'पंत वीथिका' में खो जाते हैं पर्यटक, उत्तराखंड आएं तो जरूर घूमें कौसानी
हिमालय की शांत वादियों के बीच प्रकृति का सजीव चित्रण करने वाले कवि हैं जिनका काव्य साहित्य प्रेमियों के साथ ही प्रकृति प्रेमियों को खासा पसंद आता है। यहां तक का उनका घर अब पर्यटन स्थल के रूप में जाना जाता है। 28 दिसंबर को उनकी पुण्यतिथि भी होती है।
घनश्याम जोशी, बागेश्वर। प्रकृति की शांत वादियां साहित्य प्रेमियों को बहुत पसंद आती हैं। यहां की नीरवता उन्हें लेखन को प्रेरित करती है। प्रकृति उनके शांत मन में विचारों का बीजारोपण करती है। इसके बाद वह कहानी, काव्य दुनिया के सामने आता है। इसी प्रकार से हिमालय की शांत वादियों के बीच प्रकृति का सजीव चित्रण करने वाले कवि हैं, जिनका काव्य साहित्य प्रेमियों के साथ ही प्रकृति प्रेमियों को खासा पसंद आता है। यहां तक का उनका घर अब पर्यटन स्थल के रूप में जाना जाता है। 28 दिसंबर को उनकी पुण्यतिथि भी होती है। इस दिन कौसानी की शांत वादियों में पर्यटकों व साहित्य प्रेमियों का खासा जमावड़ा होता है जो उन्हें श्रद्धा-सुमन अर्पित करते हैं।
जी हां, हम बात कर रहे हैं प्रकृति के सुकुमार कवि सुमित्रानंदन पंत जी के बारे में। उनका जन्म कौसानी में चाय बागान के व्यवस्थापक पंडित गंगा दत्त पंत के घर 20 मई 1900 में हुआ। जन्म के करीब छह घंटे बाद ही उनकी माता सरस्वती देवी का स्वर्गवास हो गया। माता के स्नेह से वंचित सुमित्रानंदन पंत के काव्य में मां की पुनीत स्मृति बिखरी हुई मिलती है। माता के निधन के बाद शिशु सुमित्रानंदन पंत की दीर्घायु की कामना उनके पिता गंगा दत्त पंत ने की। उन्हें एक गोस्वामी हरगिरि बाबा को सौंप दिया। बाबा हरगिरि ने उनका नाम गुसाई दत्त पंत रख दिया। प्रारंभिक शिक्षा कौसानी के वर्नाक्यूलर स्कूल में होने के बाद वह चौथी कक्षा में प्रवेश के लिए अल्मोड़ा चल गए। विलक्षण प्रतिभा के धनी सुमित्रानंदन पंत को नौ साल की आयु में अमरकोश, मेघदूत, चाणक्य नीति आदि ग्रंथों के अनेक श्लोकों का ज्ञान हो गया था। 1918 में जीआइसी अल्मोड़ा से नवीं कक्षा पास करने के बाद आगे की शिक्षा के लिए उन्हें बनारस भेजा गया।
छायावाद, प्रगतिवाद और नव चेतनावाद के कवि
सुमित्रानंदन पंत ने छायावाद, प्रगतिवाद और नव चेतनावाद की तीन प्रमुख धाराओं के अंतर्गत साहित्यिक रचनाएं की। 1960 में कला और बूढ़ा चांद की रचना में उन्हें साहित्य अकादमी और 1969 में चिदंबरा पर भारतीय ज्ञान पीठ पुरस्कार मिला। उन्होंने आजीवन विवाह नहीं किया। 28 दिसंबर 1977 को इलाहाबाद में उनका निधन हो गया।
वीथिका में सुरक्षित हैं पंत के कविता संग्रह की पांडुलिपियां
राजकीय संग्रहालय कौसानी में उनके पैतृक घर पर सुमित्रानंदन पंत वीथिका स्थापित है। वीथिका में कविवर पंत को मिले सम्मान पत्र, उनकी जन्म कुंडली, उनके जीवन से जुड़े छाया चित्र, उनकी कुर्सी, मेज, चश्मा, अटैची, चादर आदि सामान रखा गया है। साथ ही उनको मिले ज्ञानपीठ पुरस्कार का प्रशस्ति पत्र, हिंदी साहित्य सम्मेलन में मिला साहित्य वाचस्पति का प्रशस्ति पत्र भी हैं। पंत की रचनाएं लोकायतन, आस्था आदि कविता संग्रह की पांडुलिपियां भी सुरक्षित रखी गई हैं।
कुमार विश्वास लेकर आते हैं तमाम साहित्यप्रेमी
पंत वीथिका को देखने के लिए और पंत जी से जुड़ी चीजों को देखने के लिए यहां पर्यटक व साहित्य प्रेमी आते रहते हैं। इस फेहरिस्त में मशहूर कवि कुमार विश्वास से लेकर कई साहित्य व प्रकृति प्रेमी शामिल हैं। पंत वीथिका को देखने वाले पर्यटक व साहित्य प्रेमी सुकुमार कवि की याद में खो जाते हैं। वीथिका में उनसे जुड़ी चीजों को देखकर वह पंत जी का पूरा जीवन मानों आंखों के सामने साकार होता देख रहे हों। इसके अलावा यहां का शांत वातावरण उन्हें असीम शांति देता है। आप उत्तराखंड घूमने आएं तो मिनी स्विटजरलैंड कहे जाने वाले कौसानी में पंत वीथिका जरूर देखें।