बच्चों की पढ़ाई के गांव से पलायन कर रहे हैं गांव के लोग, तीन दशकों से काॅलेज की मांग कर रहे हैं ग्रामीण
बागेश्वर जिले के कपकोट ब्लाॅक के नौकोड़ी हरसिंगियाबगड़ गांव के लोग अपने बच्चों की पढ़ाई के लिए गांव से पलायन कर चुके हैं। गांव में केवल बूढे-बुजुर्ग लोग ही रह गए हैं। यहां के लोग पिछले 25 सालों से उच्च शिक्षण संस्थान की मांग कर रहे हैं
बागेश्वर, जेएनएन : बागेश्वर जिले के कपकोट ब्लाॅक के नौकोड़ी, हरसिंगियाबगड़ गांव के लोग अपने बच्चों की पढ़ाई के लिए गांव से पलायन कर चुके हैं। गांव में केवल बूढे-बुजुर्ग लोग ही रह गए हैं। यहां के लोग पिछले 25 सालों से उच्च शिक्षण संस्थान की मांग कर रहे हैं लेेकिन, आज तक इन गांव वालों की मांग पूरी नही हो पाई हैं। आज भी स्कूल के लिए वह संघर्ष कर रहे हैं।
कपकोट ब्लाक के नौकोड़ी, हरसिंगियाबगड़ गांव की आबादी 1200 हैं। यहां 1983 में कक्षा जूनियर हाइस्कूल की नींव रखी गई थी। इसके बाद यह स्कूल प्रबंधन के तहत चलता रहा। 2015 में लोगों के संघर्ष के बाद सरकार ने जूनियर हाइस्कूल को अपने अधीन लिया। 90 के दशक से ही यहां इंटर कालेज खोले जाने की मांग की जा रही थी। कई बार लोगों ने इसके लिए आंदोलन किया। लेकिन कुछ नही हुआ। राज्य बनने के बाद यहां के लोगों को आस जगी की अब गांव में शिक्षण संस्था खुलेगी।
लेकिन राज्य बनने के बीस साल बाद भी गांव के लोग संघर्ष करने के लिए मजबूर हैं। थक हार कर अब ग्रामीण अपने बच्चों के भविष्य के लिए पलायन कर रहे हैं। गांव 70 परिवार भराड़ी, सूपी, फरसाली, कपकोट, बागेश्वर आदि जगहों में किराए के मकान में रहकर अपने बच्चों को पढ़ा रहे हैं। गांव से इंटर कालेज 15 से 25 किमी की दूरी पर हैं। मुख्यालय का स्कूल तो 45 किमी दूरी पर हैं। जिनके पास कुछ संसाधन है वह स्थाई रुप से अपने गांव को छोड़ चुके हैं।
बागेश्वर के अपर जिलाधिकारी हेमंत वर्मा ने बताया कि गांवों से हो रहे पलायन को रोकने के लिए कई योजनाएं तैयार की गई हैं। जिस पर कार्य भी किया जा रहा है। शिक्षा विभाग को इस संबंध में बताया गया है। जल्द ही उचित कार्रवाई की जाएगी।
तीन दशकों से कर रहे आंदोलन
क्षेत्र पंचायत सदस्य प्रवीण सिंह, ग्राम प्रधान नौकोड़ी सहित हीरा सिंह, पदम सिंह, दान सिंह, दुर्गा सिंह, नंदन सिंह, प्रह्लाद मर्तोलिया, राम सिंह, आन सिंह, सोबन सिंह, तारा सिंह ने कहा कि तीन दशक से सरकार गांव की उपेक्षा कर रही हैं। जिस कारण लगातार गांव खाली हो रहे हैं। तीस से 40 परिवार ऐसे है जो स्थाई रूप से पलायन कर चुके हैं। इसके अलावा 70 परिवार किराए के मकान पर रहकर अपने बच्चों को पढ़ा रहे हैं। लड़कियां तो कक्षा 8 के बाद पढ़ ही नही पाती। स्कूल होता तो लड़कियां भी उच्च शिक्षा ग्रहण करतीं।
गांव के 70 बच्चे ले रहे उच्च शिक्षा
गांव के करीब 70 बच्चे हाइस्कूल व इंटर की पढ़ाई के लिए बाहरी क्षेत्रों में रह रहे हैं। महामारी के बाद स्कूल खुल गए है तो यह गांव से पढ़ाई के लिए जा चुके हैं। इनके साथ इनके अभिभावक भी गए हुए हैं। यह किराए में मकान लेकर अपने बच्चों को पढ़ा रहे हैं।
50 बच्चियों ने कक्षा आठ के बाद छोड़ा स्कूल
सरकार के ही बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओं के नारे धरातल पर हवा-हवाई ही हैं। गांव में करीब 50 लड़कियां ऐसी है जो कक्षा 8 के बाद स्कूल नही जा पाई। जूनियर हाईस्कूल तक की व्यवस्था गांव में ही है तो वह पढ़ पाती हैं। असुरक्षा के कारण अभिभावक गांव से दूरदराज के स्कूलों में लड़कियों को नही भेजते हैं। जागरूकता व संसाधन के अभाव में लड़कियां आगे नही पढ़ पा रही हैं।