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कीवी उत्पादन से आत्मनिर्भरता का पाठ पढ़ा रही रमा

जासं हल्द्वानी हर्बल गार्डन के जरिये जड़ी-बूटियों का उत्पादन करने वाली नथुवाखान निवासी रमा बिष्ट महंगे फल में शुमार कीवी को भी खुद और आसपास के लोगों की इनकम का जरिया बना रही है।

By JagranEdited By: Published: Sun, 18 Oct 2020 09:10 PM (IST)Updated: Sun, 18 Oct 2020 09:10 PM (IST)
कीवी उत्पादन से आत्मनिर्भरता का पाठ पढ़ा रही रमा
कीवी उत्पादन से आत्मनिर्भरता का पाठ पढ़ा रही रमा

जागरण संवाददाता, हल्द्वानी: हर्बल गार्डन के जरिये जड़ी-बूटियों का उत्पादन करने वाली नथुवाखान निवासी रमा बिष्ट महंगे फल में शुमार कीवी को भी खुद और आसपास के लोगों की इनकम का जरिया बना रही है। पर्वतीय काश्तकारों के साथ मिलकर अक्टूबर व नवंबर के दो माह के बिक्री सीजन में करीब तीन लाख का कीवी हल्द्वानी मंडी पहुंचा देते हैं। रमा का कहना है कि कीवी को लगाने में मेहनत भले ज्यादा है, लेकिन स्वरोजगार के नजरिये से यह बेहतर है।

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रामगढ़ के नथुवाखान निवासी रमा बिष्ट ने अपनी आठ नाली जमीन पर हर्बल गार्डन तैयार किया है। कई तरह की हर्बल चाय के साथ सेब, खुमानी व अन्य फलों का जूस, जैम भी तैयार किया जाता है। हर्बल गार्डन की वजह से रमा 25 महिलाओं को रोजगार मुहैया करवा रही है। वहीं, काश्तकारी और बागवानी के जुनून की बदौलत वह कीवी का उत्पादन भी कर रही है। रमा ने बताया कि बेलनुमा पेड़ की हिफाजत करने पर ही मेहनत का फल मिलता है। साल में दो महीने फल आने का सीजन रहता है। खुद की जमीन के अलावा आसपास के पांच गांवों के दस लोगों को मिलाकर करीब 15 क्विंटल कीवी उत्पादन होता है। जिसे हल्द्वानी मंडी में 200 रुपये किलोग्राम का दाम मिलता है। डेंगू में रामबाण व पौष्टिक तत्वों की भरपूरता के कारण बड़े शहरों में इसकी खास डिमांड है। रमा का कहना है कि पहाड़ पर लौटे लोग धीरे-धीरे ही सही, कीवी उत्पादन से भी रोजगार खड़ा कर सकते हैं। छोटा फल अन्य काम में

महिला काश्तकार का पूरा परिवार उनके साथ मेहनत करता है। रमा के मुताबिक कीवी खरीदने के बाद उसकी छंटाई करते हैं। अगर कोई पीस छोटा रह गया या फिर कच्चा रह गया तो उसे पकाने के बाद जैम, चटनी और जूस बनाकर बेचा जाता है। रमा का कहना है कि वह और बाकी काश्तकार अपनी मेहनत से उत्पादन करते हैं। अगर सरकारी स्तर पर ब्रांडिंग की जाए तो परिणाम और बेहतर होगा।


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