रीनाथ को चढऩे वाली बद्री तुलसी को भी बचाने का प्रयास किया गया है।
शंकराचार्य व विवेकानंद का तप वृक्ष
आदि गुरु शंकराचार्य ने जोशीमठ में कल्पवृक्ष के नीचे तप किया था। यह पेड़ आज भी मौजूद है। वन अनुसंधान इसके बीजों का चयन कर रोपित करेगा। वहीं, अल्मोड़ा से 22 किमी पहले काकड़ीघाट में स्वामी विवेकानंद ने पीपल के पेड़ के नीचे ध्यान लगाया था। पांच साल पहले इस पेड़ का क्लोन तैयार हुआ था।
पंचमुखी रुद्राक्ष
आदि काल से रुद्राक्ष धारण करना शुभ माना जाता है। वन अनुसंधान केंद्र ने एफटीआइ स्थित नर्सरी में क्लोनल विधि के जरिये इसके पेड़ों को संरक्षित किया है। धार्मिक के साथ औषधीय महत्व का रुद्राक्ष रक्तचाप को निंयत्रित करने में भी असरदार है। इसके अलावा नवग्रह वाटिका में नक्षत्र से जुड़े प्रजातियों को संरक्षित किया गया है।
रामायण व कृष्ण वाटिका
वाल्मीकी रचित रामायण में अलग-अलग प्रकार की वनस्पतियों का वर्णन है। वन अनुसंधान तीन दर्जन से अधिक रामायण काल में मिलने वाली प्रजातियों को वाटिका में संजो चुका है। इसके अलावा कृष्ण वाटिका में भगवान श्री कृष्ण से जुड़े प्रजातियों को स्थान दिया गया है।
भगवान बद्रीनाथ की तुलसी
मध्य हिमालयी क्षेत्र में पाई जाने वाली बद्री तुलसी का औषधीय और धार्मिक महत्व भी है। भगवान बद्रीनाथ के धाम में इसे चढ़ाया जाता है। अत्याधिक दोहन की वजह से यह कम हो रही है। इसलिए देववन में भी इसे संरक्षित किया जा रहा है।