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कोरोना महामारी के दौरान हर नागरिक को मुफ्त उपचार दिलाने के लिए हाईकोर्ट में याचिका दायर करने की तैयारी, जानिए क्या है आधार

देश के संविधान के अनुसार देश के हर नागरिक को जीने का अधिकार है। संविधान का अनुच्छेद 21 इसकी शक्ति प्रदान करता है। सुप्रीम कोर्ट ने इसकी व्याख्या करते हुए कहा है कि केवल जिंदा रहना ही काफी नहीं है बल्कि मर्यादित जीवन जीना जरूरी है।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Mon, 17 May 2021 09:49 AM (IST)Updated: Mon, 17 May 2021 05:57 PM (IST)
कोरोना महामारी के दौरान हर नागरिक को मुफ्त उपचार दिलाने के लिए हाईकोर्ट में याचिका दायर करने की तैयारी, जानिए क्या है आधार
कोरोना महामारी के दौरान हर नागरिक को मुफ्त उपचार दिलाने के लिए हाईकोर्ट में याचिका दायर करने की तैयारी

नैनीताल, किशोर जोशी : देश के संविधान के अनुसार देश के हर नागरिक को जीने का अधिकार है। संविधान का अनुच्छेद 21 इसकी शक्ति प्रदान करता है। सुप्रीम कोर्ट ने इसकी व्याख्या करते हुए कहा है कि केवल जिंदा रहना ही काफी नहीं है, बल्कि मर्यादित जीवन जीना जरूरी है। कोरोना काल में निजी अस्पतालों की लूटखसोट के सामने आते मामलों के बाद अब कोविड महामारी से ग्रसित मरीजों का निजी व सरकारी अस्पतालों में मुफ्त उपचार के लिए राष्ट्रीय मुहिम शुरू हो गई है। नैनीताल हाईकोर्ट के अधिवक्ता इस मामले में एक वर्चुअल बैठक कर चुके हैं।

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कोविड काल में हर मरीज को सरकारी व निजी हर अस्पताल में मुफ्त उपचार मिले, इसको लेकर जनहित याचिका दायर करने की तैयारी है। हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के संयुक्त सचिव शक्ति प्रताप सिंह कहते हैं, महामारी के दौर में आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 लागू है। अधिनियम सेक्शन 13 के अनुसार महामारी से निपटने तथा महामारी से प्रभावितों की मदद को रिलीफ फंड बनाना है। मतलब साफ है, जिनको ऋण चल रहा है, उनको राहत दी जाय। साथ ही जरूरतमंदों को ऋण की व्यवस्था की जाय।

संविधान ने सबको जीने का अधिकार दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 21 की व्याख्या की है। जिसमें कहा है कि सिर्फ जिंदा रहना जरूरी नहीं है बल्कि मर्यादित जीवन जीना, मसलन साफ पानी, शुद्ध हवा, सही सड़कें, प्रदूषण मुक्त माहौल देना होगा। सुप्रीम कोर्ट ने 1995 में कंज्यूमर एजुकेशन एंड रिसर्च सेंटर बनाम भारत सरकार से संबंधित जजमेंट के पैरा-24, 25 में कहा है कि नागरिक को स्वस्थ जीवन देना राज्य की जिम्मेदारी है।

1998 में सुप्रीम कोर्ट ने राम लुभाया बग्गा बनाम पंजाब स्टेट के मामले में फिर कहा है कि नागरिक को स्वस्थ जीवन प्रदान करने में किंतु परंतु नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य का अधिकार मौलिक अधिकार है, कानून नहीं बल्कि सिद्धांत है। संविधान के अनुसार सरकार को प्राइवेट अस्पतालों में उपचार का खर्च वहन करना चाहिए। निजी अस्पताल का संचालन बिजनेस नहीं है, इसमें मुनाफाखोरी बंद होनी चाहिए।

स्वास्थ्य मंत्री की हो नियुक्ति

पूर्व सांसद व वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ महेंद्र पाल ने राज्य में स्वास्थ्य मंन्त्री की नियुक्ति की मांग की है। उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य मंत्री नहीं होने से एक सप्ताह में होने वाले काम पखवाड़ा या महीने में पूरे हो रहे हैं। इसका जनस्वास्थ्य पर बुरा असर हो रहा है। चिकित्सा मूलभूत सेवा है, यह नागरिक को मिलनी चाहिए।

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