मनोचिकित्सकों ने कहा- जिसमें पॉजिटिविटी नहीं उसकी मानसिकता बूढ़ी
मनोविज्ञानियों का कहना है कि अगर हमें महामारी के दौर में खुद को मानसिक रूप से स्वस्थ रखना है तो महामारी को स्वीकार करना होगा।
हल्द्वानी, जेएनएन : जिन लोगों में पॉजिटिविटी नहीं हैं, उनकी मानसिकता भी बूढ़ी हो चुकी होती है। उनकी प्रतिरोधक क्षमता भी कम होने लगती है। मनोविज्ञानियों का कहना है कि अगर हमें महामारी के दौर में खुद को मानसिक रूप से स्वस्थ रखना है तो महामारी को स्वीकार करना होगा। योग, ध्यान, अपनों से बात कर और शौक को पूरा कर हम महामारी में मानसिक स्वास्थ्य को दुरुस्त रख सकते हैं।
विद्या अभिकल्पन की ओर से शनिवार को आयोजित वेबिनार की अध्यक्षता कर रही वरिष्ठ मनोविज्ञानी डॉ. आराधना शुक्ला ने मानसिक स्थितियों का विस्तार से चर्चा की और कहा कि लोग तन से ही नहीं, बल्कि मन व जन्मजात से भी वृद्ध होते हैं। जब पूरी दुनिया में महामारी पांव पसार चुकी है, ऐसे में हमें शारीरिक के साथ ही मानसिक स्वास्थ्य का भी ख्याल रखना चाहिए।
एसटीएच के मनोविज्ञानी डॉ. युवराज पंत ने मानसिक स्वास्थ्य पर विस्तार से चर्चा की और कहा कि हमें बार-बार कोरोना पर ध्यान देने के बजाय बचने पर ध्यान देना चाहिए। मानसिक स्वस्थ रहने के लिए मनपसंद किताबें पढ़ें। भोजन बनाएं। बच्चों व बुगुर्जों के साथ बात करें। मुरादाबाद की मनोविज्ञानी डॉ. सीमा गुप्ता ने कहा कि हर वो व्यक्ति वृद्ध हो गया है, जिसके अंदर पॉजिटिविटी नहीं है। इसलिए हमें अपनी नकारात्मकता को दूर करने का प्रयास करना चहिए।
डॉ. गुप्ता ने कहा कि जो हमेशा से ही निराशा की भावना में जीते हैं। जिन्होंने इस समस्या को अपने ऊपर ओढ़ लिया है। उनकी प्रतिरोधक क्षमता भी कम होने लगती है। अवसाद में आने की आशंका बनी रहती है। साथ ही आपकी दैनिक गतिविधियां भी प्रभावित होने लगती हैं। इससे पहले डॉ. श्वेता पाठक ने कई बिंदुओं पर विस्तार से चर्चा की। आयोजक डॉ. रुपाली जोशी ने वक्ताओं का धन्यवाद किया और कहा कि मानसिक स्वास्थ्य हम सब की पूंजी है।
पॉजिटिव लोगों को साथ जोड़ें
डॉ. रुपाली जोशी ने कहा कि वेबिनार में मनोविज्ञानियों ने चर्चा की कि इस दौर में मानसिक स्वास्थ्य बेहतर करने के लिए हम लोगों को पॉजिटिव लोगों को जोडऩा चाहिए। ये लोग समाज के लिए प्रेरणास्रोत बने रहते हैं। इस तरह के जागरूकता संबंधी कार्यक्रमों को बढ़ाने की जरूरत नहीं है।