पौरवों ने बसाया ब्रह्मपुर तो कहलाया बमनपुरी
पौराणिक द्वारका (द्वाराहाट) धार्मिक ही नहीं ऐतिहासिक दृष्टि से भी खास महत्वपूर्ण है। इस भूभाग से प्राचीन इतिहास के कई रोचक तथ्य कहानियां व घटनाक्रम जुड़े हैं जो अब तक गुमनामी की छाया में हैं।
जगत सिंह रौतेला, अल्मोड़ा। पौराणिक द्वारका (द्वाराहाट) धार्मिक ही नहीं ऐतिहासिक दृष्टि से भी खास महत्वपूर्ण है। इस भूभाग से प्राचीन इतिहास के कई रोचक तथ्य, कहानियां व घटनाक्रम जुड़े हैं, जो अब तक गुमनामी की छाया में हैं। यह कुमाऊं की ऐसी पुरातन सांस्कृतिक नगरी रही है, जिसके विशिष्ट क्षेत्र ही नहीं गांवों की बसासत व नामकरण के पीछे एक खास कारण छिपा है। ऐसा ही है बमनपुरी गांव। पौरववंशी राजा ने ब्रह्मपुर राज्य बसाया तो कालांतर में पूरा इलाका बमनपुरी कहलाने लगा। पौराणिक ब्रह्मपुरी (बमनपुरी), जो कत्यूरी राजतंत्र से पूर्व पौरववंशी शासन प्रणाली की गवाह है।
अल्मोड़ा जनपद में इस शासनतंत्र के प्रमाण अभी तक विभिन्न संग्रहालयों में मौजूद हैं। 7वीं सदी के आरंभ से शुरू हर्षवर्धन के शासनकाल में यह राज्य मांडलिक था। ब्रह्मपुर जनपद ही पौरवों का राज्य था। इसमें कुमाऊं, गढ़वाल के अतिरिक्त भावर के क्षेत्र शामिल थे। चीनी यात्री ह्वेनसांग के अनुसार गोविषाण (काशीपुर) के उत्तर में ब्रह्मपुर राज्य था। इसकी राजधानी लखनपुर (चौखुटिया) थी। इतिहासकारों के अनुसार बौद्ध भिक्षु ह्वेनसांग ने स्वयं लखनपुर तक की यात्रा की थी। द्वाराहाट को ब्रितानीं हुकूमत के दौरान 1872 में हुए मानचित्र सर्वेक्षण में हाट-बमनपुरी दर्शाया गया है। तात्पर्य यह कि हाट तथा बमनपुरी दोनों ही एक दूसरे के पूरक थे। पौराणिक मानसखंड में द्रोणपर्वत (दूनागिरि) के दो पाद बताए गए हैं। पहला लोध्र (लोध) तथा दूसरा ब्रह्म पर्वत। कई विद्वानों ने ब्रह्म पर्वत को पांडवखोली क्षेत्र से भी जोड़ा है, लेकिन ब्रह्मपुर राज्य के परिपेक्ष में हाट बमनपुरी क्षेत्र ही अधिक उपयुक्त स्थल के रूप में सामने आता है। पौरव वंश के बाद यहां कत्यूर शासनकाल का उद्भव हुआ। पद्मश्री डॉ. यशोधर मठपाल ने भी द्वाराहाट में ब्रह्मपुर राज्य का बखूबी उल्लेख किया है।
अभिलेखों में है वर्णन
तालेश्वर (अल्मोड़ा) के ताम्र एवं अष्टधातु अभिलेखों में विष्णुवर्मन प्रथम, वृषवर्मन, अग्निवर्मन, द्युतिवर्मन व विष्णुवर्मन द्वितीय को ब्रह्मपुर राज्य के राजा के स्परÓ में वर्णन मिलता है। 'उत्तराखंड : इतिहास एवं संस्कृति पुस्तक में ब्रह्मपुर तथा यहां के महाराजाधिराज परम भट्रक के स्प में जिक्र है। महाराजाधिराज की उपाधि द्युतिवर्मन को हासिल थी।
पाषाणकालीन कप माक्र्स की मौजूदगी
ब्रह्मपुर (बमनपुरी गांव) के दक्षिणी भूभाग से चंद्रगिरि (चांचरी) पर्वतमाला के स्पष्ट दर्शन होते हैं। उत्तर दिशा मेें प्राचीन कालिका मंदिर है। बमनपुरी में पाषाणकालीन कप माक्र्स व उथले गड्ढे अच्छीखासी संख्या में मिले थे। पद्मश्री डॉ.यशोधर मठपाल ने ब्रह्मपुर को ब्राह्मी तीर्थ माना है। राजा हर्षवर्धन की मृत्यु के बाद उत्तराखंड की सीमाओं पर तीन प्रसिद्ध राज्य स्थापित हुए। इनमें ब्रह्मपुर (द्वाराहाट) के साथ ही श्रुध्न व गोविषाण शामिल रहे।
स्वतंत्रता सेनानी उपाध्याय बंधु इसी गांव से
स्वतंत्रता सेनानी भाई पूर्णानंद उपाध्याय व मदन मोहन उपाध्याय बमनपुरी गांव से ही रहे। कृषि बहुल इलाका होने के बावजूद यहां के बाशिंदे प्रशासनिक व अन्य विभागों में उच्च पदों पर हैं।
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