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हल्द्वानी में टाटा मेमोरियल इंस्टीट्यूट के लिए सांसद अनिल बलूनी ने मंत्री जितेंद्र सिंह से की मुलाकात

टाटा मेमोरियल कैंसर इंस्टीट्यूट बनाए जाने की पहल तेज हो गई है। दो दिन पहले मुंबई से इंस्टीट्यूट के डिप्टी डायरेक्टर प्रो. पंकज चतुर्वेदी ने उत्तराखंड का दौरा किया। साथ ही हल्द्वानी में भी इंस्टीट्यूट खोलने की संभावना तलाशी।

By Prashant MishraEdited By: Published: Tue, 03 Aug 2021 09:33 PM (IST)Updated: Tue, 03 Aug 2021 09:33 PM (IST)
हल्द्वानी में टाटा मेमोरियल इंस्टीट्यूट के लिए सांसद अनिल बलूनी ने मंत्री जितेंद्र सिंह से की मुलाकात
उत्तराखंड में टाटा कैंसर इंस्टिट्यूट की स्थापना की मुहिम एक कदम और आगे बढ़ी है।

जागरण संवाददाता, हल्द्वानी : राज्य में टाटा मेमोरियल कैंसर इंस्टीट्यूट बनाए जाने की पहल तेज हो गई है। दो दिन पहले मुंबई से इंस्टीट्यूट के डिप्टी डायरेक्टर प्रो. पंकज चतुर्वेदी ने उत्तराखंड का दौरा किया। साथ ही हल्द्वानी में भी इंस्टीट्यूट खोलने की संभावना तलाशी। यह पहल सांसद व भाजपा के राष्ट्रीय मीडिया प्रमुख अनिल बलूनी की ओर से की गई है।

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प्रो. चतुर्वेदी ने हल्द्वानी में कई जगह दौरा किया। एक अगस्त को वह स्टेट कैंसर इंस्टीट्यूट भी पहुंचे। वहां पर निदेशक डा. केसी पांडे से चर्चा की। कैंसर इंस्टीट्यूट के विस्तार समेत डाक्टरों के प्रशिक्षण और कई अन्य मुद्दों पर बातचीत हुई। मंगलवार को बलूनी ने फेसबुक पर पोस्ट भी किया है। उन्होंने लिखा है कि आज मेरे लिए संतुष्टि के पल हैं। उत्तराखंड में टाटा कैंसर इंस्टिट्यूट की स्थापना की मुहिम एक कदम और आगे बढ़ी है। इंस्टीट्यूट के प्रो. चतुर्वेदी ने उत्तराखंड का दौरा किया। वरिष्ठ अधिकारियों से टाटा कैंसर इंस्टीट्यूट की स्थापना पर बात की। हल्द्वानी के स्टेट कैंसर इंस्टीट्यूट भी गए। इसके बाद दिल्ली में प्रोफेसर चतुर्वेदी ने एटॉमिक एनर्जी मंत्री जितेंद्र सिंह से भी मुलाकात की। उन्हें उत्तराखंड दौरे की जानकारी दी। साथ ही इस महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट को जल्दी पूरा करने पर चर्चा की। इस चर्चा में वह खुद मौजूद रहे।

बेहतर होगी सुविधाएं

अनिल बलूनी ने कहा कि उत्तराखंड में स्वास्थ्य सुविधाओं को दुरुस्त करने के लिए हमेशा से प्रयासरत रहता हूं। पहाड़ पर स्वास्थ्य सुविधाओं को और बेहतर करना बहुत जरूरी है। इसके न होने से दूर-दराज गांव के लोगों को उप्र व दिल्ली जाना पड़ता है। ऐसे में उनका काफी पैसा व समय जाया होता है। कई बार तो रेफर होने के बाद मैदान में इलाज के लिए लाते समय जान भी गंवा देते हैं। इसी सब को देखते हुए कोशिश है कि ग्रामीणों को उनके पास ही बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं, सुपरस्पेशियलिटी स्तर के अस्पताल आदि उपलब्ध हो सके।


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