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हल्द्वानी मेडिकल कॉलेज से नौ डॉक्टरों को अल्मोड़ा मेडिकल कॉलेज भेजने पर उठे सवाल

राजकीय मेडिकल कॉलेज हल्द्वानी में लंबे समय से सेवा देने वाले नौ डॉक्टरों को अल्मोड़ा भेज दिया गया है। हालांकि यहां पहले से ही फैकल्टी कम है।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Sun, 13 Sep 2020 01:52 PM (IST)Updated: Sun, 13 Sep 2020 01:52 PM (IST)
हल्द्वानी मेडिकल कॉलेज से नौ डॉक्टरों को अल्मोड़ा मेडिकल कॉलेज भेजने पर उठे सवाल
हल्द्वानी मेडिकल कॉलेज से नौ डॉक्टरों को अल्मोड़ा मेडिकल कॉलेज भेजने पर उठे सवाल

गणेश जोशी, हल्‍द्वानी : राजकीय मेडिकल कॉलेज हल्द्वानी में लंबे समय से सेवा देने वाले नौ डॉक्टरों को अल्मोड़ा भेज दिया गया है। हालांकि यहां पहले से ही फैकल्टी कम है। 22 प्रतिशत डॉक्टरों की कमी की वजह से एमसीआइ की पूर्ण मान्यता नहीं मिल पा रही है। ऐसे में एसोसिएट प्रोफेसर व प्रोफेसर स्तर के नौ डॉक्टरों को भेजने के निर्णय पर सरकार की मंशा अल्मोड़ा में एमबीबीएस कोर्स शुरू करवाना है, लेकिन दुर्भाग्य है कि जिम्मेदार 10 साल से डॉक्टरों के लिए पेयजल जैसी मूलभूत सुविधा तक उपलब्ध नहीं करा सके। वैसे इन डॉक्टरों में कुछ की कार्यप्रणाली अच्छी रही है तो कुछ के विवाद सुर्खियों में भी रहे। अब इन वरिष्ठ डॉक्टरों पर पहाड़ में खोले जा रहे मेडिकल कॉलेज को शुरू करवाने, बेहतर इलाज उपलब्ध कराने और चिकित्सा सुविधा में मिसाल पेश करने की चुनौती है। उम्मीद है मेडिकल कॉलेज संवरेगा और पहाड़ की जरूरतों पर खरा भी जरूर उतरेगा।

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नौकरी के साथ पर्यावरण संरक्षण

राज्य में पहले से ही बेरोजगारी का ग्राफ तेजी से बढ़ रहा था। लॉकडाउन से इसमें उछाल आ गया। ऐसे में बेरोजगारों के लिए नौकरी मिलना सपना हो गया है। सरकार स्वरोजगार की पहल तो कर रही है, लेकिन जमीनी स्तर पर बहुत अधिक लाभ नहीं मिल पा रहा। त्रिवेंद्र सरकार ने वन विभाग में 10 हजार लोगों को नौकरी दिए जाने का फैसला लिया है। हालांकि यह सामान्य नौकरी होगी, लेकिन वन संरक्षण के साथ नौकरी देने की पहल अच्छी है। पेड़-पौंधों को संरक्षित करने का यह अनूठा प्रयास होगा, लेकिन इस तरह की पहल पहले भी हुई थी। जंगलों को बचाने के लिए स्थानीय लोगों को रोजगार दिया था। मॉनिटरिंग नहीं होने, नौकरी करने वालों का लापरवाह रवैया और अधिकारियों की अनदेखी से वन संरक्षण की पहल महज औपचारिकता भर रही। उम्मीद है इस बार कुछ बेहतर होगा। आखिर उम्मीद में क्या जाता है। कोई बुराई तो नहीं।

भाजपा, मनमुटाव और अपने मंत्री

भाजपा को अनुशासित पार्टी यूं ही नहीं कहा जाता। इसमें कुछ तो है ही। राज्य में सत्तासीन दल के विधायक पिछले दिनों नौकरशाही के रवैये से नाराज दिखे। नाराजगी सुर्खियों में रही। भले ही मन ही मन उपेक्षा कचोट रही हो, फिर भी नेतृत्व पर किसी ने सीधे सवाल नहीं उठाया। हालांकि नेतृत्व के इशारे के बिना किसी विभाग का अभियंता भी विधायक यानि जनप्रतिनिधि की जायज बात न माने, ऐसा हो तो नहीं सकता। एक विधायक से जब मैंने बात की तो उनका कहना था, किसी से नाराजगी करके मुझे कुछ मिलने वाला होता तो नाराजगी करता। वैसे भी इस समय सरकार में किसी विधायक की नाराजगी का बहुत अधिक महत्व भी नहीं है, इसलिए कि सरकार के पास प्रचंड बहुमत है। इस सबके बीच एक बार फिर सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने जल्द ही तीन नए मंत्री बनाए जाने का शिगूफा छोड़ दिया है। बस और क्या चाहिए?

क्या लगता है, कांग्रेस सुधरेगी?

राज्य में दो बार सत्ता संभाल चुकी है कांग्रेस। इस पार्टी में बड़े नेता भी हैं, जिनका कद राष्ट्रीय स्तर का है। फिर भी पार्टी के शीर्ष नेताओं के बीच गुटबाजी आम है, जो राजनीतिक हलकों में हमेशा चर्चा का विषय बनी रहती है। इसी गुटबाजी में फंस गए थे राज्य प्रभारी एएन सिंह, जिन्हें अब पार्टी ने राज्य से किनारा कर दिया है। उनके स्थान पर देवेंद्र यादव को जिम्मेदारी दी है। वहीं राज्य के कुछ शीर्ष नेताओं के निशाने पर रहने वाले राष्ट्रीय महासचिव हरीश रावत का कद फिर बढ़ गया है। अब राष्ट्रीय नेतृत्व को उम्मीद है कि राज्य में गुटबाजी थमेगी। 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर पार्टी नेता एकजुट होकर जुटेंगे। फिलहाल शीर्ष नेताओं के बीच जिस तरह का मनभेद हो चुका है, ऐसे में एकजुटता को लेकर संशय इतनी जल्दी दूर नहीं होगा। फिर भी सवाल उठता है, क्या अब सुधरेगी कांग्रेस?


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