कोई ऑक्सीजन मॉस्क पहनकर तो कोई अपनों के कंधों पर लटककर बूथ पहुंचा मतदान करने
कोई ऑक्सीजन मॉस्क पहने तो कोई दिव्यांग होने से सहयोगी के कंधों पर लदकर पहुंचा बूथ तक। जानिए लोकतंत्र में यकीन रखने वाले जीवट लोगों के बारे में।
हल्द्वानी, जेएनएन : लोकतंत्र में वोट की क्या अहमियत है, इसकी बानगी गुरुवार को शहर के हर बूथ पर देखने को मिली। ऑक्सीजन मॉस्क पहने, पैर से दिव्यांग होने से सहयोगी के कंधों पर लदे, हाथ को छोड़कर शरीर का बाकी हिस्सा लकवाग्रस्त होने के बावजूद एक अलग आत्मविश्वास से भरे ये चेहरे सबका ध्यान अपनी तरफ खींच रहे थे। उम्र व बीमारी ने बूथ की तरफ बढ़ते इन कांपते कदमों को रुकने नहीं दिया। दरअसल, असल लोकतंत्र यही है, जिसमें तमाम परेशानियों के बावजूद हर वर्ग भागीदारी करता है। दिलचस्प बात यह रही कि इनके पहुंचने से पहले कतार में लगे युवा लाइन व धूप की बात कर रहे थे, पर जोश से भरे इन चेहरों पर नजर पड़ते ही पूरे बूथ में मतदान को लेकर एक जज्बा पैदा हो गया। कक्ष में प्रवेश करते ही मतदान कार्मिकों ने भी सीट से उठकर इनका अभिनंदन किया। लाइन में लगे कुछ युवा इन्हें सैल्यूट करते भी दिखे।
द्वितीय विश्व युद्ध का जज्बा अब भी कायम
द्वितीय विश्व युद्ध लड़ चुके 101 वर्षीय चिंतामणि जोशी बेटी सुलोचना संग कालाढूंगी रोड स्थित प्राइमरी स्कूल पहुंचे थे। मतदान की सुबह साढ़े तीन बजे उठकर जोशी ने घरवालों से कपड़े तैयार करने व बूट पॉलिश करने को कहा। कोट-पैंट व टाई लगाकर वह मतदान करने पहुंचे।
सात साल से ऑक्सीजन का सहारा
हनुमान मंदिर निवासी 69 वर्षीय हंसी देवी पिछले सात साल से ऑक्सीजन मॉस्क के सहारे जी रही हैं। उसके बावजूद संजयनगर प्राइमरी स्कूल में वह वोटिंग को पहुंची। मेदांता अस्पताल से उपचार करा रहीं हंसी देवी जन सरोकार व लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति समर्पित सरकार चाहती हैं। परिजनों के साथ बूथ पहुंची हंसी को देख अन्य वोटर भी उत्साहित हो गए।
वोट के लिए तो खदेड़े अंग्रेज
खालसा इंटर कॉलेज में वोट डालने पहुंची 100 साल की कैलाशो देवी बात करते ही जोश में आ गईं। तपाक से बोल पड़ीं वोट का हक पाने के लिए तो लड़कर अंग्रेजों को खदेड़ा। स्वतंत्रता सेनानी रह चुकीं कैलाशो हर चुनाव में वोट डालती हैं। पूछने पर कहा बस अच्छे को वोट दिया है।
95 साल की शांति सबसे पहले पहुंचीं
इंद्रप्रस्थ इंक्लेव निवासी 95 वर्षीय शांति खोलिया का बूथ फूलचौड़ स्थित सरकारी स्कूल में था। इस बूथ पर वह सबसे पहले वोट डालने पहुंचीं। कक्ष से बाहर निकलने के बाद लाइन में लगे अन्य वोटर भी उनके जज्बे को देखते रह गए।
हादसे ने बंद कराया चलना-फिरना
दो साल पहले एक हादसे की वजह से शीशमहल निवासी युवा पंकज बिष्ट का चलना-फिरना बंद हो गया, पर वोट के लिए जज्बा डिग नहीं सका। पंकज के पिता ऑटो बुक कर उसे लाए थे। चालक की मदद से उसे उतारने के बाद वोट डलवाया। वोट देने की खुशी पंकज के चेहरे पर साफ दिख रही थी।
दोनों पांव फ्रेक्चर, पर हौंसला अडिग
सुभाषनगर निवासी 62 वर्षीय जयंती बनौला के दोनों पांव फ्रेक्चर थे। बेटा मधुकर प्रताप उन्हें लेकर बूथ पहुंचा था। वोट डालने की चाह ने उनके अंदर का दर्द कुछ देर के लिए खत्म कर दिया था।
ट्यूमर के ऑपरेशन के बाद लकवे का अटैक
मिर्जा कंपाउंड निवासी 70 वर्षीय नूरजहां बेटी शबनम की मदद से बूथ पहुंची थीं। शबनम ने बताया कि कुछ समय पूर्व ब्रेन ट्यूमर के ऑपरेशन के बाद शरीर का कुछ हिस्सा लकवाग्रस्त हो गया। इतनी दिक्कतों के बावजूद नूरजहां सुबह से वोट डालने की रट लगाए हुई थीं।
नब्बे साल की आमा लाठी लेकर पहुंची
शहर के दूरस्थ एरिया के रानीबाग स्थित बूथ पर 90 साल की आमा सरूली डसीला लाठी लेकर पहुंची थीं। छोटे-छोटे कदमों से बूथ तक पहुंची आमा बिना किसी की मदद लिए वोट डालकर लौट गईं।
तबीयत बिगड़ी, पर चेहरे पर जोश
आवास विकास निवासी 78 वर्र्षीय डॉ. आरके गुप्ता तीन साल से बीमार चल रहे हैं। तेज धूप के बावजूद वह लाइन में लगकर वोट डालने पहुंचे। इस बीच उनकी तबीयत भी खराब हो गई। जिस वजह से सुरक्षाकर्मी ने उन्हें अपनी कुर्सी पर बिठाया।
पांव पर पहिया चढ़ा तो वॉकर लेकर पहुंचे
देवाशीष होटल के पास रहने वाले 48 वर्षीय सुनील तिवारी के एक पैर पर ट्रक का पहिया चढ़ गया था। तेज दर्द के बावजूद वह वॉकर लेकर धीरे-धीरे बूथ पर पहुंच गए। वोट देने के बाद कहा, 'यह सबसे जरूरी है।'